नई दिल्ली : हैदराबाद में सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों को एनकाउंटर में मार गिराए जाने पर एक ओर पुलिस के इस कारनामे पर वाहवाही हो रही है तो वहीं कई लोग इस पर सवाल भी उठा रहे हैं. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने शनिवार को कहा कि न्याय कभी तुरंत नहीं होना चाहिए और जब यह प्रतिशोध बन जाता है तब यह अपनी विशेषता खो देता है.
साथ ही, सीजेआई ने स्वीकार किया कि देश में हुई हालिया घटनाओं ने नयी ताकत के साथ एक पुरानी बहस फिर से छेड़ दी है, जहां इसमें कोई संदेह नहीं है कि फौजदारी न्याय प्रणाली को आपराधिक मामलों के निपटारे में लगने वाले समय के प्रति अपनी स्थिति एवं रवैये पर अवश्य ही पुनर्विचार करना चाहिए.
यहां राजस्थान उच्च न्यायालय के नये भवन के उद्घाटन के दौरान न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, 'न्याय कभी तुरंत नहीं होना चाहिए. न्याय को कभी प्रतिशोध का रूप नहीं लेना चाहिए. मेरा मानना है कि न्याय उस वक्त अपनी विशेषता खो देता है जब यह प्रतिशोध का रूप धारण कर लेता है.'
हैदराबाद में एक महिला पशु चिकित्सक से बलात्कार और उसकी हत्या के सभी चारों आरोपियों के पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे जाने के तेलंगाना पुलिस के दावे के एक दिन बाद सीजीआई ने यह टिप्पणी की.
इस घटना ने 16 दिसंबर 2012 के निर्भया मामले की यादें ताजा कर दी. हैदराबाद की घटना को लेकर बलात्कार के दोषियों को शीघ्रता से सजा देने की मांग शुरू हो गई. पुलिस मुठभेड़ में आरोपियों के मारे जाने की घटना की समाज के कुछ हिस्सों में प्रशंसा की गई, जबकि अन्य ने 'न्यायेतर कार्रवाई' को लेकर चिंता जताई.
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सीजेआई और अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि बलात्कार के मामलों का शीघ्रता से निपटारे के लिए एक तंत्र हो. उन्होंने कहा कि देश की महिलाएं तकलीफ में और संकट में हैं तथा वे न्याय की गुहार लगा रही हैं.
उन्होंने कहा कि 'कानून का शासन' से शासित होने वाले एक गौरवशाली देश के रूप में भारत का दर्जा अवश्य ही यथाशीघ्र बहाल होना चाहिए. सरकार इस उद्देश्य के लिए धन प्रदान करेगी.
मंत्री ने कहा कि जघन्य अपराधों एवं अन्य की सुनवाई के लिए 704 त्वरित अदालतें हैं तथा सरकार यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) और बलात्कार के अपराधों से जुड़े मुकदमों की सुनवाई के लिए 1,123 समर्पित अदालतें गठित करने की प्रक्रिया में जुटी हुई है.
उन्होंने कहा, 'महिलाओं से हिंसा से जुड़े कानून में हमने मौत की सजा का प्रावधान किया है और मुकदमे की सुनवाई दो महीने में पूरी करने सहित अन्य कठोर दंड के प्रावधान किए हैं.'
सीजेआई ने इस बात पर जोर दिया कि एक संस्था के तौर पर न्यायपालिका को अवश्य ही न्याय तक सभी लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, जिसके लिए मौजूदा ढांचे को मजबूत किया जाए तथा विवादों का वहनीय, त्वरित एवं संतोषजनक समाधान के नये तरीके तलाशने चाहिए.
सीजेआई ने कहा कि इसके साथ-साथ 'हमें बदलावों और न्यायपालिका के बारे में पूर्वधारणा से भी जरूर अवगत रहना चाहिए.'