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'किसानों की तात्कालिक व वास्तविक मांगों को नजरअंदाज कर रही सरकार'

केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में कुछ सुधार जैसे कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव की घोषणा की है. खाद्य तेलों, तिलहन, दलहन, आलू, प्याज आदि में स्टॉक लिमिट को हटाने से किसानों को अच्छा दाम मिलने की आशा है. इस पूरे मसले पर ईटीवी भारत ने विशेषज्ञ और किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह से बातचीत की. जानें विस्तार से उन्होंने क्या कहा...

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चौधरी पुष्पेंद्र सिंह

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Published : May 16, 2020, 10:06 AM IST

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित किए गए 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को तीसरी प्रेस कांफ्रेंस कर विस्तृत जानकारी दी. तीसरे भाग में कृषि, मत्स्य पालन, डेरी और फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र के लिए कई योजनाओं की घोषणा की गई है, जिसमें कृषि क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए एक लाख करोड़ देने की बात कही गई है. इसके अलावा एमएफई (माइक्रो फूड इंटरप्राइजेज) के लिये 10 हजार करोड़, मछली पालन क्षेत्र के लिए 20 हजार करोड़, डेयरी प्रोसेसिंग के लिए 15 हजार करोड़, हर्बल खेती के लिए चार हजार करोड़, मधुमक्खी पालन के लिए पांच सौ करोड़ इत्यादि शामिल हैं.

दरअसल किसानों को उनके फसल का सही मूल्य नहीं मिल पाना एक बड़ी समस्या रही है और सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बावजूद भी उनके उत्पाद की खरीद एमएसपी पर नहीं हो पाती है. आज की घोषणा में वित्त मंत्री ने कहा है कि एमएसपी के लिए 74,300 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे.

आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की बात भी कही गई है. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि किसान इन घोषणाओं से राहत महसूस करेंगे और आगे कृषि क्षेत्र में उन्हें अपना भविष्य उज्ज्वल दिखाई देगा, लेकिन कृषि विशेषज्ञों और किसान नेताओं की राय इससे अलग है.

ईटीवी भारत ने इस विशेष पैकेज की घोषणा पर विशेषज्ञ और किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह से बातचीत की. चौधरी पुष्पेंद्र सिंह का कहना है की घोषणाओं में अधिकतर प्रस्ताव लोन के रूप में है ना की सहायता के रूप में. कुछ प्रस्तावों को पहले ही बजट में शामिल कर लिया गया था, अतः उनकी केवल पुनः घोषणा की गई है जिसमें नया कुछ भी नहीं है. पीएम किसान जैसी कुछ योजनाओं की राशि को बस समय से पहले दिया जा रहा है, लेकिन उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है. 1.70 लाख करोड़ रुपए का जो पहला पैकेज मार्च अंत में घोषित किया गया था उसने भी केवल 60000 करोड़ के नए प्रस्ताव थे बाकी सब इस साल के बजट में पहले ही मौजूद था.

15 मई को कृषि क्षेत्र में कुछ सुधार जैसे कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव का प्रस्ताव स्वागत योग्य कदम है. खाद्य तेलों, तिलहन, दलहन, आलू, प्याज आदि में स्टॉक लिमिट को हटाने से किसानों को अच्छा दाम मिलने की आशा है. ऑपरेशन ग्रींस के तहत सभी फल सब्जियों को शामिल किया गया है, जिसमें परिवहन और भंडारण के लिए 50% सब्सिडी मिलेगी. कृषि उत्पादन बाजार समिति अधिनियम में सुधार होंगे, जिससे कृषि उत्पादों को अन्य स्थानों और राज्यों या क्रेताओं को भी बेच सकेंगे.

पशुपालन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 15 हजार करोड़, पशुओं के टीकाकरण व इलाज के लिए 13000 करोड़ का फंड और मछली पालन के लिए दो हजार करोड़ से ऊपर की योजनाएं बनेंगी.

इन सभी योजनाओं की घोषणा के बावजूद किसानों की तात्कालिक व वास्तविक मांगों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है. यदि सरकार किसानों की मांग पर ध्यान दे तो ग्रामीण क्षेत्रों का कुछ भला अवश्य हो सकता है.

बतौर पुष्पेंद्र सिंह सरकार को पीएम किसान योजना की राशि को छह से बढ़ाकर 24 हजार कर देना चाहिए और किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा को दुगुनी कर इस पर ब्याज दर एक प्रतिशत कर देना चाहिए. किसानों के सभी कर्ज और किस्तों की अदायगी को एक साल के लिए निलंबित कर देना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता हो गया है, इसलिए कृषि प्रयोग में आने वाले डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी सरकार को देनी चाहिए.

पढ़ें :राहत पैकेज : कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के लिए एक लाख करोड़ रुपये देगी सरकार

उन्होंने बताया कि कच्चा तेल सस्ता होने के कारण रासायनिक उर्वरकों के दाम भी गिर जाते हैं, इसलिए पोटाश और डीएपी खाद पर 25% की छूट किसानों को मिलनी चाहिए. लॉकडाउन से किसान की आमदनी गिर गई है अतः रबी की सारी फसलों की पूरी खरीद सुनिश्चित कर एमएसपी के ऊपर ढाई सौ से पांच सौ प्रति क्विंटल का बोनस देना चाहिए. आगे सभी फसलों की एमएसपी संपूर्ण लागत के सी2 के डेढ़ गुने आधार पर घोषित करना चाहिए. सरकार को गन्ना किसानों की के पूरे पैदावार को खरीद कर उसका तत्काल भुगतान करना चाहिए.

इस तरह से सरकार द्वारा घोषित योजनाओं के बाद किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने अपनी 20 सूत्री मांग सरकार के सामने रखी है और उनका मानना है कि अगर सरकार इन मांगों पर अमल करेगी तो किसानों का भी भला होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा.

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