सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार संसद के चालू सत्र में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) लाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस विधेयक को लेकर मजबूती से वर्तमान सरकार कोशिश कर रही है. लेकिन यह पूर्वी भारतीय राज्यों में एक बड़े खतरे की आहट दे रहा है. हालांकि इस आहट से पहले एक अलग तरह की शांति व्याप्त है.
दरअसल पूर्वी भारत के छात्र संगठन समेत कई संगठनों ने मुखर विरोध की घोषणा की है और विरोध कार्यक्रमों की घोषणा भी कर दी है.
ऐसे समय, जब नागालैंड, मणिपुर, असम, मेघालय और त्रिपुरा में अधिकतर प्रमुख सशस्त्र विद्रोही संगठनों की सरकार के साथ इस क्षेत्र में बातचीत चल रही है. इस कारण पिछले कुछ समय से शांति का माहौल भी देखने को मिल रहा है.
हालांकि केंद्र सरकार के 'एक्ट ईस्ट' नीति पर ध्यान देने के कारण पूर्वोत्तर भाग में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को बनाकर वाणिज्य के माध्यम से लोगों में आर्थिक विकास की अग्रदूत बनने की उत्सुकता भी पैदा हुई है.
सीएबी मुद्दे पर असम के सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक मयूर बोरा कहते हैं कि यह भारतीय संविधान के मूल और भावना के खिलाफ है क्योंकि यह धर्म के आधार पर अंतर करता है और हमारे निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बनाए नहीं रखता. यह असम समझौते का भी हनन है, जिसपर 34 साल पहले हस्ताक्षर किया गया था और अब तक जिसे लागू नहीं किया गया है.'
कई पुस्तकों के लेखक कहते हैं, 'ठीक है, यदि आप सीएबी को लागू करना चाहते हैं तो करें, लेकिन पूर्वोत्तर के लिए विशेष प्रावधान करें, जिसमें बहुत ही नाजुक जनसांख्यिकीय का संतुलन है. पूर्वोत्तर में जबरदस्ती सीएबी से बहुत ही अशांति की आंशका है.'
बता दें कि सीएबी अनिवार्य रूप से नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने का प्रस्ताव है. अतीत में नागरिकता अधिनियम में 1986, 1992, 2003, 2005 और 2015 में संशोधन किया गया था. विधेयक में तीन देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) से आये छह धर्मों (हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) के लोगों को नागरिकता मिल सकती है. लेकिन इसके लिए अन्य बातों के अलावा उन्हें आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले तक भारत में निवास और 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में बिताने की शर्त पूरी करनी पड़ेगी.
पूर्वी क्षेत्र के लोगों द्वारा सीएबी का विरोध इसलिए किया जा रहा है कि एक जनसांख्यिकीय परिवर्तन का डर है, जो इनके अस्तित्व पर सवाल उठा सकता है.
इस मुद्दे पर इम्फाल के प्रमुख वकील बिस्वजीत सपम कहते हैं, 'लंबे समय तक यह क्षेत्र उग्रवाद आंदोलनों से प्रभावित रहा. अब हिंसा और अशांति फैलना कम हुआ और पूर्वोत्तर क्षेत्र अपेक्षाकृत शांत रहा है. लेकिन फिर से सरकार लोगों की वास्तविक भावनाओं की परवाह किए बिना कैब में धकेलना चाहती है. यह केवल और अधिक समस्याएं पैदा करेगा.'