नई दिल्ली : स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) 58 वर्षों तक साये की तरह काम करने वाला एक गुप्त विशेषज्ञ संगठन बना रहा. लेकिन अब भारत-चीन के बीच सीमा पर जारी गतिरोध के कारण 'एस्टेब्लिशमेंट 22' को बाहर आना पड़ रहा है. SFF जांबाजों ने कई युद्ध लड़े हैं और भारत को जीत दिलाई. स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवान गुप्त ऑपरेशनों को अंजाम देने में माहिर हैं. इस फोर्स की स्थापना चीन को धूल चटाने के लिए ही हुई है. ऑपरेशन ब्लूस्टार से लेकर ऑपरेशन विजय (कारगिल) तक में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए. वहीं अब तक गुमनामी में रही इस फोर्स को पहचान दिलाने कि मांग उठने लगी है. पैंगोंग झील के दक्षिणी क्षेत्र में ऑपरेशन के दौरान एक 53 वर्षीय न्यामा तेनजिन की मौत के बाद ट्विटर पर लोगों द्वारा इस फोर्स को रोशनी में लाने की बात कही जा रही है.
चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद, साठ के दशक में भारतीय खुफिया ब्यूरो (IB) और यूएस सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) के बीच मधुर रिश्ते के कारण भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित हो चुके थे.
इस दौरान SFF जवानों को CIA द्वारा प्रशिक्षित और तैयार किया गया था.
हालांकि, कुछ ही समय में, सोवियत रूस भारत के करीब आ गया और अमेरिका, भारत से दूर हो गया और पाकिस्तान पर एहसान बरसाने लगा.
2020 आते-आते ऐसा लगता है जैसे एक बार फिर चक्र घूम रहा है और भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने के लिए चीन विरोधी मोर्चे को आकार दिया गया है.
इससे लगभग 5,000 SFF जवानों के लिए कर्तव्य का पालन करने की इच्छाशक्ति और मजबूत हो गई है. 14 नवंबर, 1962 को IB द्वारा संकल्पित और स्थापित, CIA द्वारा प्रशिक्षित SSF, जिसमें मुख्य रूप से तिब्बत के खामपा योद्धा शामिल थे, को चीन को ध्यान में रखते हुए प्रशिक्षित किया गया था.
अब भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के तहत, SFF का मुख्य आदेश चीनी सीमाओं पर वही काम करना है, जिसके लिए उन्हें तैयार किया गया है.
SFF सेनानियों ने कई युद्ध किए हैं. इनमें दोनों गुप्त और खुले ऑपरेशन शामिल हैं. इनमें 'गुप्त ऑपरेशन ईगल' (1971, बांग्लादेश युद्ध मुक्ति), 'ऑपरेशन ब्लूस्टार' (स्वर्ण मंदिर 1984) 'मेघदूत' (सियाचिन 1984), 'ऑपरेशन विजय' (कारगिल 1999) इत्यादि शामिल हैं.
कुछ रिपोर्ट में विदेशी तटों पर भी प्रशिक्षित गुरिल्ला होने की बात कही गई है. कई युद्धों और ऑपरेशनों में उनकी वीरता के किस्से आज भी सुनाई पड़ते हैं.
युद्ध के दौरान बहादुरी के कार्यों के लिए जिन लोगों को सम्मानित किया गया उनको केवल बंद हलकों में सम्मान मिला. राष्ट्रपति भवन में आयोजित गुप्त समारोहों में SFF सैनिकों को पुरस्कार दिए गए. लेकिन अब SFF की काफी हद तक सोशल मीडिया पर उनको कार्यों का गुणगाण हो रहा है. उनको वह मुकाम देने की बात हो रही है, जिसके वह हकदार हैं.
29-30 अगस्त की रात में है जब पैंगोंग त्सो के दक्षिण बैंक में भारतीय सैनिकों ने एक हावी रिज पर कब्जा कर लिया उस समय हुई झड़प में एक SFF के वरिष्ठ अधिकारी की मौत हो गई, जिसने उनके पहचान देने की आवश्यकता की मांग को बढ़ा दिया.