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हरियाणा के किसानों की अनूठी पहल, थाली को जहरमुक्त बनाने के लिए 10 वर्षों से कार्यरत

किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में अंधाधुंध रासायनिक व कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन हरियाणा के जींद जिले के किसानों द्वारा फसल में लागत को कम कर उत्पादन बढ़ाने के लिए कीट ज्ञान की अनोखी पद्धति इजाद की गई है. यहां के किसान पिछले दस वर्षों से कीट साक्षरता अभियान चला रहे हैं और खाने को जहरमुक्त बना रहे हैं.

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Published : Jul 31, 2019, 9:28 PM IST

जींद: फसलों में अधिक रासायनिक व कीटनाशकों का प्रयोग करने से फसल में लागत अधिक बढ़ती जा रही है और उत्पादन कम होता जा रहा है. इससे किसान कर्ज के दलदल में फंसकर आर्थिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं. वहीं हरियाणा के जींद के किसान पिछले 10 वर्षों से कीट साक्षरता अभियान चला रहे हैं. इसमें फसलों में मौजूद कीटों पर शोध कर रहे बिना कीटनाशक के खेती करने के लिए किसानों को जागरूक कर रहे हैं.

कैसे हुई थी शुरुआत ?
वर्ष 2008 में कृषि विकास अधिकारी डॉ. सुरेंद्र दलाल के नेतृत्व में निडाना गांव में कीटों पर शोध का कार्य शुरू किया गया था. इस मुहिम के साथ आस-पास के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के पुरुष व महिला किसान जुड़े हुए हैं.

ETV भारत की खास रिपोर्ट

इस पूरे अभियान की शुरुआत करने के पीछे का कारण है साल 2001 में एक अखबार में किसानों और कृषि विशेषज्ञों की कृषि विशेषज्ञों की विफलता को लेकर छपे लेख. इस लेख में जिक्र किया गया था 36 बार कीटनाशक स्प्रे करने के बाद भी चार से पांच मण उत्पादन हुआ, जिसमें लेख के संपादक ने कहा कि यहां किसानों और कृषि वैज्ञानिकों की सांझी विफलता है. इसी बात से आहत होकर डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कीटों को लेकर रिसर्च करना शुरू किया और साल 2008 में उन्होंने कीट की जानकारी किसानों को देने के लिए अभियान शुरू किया.

बढ़ता चला गया अभियान
धीरे-धीरे यह अभियान बड़ा होता गया और आसपास के कई किसान उनसे जुड़ गए. इस पूरे अभियान का नेतृत्व करने वाले डॉ. सुरेंद्र दलाल का निधन साल 2013 में हो गया था लेकिन उसके बाद भी उनका यह अभियान लगातार जारी है. आज भी किसानों की कीट साक्षरता को लेकर क्लास लगती है जिसमें कीटाचार्य सविता, मनीषा व रणबीर समेत कई किसान जानकारी देते हैं.

कीटों की सही जानकारी होना जरूरी
कीटाचार्य सविता का कहना है कि फसल के लिए भी कीट जरूरी हैं क्योंकि कीटों के बिना खेती संभव नहीं है. पौधे अपनी जरूरत के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की गंध छोड़कर कीटों को आकृषित करते हैं. कीट दो प्रकार के होते हैं- एक शाकाहारी तथा दूसरे मांसाहारी. शाकाहारी पौधों, फल, फूलों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं तो मांसाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं. यदि किसान शाकाहारी कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करे तो मांसाहारी कीट उन्हें स्वयं ही नियंत्रित कर लेते हैं.

पंजाब में भी दे रहे कीट ज्ञान का प्रशिक्षण
पिछले दो वर्षों से जींद जिले के कीटाचार्य किसान अपने खर्च पर हरियाणा के हिसार, सिरसा, फतेहाबाद व अन्य कई जिलों के साथ-साथ पंजाब के भठिंडा, मानसा व बरनाला जिलों में किसान खेत पाठशालाएं चलाकर किसानों को कीट ज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं. कीट ज्ञान के सहारे किसानों द्वारा कपास, धान, गेहूं, गन्ना तथा सब्जियों की फसलों में बिना कीटनाशकों का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लिया जा रहा.

कीटों को लेकर गाना भी बनाया
महिलाओं ने कीटों पर आधारित गीत भी तैयार किया है, जिसमें 'कांधै ऊपर जहर की टंकी मेरे कसूती रड़कै हो' के माध्यम से कीटनाशकों के प्रयोग से शरीर और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में बताया है. गीत के माध्यम से बताया गया कि किस प्रकार कीटनाशकों के कारोबारियों का धंधा जम रहा है और किसान बर्बाद हो रहा है.

इन किसानों की इस पद्धति पर मुहर लगाने वाली राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि इन किसानों द्वारा चलाई जा रही कीट ज्ञान की पद्धति को अपनाकर किसान फसल में रासायनिक, उर्वरकों व कीटनाशकों पर होने वाले खर्च को चार गुणा तक कम कर डेढ़ गुणा तक उत्पादन बढ़ा सकते हैं. वहीं रासायनिक उर्वरकों से दूषित होने वाले खान-पान व वातावरण को भी बचाया जा सकता है.

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