नई दिल्ली :बीजिंग ने सोमवार को एक श्वेत पत्र में दक्षिण-पश्चिम में अपनी प्रमुख नदियों पर विशाल जल विद्युत बेस बांध नेटवर्क के निर्माण की बात स्वीकार की है. यह यारलुंग-त्संगपो में निर्माण स्थल पर है. ब्रह्मपुत्र नदी विशेष रूप से असम और अरुणाचल प्रदेश में भारत और बांग्लादेश में निचले रिपेरियन क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव की चिंताओं को बढ़ाती है. यारलुंग-त्संगपो या तिब्बत का नाम लिए बिना चीन के नए युग में ऊर्जा नाम के श्वेत पत्र में कहा गया है कि दक्षिण-पश्चिम में प्रमुख नदियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए चीन बड़े जल विद्युत अड्डों का निर्माण कर रहा है और छोटे व मध्यम जल विद्युत अड्डों को नियंत्रित कर रहा है.
जल विद्युत उत्पादन है मकसद
चीन के दक्षिण-पश्चिम में यारलुंग-त्संग्पो भारत में ब्रह्मपुत्र बन जाता है जो बाद में बांग्लादेश में पद्मा के रूप में प्रवाहित होता है. दस्तावेज में निहितार्थ पर ईटीवी भारत से बात करते हुए बांधों के प्रमुख विशेषज्ञ और तिब्बत में त्संगपो नदी पर काम कर चुके डॉ. नयन शर्मा ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि श्वेत पत्र यारलंग त्संगपो के बारे में बात कर रहा है. तिब्बत में विशाल बांधों और बैराजों का निर्माण कर वहां कि जल विद्युत उत्पादन की बड़ी अप्रयुक्त क्षमता का दोहन करना चाहता है. वे मोटूओ और दादुओ बांध के बारे में बात कर रहे हैं, जो परियोजनाओं में अभूतपूर्व शक्ति का उत्पादन करने वाले हैं. इनमें 40-50 किमी लंबी सुरंगों के माध्यम से लगभग 2,000 मीटर (2 किमी) तक पानी की भारी मात्रा में डूबना शामिल है. शर्मा ने 37 वर्षों तक आईआईटी रुड़की में पढ़ाते हुए भारत में 25 बांधों का डिजाइन किया है.