हैदराबाद : चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ हरसंभव तरीके से सीमा विवाद उत्पन्न के लिए कुख्यात है. चीनी सरकार द्वारा अपनी सीमा के बाहर स्थानों का एकतरफा नामकरण, शायद चीन की अपने पड़ोस में विवाद पैदा करने की सबसे पुरानी चालों में से एक है. विस्तारवादी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन में इस तरह के प्रयास तेज हो गए हैं. पिछले कुछ वर्षों में, चीन ने दक्षिण चीन सागर में लगभग 80 समुद्री द्वीपों और चट्टानों का नाम बदल दिया है.
चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने 23 दिसंबर, 2020 को अरुणाचल प्रदेश में चीन द्वारा किए गए नामकरण की जानकारी दी थी, जो 2017 में ही किया गया था. इसे 13वीं पंचवर्षीय योजना (2016-2020) के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रशासन की महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में बताया जा रहा है.
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने 18 अप्रैल, 2017 को बताया कि नागरिक मामलों के मंत्रालय ने 'दक्षिण तिब्बत' में छह स्थानों के नामों बदलाव किया है. बता दें कि भारत के अरुणाचल प्रदेश को चीन 'दक्षिण तिब्बत' का हिस्सा बताता है और इस पर अपना दावा करता रहा है.
चीन ने अरुणाचल प्रदेश में छह स्थानों के चीनी नामकरण की जानकारी दी है, लेकिन उसने इसका कोई संदर्भ नहीं दिया है. छह स्थानों में शामिल हैं- वोग्यानलिंग (Wo'gyainling), मिला री (Mila Ri), कोइदेंगार्बो री (Qoidengarbo Ri), माइनकुका (Mainquka), बिइमो ला (Biimo La) और नाम्कापुब री (Namkapub Ri).
मुख्य रूप से, तवांग जिले में छठे दलाई लामा के जन्मस्थान, उग्येन लिंग मठ को वोग्यानलिंग और चोटेन कार्पो री को कोइदेंगार्बो री के रूप में संदर्भित किया गया है.
वहीं, पश्चिम सियांग जिले के मेचुका को माइनकुका के रूप में, तवांग के पास स्थित बुम्ला को बिइमो ला के रूप में और अपर सुबनसिरी जिले के डापोरिजो को मिला री के रूप में बदला गया है. चीनी नाम नाम्कापुब री शायद नाम्का चू नदी के पास कुछ पहाड़ी क्षेत्र को दिया गया है.
इन स्थानों का नाम बदलने से न सिर्फ भारत के पूर्वोत्तर राज्य में, बल्कि तिब्बत पर भी चीन के झूठे दावे की स्वीकार्यता पर इसकी असुरक्षा का पता चलता है.
दलाई लामा द्वारा 2008 में अरुणाचल प्रदेश को भारत के हिस्से के रूप में मान्यता देना और 2009 तथा 2017 में उनकी अरुणाचल प्रदेश यात्राओं ने चीन की असुरक्षा को बढ़ा दिया है.
21 दिसंबर, 2020 को अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम के बाद चीन की चिंता और बढ़ गई है.
चीन आशंकित है कि अमेरिकी तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम में तिब्बत, ताइवान, हांगकांग और शिनजियांग से संबंधित धाराएं चीन के खिलाफ जाएंगी. उनसे जातीय, धार्मिक और मानवाधिकारों के मुद्दे के रूप में चीन और 'दलाई गुट' के बीच संघर्ष के बारे में असहज महसूस किया है.