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चीन भर रहा दंभ, पांच साल बाद अमेरिका को देगा सबसे बड़ी चुनौती

अमेरिकी कांग्रेस पैनल का कहना है कि चीन 2025 तक सैन्य क्षमता में अमेरिका से आगे निकल सकता है. हालांकि अमेरिका अगर कुछ उपाय करे तो अपनी रक्षा प्रणाली को और भी मजबूत कर सकता है. दूसरी तरफ यह भी कहा गया है कि चीन आने वाले वर्षों में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. ऐसे में अमेरिका को खुद को मजबूत करने की दिशा में काम करना होगा. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार संजीव कुमार बरूआ की यह खास रिपोर्ट.

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Published : Oct 1, 2020, 6:07 PM IST

Updated : Oct 1, 2020, 7:35 PM IST

नई दिल्ली : चीन की विस्तारवादी नीति के लिए सबसे जरूरी सैन्य बल है. ऐसे में चीन ने हमेशा अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने पर जोर दिया है. ऐसा माना जा रहा है कि 2025 तक चीन अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ देगा.

रक्षा से संबंधित विषय पर संयुक्त राज्य कांग्रेस के एक प्रमुख पैनल ने कहा है कि चीन सैन्य क्षमता के मामले में अमेरिका को अब से पांच साल से भी कम समय में पछाड़ सकता है.

गुरुवार को भारतीय समयानुसार हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमेटी द्वारा जारी अमेरिका के लिए 'द फ्यूचर ऑफ डिफेंस टास्क फोर्स रिपोर्ट, 2020' में रक्षा को लेकर गंभीर बात बताई गई है.

रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों को लगता है कि चीन अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है. उसकी (चीन) प्रतिस्पर्धा इतनी तेज गति से आगे बढ़ रही है कि वह आने वाले पांच वर्षों में अमेरिकी सैन्य क्षमता को पछाड़ कर आगे निकल जाएगा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक जब चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाता है, और अमेरिकी डिफेंस मौजूदा गति को ऐसी ही बनाए रखता है तो उनके 70 प्रतिशत यूएस मिलिट्री सिस्टम पुराने होंगे.

ऐसी स्थिति में अमेरिका पुरानी सैन्य तकनीक के साथ रहेगा और चीन आक्रमक रूप से नए-नए क्षेत्रों की खोज करेगा और आगे बढ़ता रहेगा.

अगर अमेरिका को पैनल द्वारा दी गई सिफारिश के साथ आगे बढ़ना है, तो इसके लिए भी उपाय हैं. इसके तहत अमेरिका में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) का अध्ययन करने वाले विदेशी छात्रों की वापसी हो ताकि तेजी से बदलती दुनिया में अमेरिका को अपनी सैन्य ताकत में बढ़त बनाने में मदद मिल सके. इनमें बहुत से भारतीय और चीनी हो सकते हैं.

2017-18 में, अमेरिका में कुल विदेशी एसटीईएम छात्रों में 162,050 छात्रों के साथ चीन और 153,876 के साथ भारत एसटीईएम छात्रों की उत्पत्ति का प्रमुख देश था. यह अमेरिका में सभी विदेशी एसटीईएम छात्रों का 70 प्रतिशत था. सऊदी अरब इस मामले में काफी पीछे तीसरे नंबर पर आता है.

बता दें कि सैन्य अनुप्रयोगों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में विशेषज्ञता को महत्वपूर्ण माना जाता है.

2017 में, विदेशी मूल के छात्रों ने स्नातकोत्तर डिग्री के 54 प्रतिशत और अमेरिका में एसटीईएम क्षेत्रों में 44 प्रतिशत डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की.

रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में देश के वैज्ञानिक और तकनीकी लाभ सुनिश्चित करने के लिए रक्षा विभाग के भीतर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में अपने निवेश को बढ़ाना चाहिए और एसटीईएम प्रतिभा को सरकार के माध्यम से पूरा करना चाहिए.

एक सुझाव के अनुसार-

एचआर 7256, राष्ट्रीय सुरक्षा नवप्रवर्तन मार्ग अधिनियम का समर्थन करें, जो महत्वपूर्ण तकनीकों पर रक्षा नवाचार आधार और एचआर 6526, एसटीईएम वाहिनी अधिनियम, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) को बढ़ावा देता है, में काम करने के लिए अमेरिका-शिक्षित विशेषज्ञों को बनाए रखने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है.

सुझाव के मुताबिक डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस वर्कफोर्स के भीतर कंप्यूटर साइंस, प्राइवेट हेजिंग मार्ग और निजी क्षेत्र में एसटीईएम करियर के लिए मुआवजे में वृद्धि; एसटीईएम प्रतिभा के लिए एक सैन्य कमीशन स्रोत बनाया जाए.

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साथ ही संयुक्त राज्य कांग्रेस के एक प्रमुख पैनल ने यह भी सिफारिश की कि अमेरिका को अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए भारत जैसे एशियाई देशों के साथ बढ़ते संबंधों को मजबूत करना चाहिए.

बता दें कि भारत और चीन, दुनिया की दो सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है. वर्तमान में दोनों देशों की बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर तनाव की स्थिति बनी हुई है.

पूर्वी लद्दाख में बर्फीले ठंड और दुर्गम इलाके में दोनों तरफ की एक लाख से अधिक सेना पूरे लाव-लश्कर के साथ डटी हुई है.

Last Updated : Oct 1, 2020, 7:35 PM IST

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