हैदराबाद : हर साल 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच दिल्ली और उससे सटे बड़ी आबादी वाले शहरों नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद के लोगों को सांस लेने तक में दिक्कत होने लगती है. सांस लेने की परेशानी वायु में प्रदूषण बढ़ने के कारण होती है और पिछले 10 वर्षों में यह समस्या लगातार विकराल रूप लेती जा रही है. सुप्रीम कोर्ट तक इस पर चिंता जता चुकी है. केंद्र से लेकर राज्य सरकारें इसे रोकने के लिए तरह-तरह के उपाय कर रही हैं मगर 15 अक्टूबर और 15 नवंबर के बीच होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने में अब तक नाकाम रही हैं. इसके बाद हर जगह एक ही शब्द सुनाई देता है 'पराली'. आइए आज जानते हैं पराली के बारे में और क्या पराली ही एकमात्र कारण है 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच दिल्ली और उससे सटे शहरों में वायु प्रदूषण का? क्यों और कब से पराली की समस्या शुरू हुई? कैसे और कब मिलेगी इससे निजात?
पराली क्या है?
पराली धान के बचे हुए हिस्से को कहते हैं. इसकी जड़ें धरती में होती हैं. किसान धान की फसल पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं. ऊपरी हिस्सा ही काम का होता है. बाकी का हिस्सा किसान के किसी काम का नहीं होता. इसी बाकी के हिस्से को पराली कहते हैं. राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली ज्यादा होने और जलाने की वजह यह भी है कि किसान अपना समय बचाने के लिए मशीनों से धान की कटाई करवाते हैं. मशीनें धान का सिर्फ उपरी हिस्सा काटती हैं और और नीचे का हिस्सा बच जाता है. देश के अन्य हिस्सों के किसान धान को मजदूरों से या स्वयं काटते हैं तो उनके खेतों में पराली नहीं के बराबर बचती है. बाद में किसान इस पराली को चारे के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं. राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक तो मजदूरी महंगी है और दूसरे धान की कटाई के वक्त पर्याप्त संख्या में मजदूर उपलब्ध भी नहीं हो पाते. दरअसल, मनरेगा जैसी योजनाओं के चलते किसानों को सस्ते मजदूर नहीं मिलते. पराली जलाने वाले प्रदेशों में पहले बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से मजदूर आया करते थे, परन्तु अब स्थानीय स्तर पर अपने राज्यों में ही मनरेगा के माध्यम से मजदूरी मिलने के चलते कम संख्या में ही ये पलायन करते हैं.
दिल्ली और उसके आसपास के शहर ही क्यों होते हैं प्रभावित?
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नजदीक होने के कारण दिल्ली और उससे सटे शहरों में पराली का सबसे विभत्स रूप देखने को मिलता हैं. दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद में बड़ी आबादी निवास करती हैं. इसके कारण इन क्षेत्रों में हरित क्षेत्र बहुत कम हैं. औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण भी यहां सालों भर वायु प्रदूषण रहता है. इन शहरों में वाहनों की अधिक संख्या भी वायु प्रदूषण को बढ़ाए रखती है. सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर की तरफ पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि से हवाएं आती हैं. पंजाब व हरियाणा से ये हवाएं पराली से उत्पन्न प्रदूषण को लाती हैं, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से प्रदूषण के साथ-साथ नमी भी लाती हैं. इस तरह से प्रदूषण और नमी मिलकर दिल्ली-एनसीआर में एक भयंकर स्मॉग के बादल का निर्माण करते हैं. दिल्ली की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि सर्दियों में यहां हवाएं आकर ठहर सी जाती हैं और दिल्ली के चारों तरफ एक कंबल का निर्माण करती हैं. चेन्नई, मुंबई और कोलकाता जैसे तटीय शहरों की तरह दिल्ली के भी हवाओं में गतिशीलता होती तो प्रदूषण के बादल छट सकते थे, किन्तु समुद्र के न होने के कारण स्थलीय व समुद्री समीर का प्रवाह नहीं होता है और पवनें ठहर सी जाती हैं और दिल्ली-एनसीआर गैस चैंबर में तब्दील हो जाती है.
पराली के कई तरह के हैं समाधान पर हुए फेल
पराली को ट्रैक्टर में छोटी मशीन (रपट) द्वारा काटकर खेत में उसी रपट द्वारा बिखेरा जा सकता है. इससे आगामी फसल को प्राकृतिक खाद मिल जाएगी और प्राकृतिक जीवाणु व लाभकारी कीट जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली के अवशेषों में ही पल जाएंगे. पराली को मशीनों से उखाड़कर एक जगह 2-3 फीट का खड्डा खोदकर उसमें जमा कर सकते हैं. उसकी एक फुट की तह बनाकर उस पर पानी में घुले हुए गुड़, चीनी, यूरिया, गाय-भैंस का गोबर इत्यादि का घोल छिड़क दें और थोड़ी मिट्टी डालकर हर 1-2 फुट पर इसे दोहरा दें तो एनारोबिक बैक्टीरिया पराली को गलाने में सहायक हो जाते हैं. इतना ही नहीं पराली का प्रयोग चारा और गत्ता बनाने के अलावा बिजली बनाने के लिए भी हो सकता है. गैसीफायर द्वारा गैस बनाकर ईंधन के रूप में मिथेन गैस मिल सकती है. मगर कुछ किसानों को भ्रम है कि पराली जलाने से खेतों को फायदा होता है. वहीं ज्यादातर किसान फसल बिजाई की जल्दी और तमाम तरह के झंझटों से बचने के लिए पराली जलाना ज्यादा पसंद करते हैं.
क्या है जुर्माने का प्रावधान
एनजीटी के आदेशानुसार दो एकड़ में फसलों के अवशेष जलाने पर 2500 हजार रुपये, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5 हजार रुपये, 5 एकड़ से अधिक जमीन पर धान के अवशेष जलाने पर 15 हजार रुपये जुर्माना किया जाएगा. इसके लिए जिम्मेदारी सरकार ने जिला राजस्व अधिकारी की तय की है. एनजीटी के अनुसार, यह जुर्माना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लिया जाता है.
सैटलाइट से रखी जा रही है निगाह
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर हरियाणा राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड गांवों में निगाह रख रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार किसान के धान के अवशेष जलाने की गतिविधियों पर ग्रामीण कमिटी के साथ सैटलाइट भी नजर रख रहा है. धान के अवशेष जलाने पर जिला कमिटी या ग्रामीण कमिटी कार्रवाई नहीं करेंगी तो सैटलाइट के आधार पर कार्रवाई तय है.