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सौर ऊर्जा : केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर लिखी सफलता की कहानी

सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत ने बहुत कम समय में उल्लेखनीय प्रगति की है. सम्मिलित प्रयास, आक्रामक नीति और निजी क्षेत्रों की सहभागिता से ही यह संभव हो सका. वैसे, कई समस्याएं भी आईं. खासकर भूमि अधिग्रहण की. लेकिन एक बार जब इसके लिए नीति बना ली गई, तो फिर उसका दृढ़ता से पालन किया गया. आइए विस्तार से जानते हैं भारत की सौर ऊर्जा नीति के बारे में.

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Published : Jan 10, 2021, 4:21 PM IST

सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा

हैदराबाद : आईआरईएनए ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2010 से 2018 के बीच भारत ने सौर ऊर्जा में लगने वाली लागत को काफी कम किया है. आज पूरी दुनिया में सबसे अधिक सौर ऊर्जा से सस्ती बिजली भारत में बनाई जाती है. यह दुनिया का एक मात्र देश है, जिसने अपनी लागत घटाई है. 2010 में भारत की क्षमता मात्र 10 मेगावाट की थी, लेकिन 2016 में 600 गुना अधिक यानी 6000 मेगावाट की क्षमता प्राप्त कर ली. मार्च 2019 तक भारत की क्षमता 30 गीगा वाट तक पहुंच गई. हमने 2022 के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं, उसका 38 फीसदी हिस्सा हमने अब तक पा लिया है. भारत ने यह लक्ष्य सरकार और निजी भागीदारी की बदौलत हासिल की है.

सफलता में सरकार की भूमिका
सरकार ने दो प्रमुख संस्थान बनाए. पहला है नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और दूसरा है- सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई).

सम्मिलित प्रयास. आक्रामक नीति. नीतियों का दृढ़ता से पालन. इसकी बदौलत ही भारत पांचवां सबसे बड़ा सोलर इंस्टॉलर देश बन गया.

2010 में राष्ट्रीय सोलर मिशन का गठन. तब एक यूनिट की लागत 17 रु. पड़ती थी, आज यह लागत घटकर 2.44 रु. हो गई है.

यह प्रतिस्पर्धी टैरिफ-आधारित बोली द्वारा संभव हुआ है. इसे एसईसीआई, राज्य और केंद्र सरकार ने निविदाओं के लिए अपनाया है. राज्य की निविदा में भी यह बड़ी भूमिका निभा रहा है. बिजली राज्य का विषय है. तमिलनाडु और कर्नाटक ने सोलर प्रोजेक्ट्स के लिए बैंकिंग सुविधाओं को बेहतर बनाया है. हाल ही में यूपी और हरियाणा ने इसी नीति को अपनाया है.

समय-समय पर मंत्रालय ने लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाया.

आरपीओ को राज्य डिस्कॉम के साथ-साथ बड़े बिजली उपभोक्ताओं पर ’ग्रीन’ स्रोतों से उत्पन्न बिजली खरीदने के लिए लगाया गया था. हालांकि राज्य स्तर पर इसे लागू करने में उतनी सफलता नहीं मिली.

2010 से सरकार और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी और प्रोत्साहन सौर ऊर्जा को अपनाने में सहायक रहे हैं. रूफ टॉप सौर संयंत्र काफी तेजी से विकसित हुआ.

2010 और 2015 के बीच कर प्रोत्साहन दिया गया. शुरुआती दौर में रूफटॉप सौर परियोजनाओं के लिए 30 फीसदी तक सब्सिडी दी गई. हालांकि, अब इसे गैर लाभकारी और सरकारी भवनों तक सीमित कर दिया गया है.

उद्योग को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने क्षेत्र के उच्च विकास को सुनिश्चित करने के लिए कस्टम और उत्पाद शुल्क लाभ की अनुमति दी. जीएसटी लागू होने से, इनमें से कुछ लाभ उपलब्ध नहीं हैं. सेफगार्ड ड्यूटी लगाने से पीवी मॉड्यूल पर आयात लागत बढ़ गई है.

जैसे-जैस सौर ऊर्जा के उत्पादन में लागत घटती गई, सरकार ने सब्सिडी कम कर दिया है.

अब समय की मांग है कि सरकार उत्पादकों के बजाए ग्राहकों को सौर ऊर्जा की बिजली खरीद के लिए राहत दे, ताकि वे अधिक से अधिक ग्रीन ऊर्जा का उपयोग कर सकें. कृषि, आवासीय और एमएसएमई को प्राथमिकता दी जा सकती है.

भूमि अधिग्रहण हमेशा से बड़ी समस्या रही है. इसकी वजह से बुनियादी ढांचा विकसित करने में लागत बढ़ जाती है.

2016 के आंकड़े बताते हैं कि सौर ऊर्जा की कुल लागत में सात फीसदी का योगदान भूमि का होता है. नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का मुख्य जोर वैसी भूमि की पहचान करने पर होता है, जो गैर कृषि भूमि है. साथ ही यह रिहायसी इलाकों से दूर हो. संभवतः यह बड़ी वजह ही है कि सौर ऊर्जा की लागत लगातार घटती रही है.

भारत की जलवायु के हिसाब से यहां पर औसतन 240-300 दिनों तक धूप मिल जाती है. अधिकांश सूखे इलाकों में धूप की तीव्रता अच्छी रहती है. स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा होने की भी संभावना रहती है.

संयुक्त अरब अमीरात के मुकाबले भारत में इसकी लागत पांच गुनी कम पड़ती है. हमारे यहां सस्ता श्रम उपलब्ध है.

भारत ने 5 ट्रिलियन आर्थिक लक्ष्य का निर्धारण किया है, उसमें सौर ऊर्जा बड़ी भूमिका निभा सकता है. 18 महीने में 500 मेगावाट की क्षमता वाला सोलर प्लांट बनाया जा सकता है. अगर थर्मल या हाइड्रो प्रोजेक्ट बनानी हो, तो इसमें तीन गुना अधिक समय लगता है.

सोलर प्लांट बनाने में बहुत अधिक दक्षता प्राप्त श्रमिकों की जरूरत नहीं होती है. अगर एक तिहाई दक्ष मजदूर हों, तो भी इसका निर्माण किया जा सकता है.

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर, नेचुरल रिसोर्स डिफेंस काउंसिल और स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2019 में नवीकरणीय ऊर्जा कार्यबल पिछले पांच सालों में पांच गुना अधिक बढ़ गई है.

भारत बहुत कम कीमत पर सौर ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है. दूसरे देशों की तुलना में सौर पैनल, इनवर्टर, जंक्शन बॉक्स कम कीमत पर उपलब्ध है.

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