नई दिल्ली : संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट 2019-20 के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र, शहरी क्षेत्रों के छात्रों के मुकाबले औसतन 10 प्रतिशत अधिक राशि किताबों, लेखन सामग्री और वर्दी पर खर्च करते हैं. हालांकि, शिक्षा व्यवस्था में भागीदारी के मामले में सभी क्षेत्रों में सुधार आया है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद के पटल पर पेश रिपोर्ट में कहा गया कि सतत वित्तीय सहायता प्रणाली की अनुपस्थिति और पाठ्यक्रमों के लिए अधिक शुल्क खास तौर पर उच्च शिक्षा में, गरीबों और वंचित वर्गों को शिक्षा प्रणाली से दूर कर रहा है.
प्रमुख संकेतक शिक्षा पर घरेलू खपत संबंधी राष्ट्रीय नमूना सर्वे (एनएसएस) रिपोर्ट 2017-18 के हवाले से आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया कि 2017-18 में तीन साल से 35 साल के बीच करीब 13.6 फीसदी ऐसे लोग थे जिनका शिक्षा प्रणाली में पंजीकरण नहीं हुआ था.
संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक, 'पंजीकरण नहीं होने की वजह शिक्षा के प्रति उनकी अरुचि और वित्तीय परेशानी थी.'
रिपोर्ट में कहा गया कि जिन लोगों का स्कूलों में पंजीकरण हुआ उनमें से भी प्राथमिक स्तर पर ही पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या 10 फीसदी रही, जबकि माध्यमिक कक्षाओं में स्कूल छोड़ने वालों की तादाद 17.5 फीसदी रही. उच्चतर माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या 19.8 प्रतिशत रही.
सभी को शिक्षा पहल की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया कि शिक्षा के सभी मदों पर होने वाले खर्च के मुताबिक पूरे देश में 50.8 फीसदी राशि छात्रों को पाठ्यक्रम शुल्क के रूप में देनी होती है.
पाठ्यक्रम शुल्क में ट्यूशन, परीक्षा, विकास शुल्क और अन्य अनिवार्य भुगतान शामिल हैं.