भुवनेश्वर : श्री जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा का आयोजन 23 जून को होना है. इस रथ यात्रा का मुख्य आकर्षण श्री जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का रथ होता है. तीनों के भव्य रथों को नंदीघोष, तलध्वज और दर्पदलन के नाम से जाना जाता है. कुछ लोग दर्पदलन को देबीदलन के नाम से भी पुकारते हैं, क्योंकि देवी सुभद्रा इस रथ में सवार होती हैं.
भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ गर्भगृह में स्थित रत्न सिंहासन को छोड़कर नौ दिनों के लिए अपने जन्म स्थान पर जाते हैं.
रथ यात्रा को 'घोष यात्रा' या 'श्री गुंडिचा यात्रा' के नाम से भी जाना जाता है. देवताओं और देवी की यात्रा के लिए उपयोग किए जाने वाले रथों का निर्माण और सजावट अत्यंत महत्वपूर्ण होती है.
वर्तमान में आगामी रथ यात्रा के लिए तीनों रथों का निर्माण कार्य पूरे जोरों पर चल रहा है. काम आखिरी चरण में पहुंच गया है. यह तीनों भव्य रथ एक विशेष शैली में बनाए जाते हैं.
भोई सेवादारों के प्रमुख रबिंद्र भोई ने बताया कि हर साल भव्य रथों के निर्माण के लिए आवश्यक लकड़ी का पवित्र संग्रह 'श्री पंचमी' पर शुरू होता है, जिसे 'सरस्वती पूजा' के नाम से भी जाना जाता है. यह उड़िया माह 'माघ' के उज्ज्वल चंद्र पखवाड़े के पांचवें दिन पड़ता है. पवित्र शुरुआत के बाद, रथों के लिए लकड़ी का संग्रह शुरू होता है.
उन्होंने बताया कि रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है. हर साल रथों का निर्माण 'श्री नाहर' (राजा का महल) के सामने शुरू होता था. इस साल कोरोना महामारी की वजह से मंदिर परिसर में निर्माण कार्य की शुरुआत हुई थी.
पारंपरिक पूजा के बाद बिस्वकर्मा सेवादार (प्रमुख बढ़ई) निर्माण कार्य शुरू करते हैं. रथ के निर्माण में 'भोई' सेवक, चित्रकार, लोहार और बढ़ई रथ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए कुल 58 दिनों की आवश्यकता होती है.
रथ यात्रा के दिन त्रिमूर्त्री 'अनासरा' (गुप्त उपचार कक्ष) से बाहर निकलते हैं और अपने भक्तों के सामने अपनी युवा शक्ति के साथ प्रकट होते हैं. भगवान की स्वीकृति की प्रतीक एक माला, मंदिर से आती है, जिसके बाद तीनों रथों को खींचकर मंदिर के सिंह द्वार के सामने रखा जाता है.
सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि रथों के निर्माण के लिए आवश्यक लकड़ी के गट्ठों को फीट या मीटर में नहीं मापा जाता है. रथ के सभी पुर्जों जैसे पहियों, खंभों, 'नखास', दधिहुति' (रथ का शीर्ष भाग) की माप प्रधान बढ़ई बिस्वकर्मा अपनी उंगलियों पर करते हैं. यह कौशल उन्होंने अपने पुरखों से सीखा है. यह कहीं और देखने को नहीं मिलता है.
भगवान जगन्नाथ के नंदीघोष रथ की ऊंचाई करीब 50 फीट होती है. रथ में 16 पहिए होते हैं और इसके निर्माण के लिए लकड़ी के 832 गट्ठे लगते हैं. देवी सुभद्रा के रथ दर्पदलन की ऊंचाई 46.5 फीट होती है. रथ में 12 पहिए होते हैं और इसके निर्माण के लिए लकड़ी के 593 गट्ठे लगते हैं. भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई भगवान बलभद्र के रथ तलध्वज की ऊंचाई 48 फीट होती है. रथ में 14 पहिए होते हैं और इसके निर्माण के लिए लकड़ी के 763 गट्ठे लगते हैं.
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नंदीघोष रथ को सजाने के लिए लाल और पीले कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है. दर्पदलन को लाल व काले कपड़े से और तलध्वज रथ को लाल और हरे कपड़े से सजाया जाता है.