हैदराबाद : पूर्वोत्तर भारत के कई राज्य हिंसक आंदोलनों से लंबे समय तक त्रस्त रहे हैं. अब जबकि चीन ने आक्रामक तेवर दिखाना शुरू किया है, पूर्वोत्तर के इन राज्यों में एक बार फिर युद्ध का उन्माद पनपने की आशंका है. ऐसी आशंका है कि चीन, पूर्वोत्तर राज्यों के विद्रोही संगठनों को उकसाकर देश में अशांति का माहौल पैदा कर सकता है. सरकार का अधिकतर ध्यान नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास पाकिस्तान पर होता है, लेकिन अब सरकार को रणनीति बदलनी होगी. पाकिस्तान के साथ चीन पर भी उतनी ही मुस्तैदी से नजर बनाए रखने की जरूरत है.
दरअसल, पूर्वोत्तर में सक्रिय विद्रोही संगठनों के माध्यम से चीन के पास पूर्वोत्तर फ्रंटियर में हस्तक्षेप करने की क्षमता है. परमाणु-हथियार से लैस पड़ोसियों द्वारा एक पूर्ण युद्ध को गैर-विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.
हालांकि, एक हल्के फुल्के संघर्ष के लिए भारत को हमेशा तैयार रहना होगा और इसे कभी भी लड़ा जा सकता है. इस बात की भी संभावना बढ़ गई है कि चीन, भारत को परेशान करने के लिए हल्की फुल्की झड़पों को अंजाम देता रहे.
चीन, अरुणाचल प्रदेश के साथ 1,126 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. यहां राज्य के पूर्वी हिस्से से होकर जाने वाले मार्ग हैं, जिनका उपयोग म्यांमार और चीन के युन्नान प्रांत में प्रवेश करने के लिए अधिकांश विद्रोहियों द्वारा किया जाता है.
पहले भी असम, मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम के विद्रोहियों ने आश्रय और रसद सहायता लेने के लिए चीनी नेताओं के साथ संपर्क स्थापित किया था, हालांकि चीन ने तब सीधे उनकी मदद करने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब भारत के साथ बढ़ते सैन्य तनाव ने चीन को स्थिति का लाभ उठाने का एक आदर्श अवसर प्रदान किया है.
असम
पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच जारी गतिरोध के बीच परेश बरुआ के नेतृत्व वाली यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (स्वतंत्र) (उल्फा-आई) ने इस हफ्ते 17 मिनट का एक वीडियो जारी कर चीन को खुला समर्थन देने की घोषणा की है.
उल्लेखनीय है कि 1962 के संघर्ष के बाद उल्फा (आई) ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि पीएलए ने कभी भी, किसी भी स्वदेशी असमी को नुकसान नहीं पहुंचाया और इसके विपरीत स्थानीय किसानों को कृषि कार्यों में मदद की.
उल्फा का चीन के साथ जुड़ाव कई दशकों पुराना है. एक समय असम के प्रमुख विद्रोही समूह ने युन्नान के प्रांतीय प्रतिनिधियों के साथ मिलकर सैन्य और सैन्य समर्थन की मांग की थी.
सूचना है कि बरुआ स्वंय चीन के देहोंग प्रान्त के एक काउंटी शहर रूली के सीमावर्ती इलाके में रह रहा है.
यह दूसरी बार है कि उल्फा (आई) ने चीन का खुलकर समर्थन किया है. उल्फा ने पिछली बार मार्च 2012 में चीन का समर्थन किया था, तब प्रतिबंधित संगठन ने असम में तिब्बती कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों द्वारा किए गए चीनी विरोध की आलोचना की थी. इस दौरान संगठन ने कहा था कि निर्वासित तिब्बतियों ने पिछले तीन दशकों में असम में अत्याचारों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए कभी कोई चिंता नहीं जताई.
माना जाता है कि उल्फा (आई) के भारत-म्यांमार सीमा के पास जंगलों में मौजूद शिविरों में सौ से अधिक सशस्त्र लड़ाके हैं. यहां से चीन की सीमा तक पहुंचने के लिए केवल एक दिन का समय लगता है. यह संगठन शांति वार्ता का हमेशा से विरोध करता आया है और स्वतंत्र असम की अपनी मांग पर अड़ा हुआ है.
दूसरी ओर, 15 वर्षों से सरकार और उल्फा के एक गुट के बीच चल रही वार्ता प्रक्रिया से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है, जिससे राज्य के कई लोगों में बेचैनी है.
नगा समुदाय
नगा, जो पूर्वोत्तर के चारों राज्यों में फैले हुए हैं, ने वहां विद्रोह आंदोलन चलाया. चीन भी इस आंदोलन के लाभार्थियों में से एक था. गौरतलब है कि चीन वह पहला देश था जिसने नगा आंदोलन को अपना समर्थन दिया. इतना ही नहीं, चीन ने नगा आंदोलन से जुड़े 133 विद्रोहियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया था.
बता दें कि नगा आंदोलन दुनिया का दूसरा सबसे पुराना उग्रवाद है, इस क्षेत्र में नगा आंदोलन को 'सभी उग्रवादियों की मां' कहा जाता है.