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पूर्वोत्तर राज्यों में एक बड़े खतरे की आहट दे रहा नागरिकता संशोधन विधेयक - हिंसक आंदोलन

पूर्वोत्तर में सात राज्य शामिल हैं. यह एक अगल तरह की इकाई है. कई चीजें हैं- जातीयता, सांस्कृतिक, व्यवहारिक, विश्वास और मूल्य प्रणाली-जो इसे मुख्य भूमि (भारत के अन्य क्षेत्र) से अलग करती हैं. दरअसल सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार संसद के इस सत्र में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करने रही है, जिससे पूर्वोत्तर भारत राज्यों में एक बड़े खतरे की आहट दे रहा है. पढ़ें क्या खतरा हो सकता है...

प्रतीकात्मक चित्र

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Published : Nov 19, 2019, 4:21 PM IST

सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार संसद के चालू सत्र में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) लाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस विधेयक को लेकर मजबूती से वर्तमान सरकार कोशिश कर रही है. लेकिन यह पूर्वी भारतीय राज्यों में एक बड़े खतरे की आहट दे रहा है. हालांकि इस आहट से पहले एक अलग तरह की शांति व्याप्त है.

दरअसल पूर्वी भारत के छात्र संगठन समेत कई संगठनों ने मुखर विरोध की घोषणा की है और विरोध कार्यक्रमों की घोषणा भी कर दी है.

ऐसे समय, जब नागालैंड, मणिपुर, असम, मेघालय और त्रिपुरा में अधिकतर प्रमुख सशस्त्र विद्रोही संगठनों की सरकार के साथ इस क्षेत्र में बातचीत चल रही है. इस कारण पिछले कुछ समय से शांति का माहौल भी देखने को मिल रहा है.

हालांकि केंद्र सरकार के 'एक्ट ईस्ट' नीति पर ध्यान देने के कारण पूर्वोत्तर भाग में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को बनाकर वाणिज्य के माध्यम से लोगों में आर्थिक विकास की अग्रदूत बनने की उत्सुकता भी पैदा हुई है.

सीएबी मुद्दे पर असम के सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक मयूर बोरा कहते हैं कि यह भारतीय संविधान के मूल और भावना के खिलाफ है क्योंकि यह धर्म के आधार पर अंतर करता है और हमारे निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बनाए नहीं रखता. यह असम समझौते का भी हनन है, जिसपर 34 साल पहले हस्ताक्षर किया गया था और अब तक जिसे लागू नहीं किया गया है.'

कई पुस्तकों के लेखक कहते हैं, 'ठीक है, यदि आप सीएबी को लागू करना चाहते हैं तो करें, लेकिन पूर्वोत्तर के लिए विशेष प्रावधान करें, जिसमें बहुत ही नाजुक जनसांख्यिकीय का संतुलन है. पूर्वोत्तर में जबरदस्ती सीएबी से बहुत ही अशांति की आंशका है.'

बता दें कि सीएबी अनिवार्य रूप से नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने का प्रस्ताव है. अतीत में नागरिकता अधिनियम में 1986, 1992, 2003, 2005 और 2015 में संशोधन किया गया था. विधेयक में तीन देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) से आये छह धर्मों (हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) के लोगों को नागरिकता मिल सकती है. लेकिन इसके लिए अन्य बातों के अलावा उन्हें आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले तक भारत में निवास और 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में बिताने की शर्त पूरी करनी पड़ेगी.

पूर्वी क्षेत्र के लोगों द्वारा सीएबी का विरोध इसलिए किया जा रहा है कि एक जनसांख्यिकीय परिवर्तन का डर है, जो इनके अस्तित्व पर सवाल उठा सकता है.

इस मुद्दे पर इम्फाल के प्रमुख वकील बिस्वजीत सपम कहते हैं, 'लंबे समय तक यह क्षेत्र उग्रवाद आंदोलनों से प्रभावित रहा. अब हिंसा और अशांति फैलना कम हुआ और पूर्वोत्तर क्षेत्र अपेक्षाकृत शांत रहा है. लेकिन फिर से सरकार लोगों की वास्तविक भावनाओं की परवाह किए बिना कैब में धकेलना चाहती है. यह केवल और अधिक समस्याएं पैदा करेगा.'

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बिस्वजीत ने कहा, 'लोगों की राजनीतिक और आर्थिक सुरक्षा की गारंटी के लिए संवैधानिक परिवर्तनों की तत्काल आवश्यकता है.'

ज्ञात हो कि पूर्वोत्तर में सात राज्य शामिल हैं. यह एक अगल तरह की इकाई है. कई चीजें हैं- जातीयता, सांस्कृतिक, व्यवहारिक, विश्वास और मूल्य प्रणाली-जो इसे मुख्य भूमि (भारत के अन्य क्षेत्र) से अलग करती हैं.

पूर्वोत्तर एक अलग इतिहास के साथ अपनी स्वयं की सीमाओं को तराशता और आकार देता है, चाहे वह नागाओं और अन्य जनजातियों या असमियों और मणिपुरियों के स्वतंत्र और शक्तिशाली राजतंत्रों के मुक्त रहने के तरीके हों, यह मध्यकालीन युग के दौर से अपनी खास पहचान मुख्य भूमि (भारत के अन्य क्षेत्र) से अलग रहा है.

जमीनी इकाई के रूप में यह क्षेत्र 22 किमी की लंबाई वाले भू-भाग से मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है. इसे अक्सर 'मुर्गे की गर्दन' के रूप में जाना जाता है. इसकी शेष सीमा भूटान, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश के साथ लगती है. उल्लेखनीय है कि 2017 की गर्मियों में डोकलाम गतिरोध के दौरान 73 दिनों तक भारतीय सैनिकों ने ऊंचे पहाड़ों से इस संकीर्ण भूमि की भेद्यता की रक्षा की थी, जो कि 73 दिनों के लिए चीनी सेना के हटने के बाद खत्म हुआ था.

ऊंचाइयों पर स्थित 22 किमी के गलियारे का नियंत्रण विशाल सैन्य महत्व के साथ एक महत्वपूर्ण सामरिक मुद्दा भी है.

ब्रिटिश शासन के दौरान आधुनिक जीवन शैली, शिक्षा और पश्चिमी परम्पराओं के लिए उठाए उनके कदम ने भी यहां के क्षेत्रीय लोगों के बीच संघर्ष की विरासत का पोषण किया. इस तरह की पृष्ठभूमि में कई क्षेत्रों ने एक अलग पहचान की अवधारणा के आधार पर हिंसक आंदोलनों को देखा. नतीजतन, असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा उग्रवाद आंदोलनों से तारतार हुए. इनमें नागाओं का आंदोलन दुनिया का दूसरा सबसे लंबे समय तक चलने वाला उग्रवाद आंदोलन है.

नागालैंड की एक लेखिका और नृवंश विज्ञानी तेमूला एओ कहती हैं, 'सीएबी के पीछे के कारण संदिग्ध है और पूर्वोत्तर लोगों की भावनाओं की समझ में कमी दिखाती है.'

वह कहती हैं, 'यह एक खतरा होगा, जोकि पूर्वोत्तर में अशांति का कारण बन सकता है. काफी लंबे समय के बाद यहां कुछ शांति दिख रही थी.'

(संजीब कुमार बरुआ)

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