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साल 2020 : भारत के लिए चीन की चुनौती कितनी अहम - india china relation

भारत और चीन के संबंधों के लिहाज से साल 2020 को कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता है. 1962 के बाद पहली बार ऐसी स्थिति बनी, जब चीन ने एलएसी पर हिंसा की शुरुआत की और इस हिंसा में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए. चीन के भी कई सैनिक मारे गए. चीन की कथनी और करनी में अब भी फर्क देखा जा सकता है. एक तरफ भारत जहां कूटनीति का रास्ता अपनाता रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन हमेशा ही भरोसा तोड़ने की नीति पर चलता रहा है. हमारी सरकार ने साफ कर दिया है कि वह सुरक्षा के मामलों में कोई भी रिस्क नहीं लेगी. जरूरत पड़ी, तो सेना चीन की हर चाल का उसी की भाषा में जवाब देगी.

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Published : Dec 29, 2020, 6:03 AM IST

Updated : Dec 31, 2020, 10:46 PM IST

हैदराबाद : चीन ने 2020 में वह काम किया, जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. वास्तविक नियंत्रण सीमा (एलएसी) का न सिर्फ उल्लंघन किया, बल्कि यहां पर लंबे समय से चले आ रहे शांति को भी भंग करने की कोशिश की, लेकिन वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सका. सीमा पर जवानों ने उन्हें उसी की भाषा में जवाब दिया, पर सवाल यही है कि आखिर भारत के लिए यह कितनी बड़ी चुनौती है और क्या उसे आगे कौन सा रास्ता अपनाना चाहिए. एक नजर डालिए, इस साल चीन की हरकतों और उस पर भारत के जवाब का.

भारत ने 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन के अतिक्रमण की कोशिशों के आलोक में अपने सामरिक हितों के अनुकूल क्षेत्रीय माहौल बनाने का दृढ़ संकल्प प्रदर्शित किया. पूर्वी लद्दाख में चीनी अतिक्रमण की कोशिशों ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को पिछले चार दशकों में सर्वधिक गंभीर नुकसान पहुंचाया है.

चीन के साथ सीमा पर गतिरोध गहराने के चलते भारत ने अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को नए सिरे से सुदृढ़ करने की कोशिश के तहत कूटनीतिक कदम उठाते हुए अमेरिका, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे विश्व के शक्तिशाली देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करने पर जोर दिया. इस कदम का एक बड़ा लक्ष्य अपना भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ाना तथा बीजिंग के विस्तारवादी व्यवहार के उलट शांति, स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रबल समर्थक के तौर अपनी स्थिति मजबूत करना था.

विदेश मंत्री की दो टूक

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष से दो टूक कह दिया कि 'इस अप्रत्याशित घटनाक्रम का द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.'

भारत ने अपनी चीन नीति पर एक मजबूत और स्पष्ट लकीर खींचते हुए पड़ोसी देश को सीमा प्रबंधन पर बातचीत के नियमों का उल्लंघन करते हुए लद्दाख गतिरोध शुरू करने के लिए जवाबदेह ठहराया.

भारत ने चीन को इस बात से भी अवगत कराया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति एवं स्थिरता शेष बचे संबंधों की प्रगति का आधार हैं और उन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता.

चीन के खिलाफ बदल गई भावना

चीन के साथ सहयोग बनाए रखने में भारत के दृष्टिकोण के बारे में पूछे जाने पर, जयशंकर ने कहा, '1975 के बाद पहली बार, सीमा पर भारत ने अपने 20 सैनिक खो दिए. इसने राष्ट्रीय भावना को बदल दिया.' हम सकारात्मक दिशा में बढ़ रहे थे.

विदेश मंत्री ने कहा कि लगभग तीन दशकों के उतार चढ़ाव के बीच हमारा संबंध सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा था. जबकि 30 साल पहले दोनों देशों के बीच वास्तव में कोई व्यापार नहीं था, आज चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है. उन्होंने कहा कि सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कई समझौतों के बावजूद, चीन सीमा पर हजारों सैनिकों को लाया था.

जयशंकर ने जिक्र किया कि हालांकि चीन इसके और ही कारण बताता है, लेकिन वास्तविकता में संबंधों पर असर पड़ा. जयशंकर ने माना कि संबंधों पर बुरा प्रभाव पड़ा, इन्हें कैसे पटरी पर लाया जाए ये बड़ा मुद्दा है. उन्होंने दोहराया कि भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के लिए बहुत स्पष्ट है.

सीमा गतिरोध दूर करने के लिए जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच 10 सितंबर को मास्को में एक बैठक में पांच सूत्री सहमति बनी थी.

'प्रतिक्रियाएं शुरू होंगी'

जयशंकर ने एक थिंक टैंक में कहा था, 'भारत के उभरने से खुद-ब-खुद प्रतिक्रियाएं शुरू होंगी. हमारे प्रभाव को कमजोर करने और हमारे हितों को सीमित करने की कोशिशें की जाएंगी. इनमें से कुछ सीधे सुरक्षा क्षेत्र में होंगी, कुछ अन्य अर्थव्यवस्था, संपर्क और यहां तक कि सामाजिक संपर्कों में दिखाई देंगी.

क्षेत्र में नए भू-राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं, ऐसे में भारत ने भी निकट पड़ोसी देशों, खाड़ी देशों, मध्य एशिया और आसियान देशों (दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्र संगठन) के साथ अपने रणनीतिक सहयोग की कोशिशों को दोगुना कर दिया.

पढ़ें- - साल 2020 : 45 साल बाद एलएसी पर हिंसा, युद्ध जैसे बने हालात

संसद में रक्षा मंत्री

पिछले कुछ दशकों में चीन ने सीमावर्ती इलाकों में बड़े पैमाने पर संरचना का विकास शुरू किया है, इससे उन इलाकों में सैन्य तैनाती की क्षमता बढ़ी है. इसके जवाब में हमारी सरकार ने भी अपना बजट बढ़ाया है. यह पहले से लगभग दोगुने से अधिक है. भारत ने भी सीमावर्ती इलाकों में काफी सड़क और पुलों का निर्माण किया है. इससे सशस्त्र बलों को बेहतर लॉजिस्टिकल सपोर्ट मिला है, इसके कारण हमारी सेना सीमा से सटे इलाकों में ज्यादा अलर्ट रह सकती हैं, और बेहतर जवाबी कार्रवाई भी कर सकती हैं. आने वाले समय में भी सरकार इस उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध रहेगी.

चीन ने किया समझौतों का उल्लंघन

उन्होंने कहा कि सरकार को देशहित में कितने भी सख्त और बड़े कदम उठाने पड़ें, हम पीछे नहीं हटेंगे. चीन की कार्रवाई से हमारे द्विपक्षीय समझौतों की अवहेलना स्पष्ट होती है. चीन द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती 1993 और 1996 के समझौतों का उल्लंघन है. युद्ध की शुरुआत तो हमारे हाथ में होती है, लेकिन इसका अंत नहीं होता. मुझे कई बार आश्चर्य होता है कि जिस भूमि से दुनियाभर में शांति का संदेश दिया गया है. उसकी शांति भंग करने की कोशिश की जाती है. देश की 130 करोड़ जनता को यह आश्वस्त करता हूं कि देश का मस्तक झुकने नहीं देंगे, न ही हम किसी का मस्तक झुकाना चाहते हैं, लेकिन राष्ट्र और इसकी सुरक्षा के प्रति हम दृढ़ संकल्प हैं.

चीन की मंशा

अगर भारत अमेरिका के करीब जाता है, तो चीन और रूस का संबंध और अधिक प्रगाढ़ होगा. इससे भारत को नुकसान हो सकता है, क्योंकि रूस से उसके ऐतिहासिक और पारंपरिक संबंध रहे हैं.

भारत रक्षा खर्च पर बजट बढ़ाने पर बाध्य होगा

भारत की लूक ईस्ट नीति प्रभावित होगी. भारत पहले ही आरसीईपी से बाहर आ चुका है. नेपाल और भूटान जैसे देश भारत से दूरी बढ़ा सकते हैं, क्योंकि चीन का मानना है कि भारत पर वह दबाव बनाने में कामयाब रहा है.

अमेरिका के लिए भारत और चीन में से एक को चुनना कठिन होगा. वह चाहता है कि दोनों से संबंध बने रहे लेकिन, हाल ही में ट्रंप प्रशासन के तहत भारत अमेरिका के काफी नजदीक आया. बाइडेन ऐसा करेंगे, अभी यह कहना मुश्किल है. बाइडेन चीन के प्रति नरम रवैया रखने के लिए जाने जाते हैं.

रणनीतिक रूप से भारत के लिए यह मुफीद होगा कि वह अमेरिका के करीब जाए, ताकि चीन की ओर से मिलने वाली किसी भी चुनौती से निपटने के दौरान मदद हासिल हो सके. वैसे, बचाव हर देश अपनी शक्ति के अनुसार ही करता है और भारत इसमें सक्षम है.

भारत और अमेरिका को आर्थिक क्षेत्र में अधिक नजदीकी से काम करने और सफल होने की जरूरत है. साथ ही दोनों को चीन की उत्पादन क्षमता के साथ प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत है.

Last Updated : Dec 31, 2020, 10:46 PM IST

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