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90 जिलों में फैली नक्सली हिंसा 46 जिलों तक सिमटी : गृह मंत्रालय

गृह मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि कभी देश के 90 जिलों को अपने कब्जे में ले चुकी नक्सली हिंसा अब 46 जिलों तक सिमट गई है. आंकड़ों से पता चला है कि देश में वामपंथी उग्रवादियों (एलडब्ल्यूई) से संबंधित हिंसा में नागरिक सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. वास्तव में नागरिक हताहतों की संख्या पिछले आठ महीनों में एलडब्ल्यूई के चरमपंथियों और सुरक्षा बल के जवानों की हताहतों की संख्या से अधिक है.

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Published : Sep 21, 2020, 8:24 PM IST

Updated : Sep 21, 2020, 8:54 PM IST

नई दिल्ली : गृह मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि कभी देश के 90 जिलों को अपने कब्जे में ले चुकी नक्सली हिंसा अब 46 जिलों तक सिमट गई है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्य सभा को बताया कि 11 राज्यों के 90 जिले वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित हैं और इन जिलों को गृह मंत्रालय की सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) योजना के तहत रखा गया.

2015 से 2020 तक 4,022 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किए

सरकार के विभिन्न प्रयासों के फलस्वरूप 2019 में नक्सली हिंसा की घटनाओं की खबर 61 जिलों से आईं और अब साल 2020 के शुरुआती छह माह में वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं की खबरें केवल 46 जिलों से आईं. रेड्डी ने यह भी बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों में 2015 से 15 अगस्त 2020 तक 350 सुरक्षा कर्मियों और 963 आम नागरिकों के साथ 871 नक्सलियों की मौत हुई है. उन्होंने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह भी बताया कि इस अवधि में 4,022 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किए हैं.

इस साल जनवरी से अगस्त तक 68 नागरिक मारे गए

केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) के सोमवार के आंकड़ों से पता चला है कि देश में वामपंथी उग्रवादियों (एलडब्ल्यूई) से संबंधित हिंसा में नागरिक सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. वास्तव में नागरिक हताहतों की संख्या पिछले आठ महीनों में एलडब्ल्यूई के चरमपंथियों और सुरक्षा बल के जवानों की हताहतों की संख्या से अधिक है. एलडब्ल्यूई से संबंधित हिंसा में इस साल जनवरी से अगस्त तक 68 नागरिक मारे गए. वहीं, 34 सुरक्षाकर्मी और 54 चरमपंथी मारे गए. इसी अवधि के दौरान 241 चरमपंथियों ने भी आत्मसमर्पण किए हैं.

नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों की मौत के मामलों में अब गिरावट
2015-2019 तक विभिन्न राज्यों में एलडब्ल्यूई से संबंधित हिंसा में 895 नागरिकों ने अपनी जान गंवाईं. मुठभेड़ के दौरान 817 चरमपंथी मारे गए और इसी अवधि के दौरान 318 सुरक्षा बल के जवानों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. आंकड़ों में आगे कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों में एलडब्ल्यूई से संबंधित हिंसा के कारण नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की मौत के मामलों में गिरावट देखी गई है.

2019 में 202 आम लोगों और सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई. 2018 में 240 आम लोगों और सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई थी. वहीं 2017 में 263 सुरक्षा बल के जवानों और नागरिकों ने अपनी जान गंवाई.

ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल सबसे अधिक प्रभावित

आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, सहित 11 राज्यों के 90 जिलों में वामपंथी उग्रवाद फैला है. एलडब्ल्यूई से संबंधित हिंसा के कारण ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल सबसे अधिक प्रभावित हैं. माओवादियों के खिलाफ अपनी लड़ाई को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार सभी 90 जिलों को गृह मंत्रालय की सुरक्षा संबंधी व्यय योजना के तहत ला चुकी है.

1,443.17 करोड़ रुपये केंद्र ने वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित 11 राज्यों को दिए
आंकड़े बताते हैं कि सरकार ने माओवादियों के खिलाफ उनकी लड़ाई में सुरक्षा संबंधी व्यय योजना, विशेष बुनियादी ढांचा योजना और राज्यों को विशेष केंद्रीय सहायता योजना भी बढ़ाई है. वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित 11 राज्यों को 2018-19 में 1,200 करोड़ रुपये की तुलना में 2019-20 में 1,443.17 करोड़ रुपये मिले. इसके अलावा, गृह मंत्रालय अपनी आवश्यकताओं के अनुसार केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ), हेलीकॉप्टर, यूएवी भी राज्य सरकार को प्रदान करता है.

Last Updated : Sep 21, 2020, 8:54 PM IST

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