छोटे किसानों के लिये अनुबंध खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) उनकी कमाई का महत्वपूर्ण हिस्सा है. अगर देश के छोटे किसानों के आर्थिक हालात बेहतर होंगे, तो देशभर में कृषि क्षेत्र पर इसका अच्छा असर पड़ेगा और देश तरक्की करेगा. कृषिशास्त्रीय खेती छोटे किसानों को बाजार में बने रहने के लिये नई तकनीक, मैनेजमेंट तकनीक, लोन, बाजार की जानकारियां आदि मुहैया कराती हैं. इस तरह से किसानों के लिये खेती की लागत में कमी आती है. वैसे, संस्थान जो किसानों के साथ खेती के लिये अनुबंध करते हैं, वो उन्हें नई तकनीक, मशीनें, लोन और निवेश मुहैया कराते हैं. खाद्य अनुबंध उद्योग और कृषि आयात तब ही बढ़ेंगे, जब अनुबंध खेती कामयाब हो सकेगी. इस तरह से गांवों की कमाई में भी इजाफा होता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलता है.
नियमों का उल्लघंन
ऐसा कई बार हुआ है जब कंपनियों और किसानों ने अनुबंध खेती की शर्तों का उल्लघंन किया है. अनुबंध में दिये दामों से बाजार भाव ऊपर होने की सूरत में किसान इस करार को तोड़ते हैं. वहीं कंपनियां बाजार भावों के करार दामों से नीचे आने पर इसे तोड़ती हैं. चित्तूर जिले में टमाटर की खेती करने वाले किसानों का इस मामले में खराब अनुभव रहा है. ऐसे ही कारणों से कृष्णा, प्रकाशम और खमम्म जिले में कंपनियां किसानों को भुगतान करने में देरी करती आ रही हैं. चित्तूर में घरकीन खीरा उगाने वाले किसानों को बाजार भाव से कम दाम मिल रहे हैं. यहां तक कि कंपनियों ने बार-बार किसानों से किये गये करार से कम दाम किसानों को दिये हैं. करार की शर्तों को बार-बार तोड़ना कंपनियों के लिये आम बात हो गई है. तमिलनाडु में ब्रॉयलर मुर्गियां खरीदने वाली कंपनियों ने आखिरी समय में करार से कम दाम चुका कर राज्य के किसानों को कई बार ठगा है. ये करने के लिये कंपनियां कई करह के हथकंडे अपनाती हैं, जिनमें तय समय से पहले खरीदना और रोपाई के बाद खरीद करना शामिल है. किसी भी सूरत में कंपनियां अपने मुनाफे को कायम रखना चाहती हैं. किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसे मामले भी सामने आये हैं जब किसानों को भुगतान में 60 दिनों तक की देरी हुई है. कंपनियों से पहले ही निवेश लेने के कारण किसानों के पास इस स्थिति को झेलने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. इन हालातों से बचाने के लिये एक ठोस कानूनी प्रणाली की जरूरत है. इन करारों को कानूनी तरह से लागू करने का प्रवधान होना चाहिये. इसके लिये इन कारारों को रजिस्टर कराना जरूरी होना चाहिये. ऐसे प्रवधानों की कमी के कारण कंपनियां अपनी जिम्मेदारियों से बच निकलती हैं, और किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
इन हालातों से निपटने के लिये केंद्र सरकार ने 24 दिसंबर, 2017 को एक सैंपल कॉन्ट्रैक्ट एग्रीमेंट ऑफ प्रमोशन ड्राफ्ट किया था. इस कानून के माध्यम से खाद्य प्रसंसकरण करने वाली कंपनियों को नई तकनीकों और संसाधनों में निवेश के लिये प्रोत्साहित कर छोटे किसानों को दामों की अस्थिरता से बचाने का लक्ष्य है. इस आधार पर तमिलनाडु अनुबंधित खेती पर विधायक लाने वाले देश का पहला राज्य बन गया है. इस कानून को तमिलनाडु प्रोटेक्शन ऑफ एग्रीकल्चर, डेयरींग कॉन्ट्रैक्ट एग्रीक्लचर एंड सर्विसेज एक्ट कहा जाता है. इस कानून को हाल ही में देश के राष्ट्रपति की सहमति भी मिल गई है. राज्य सरकार का कहना है कि इस कानून का मकसद है किसानों को बाजार की अस्थिरता को देखे बिना, करार में लिखे गये दाम दिलाना. कानून के तहत करारों को राज्य एग्री-मार्केटिंग एंड एग्री बिजनेस विभाग में पंजीकृत कराना जरूरी है. राज्य सरकार करार को लागू कराने के लिये छह सदस्यों वाले तमिलनाडु स्टेट प्रमोशनल एग्रीकल्चर एंड सर्विसेज प्रमोशन ऐजेंसी का गठन करेगी. डेयरी और फसलों की खेती में करार काम करने से पहले से लेकर उत्पाद होने तक रहते हैं. किसानों के लिये अनुबंधित कंपनियों से नई तकनीक लेकर ऊपज बढ़ाने का विकल्प रहता है.