कोलकाता : विवादों का सामना कर रहा नागरिकता (संशोधन) विधेयक आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हवा का रुख निर्धारित करने वाला है और 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले इससे राज्य में सांप्रदायिक आधार पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच ध्रुवीकरण और अधिक तूल पकड़ सकता है.
विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद 294 सदस्यीय राज्य विधानसभा के लिए अगले चुनाव में बहुसंखयक समुदाय के वोटों को रिझाने के लिए तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच हिंदू तुष्टिकरण की नई लहर शुरू होने की भी संभावना है.
बता दें कि लोकसभा के बाद राज्यसभा ने बुधवार को नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पारित कर दिया.
प्रदेश भाजपा सूत्रों के मुताबिक संसद में इस विधेयक के पारित होने से भगवा पार्टी के पक्ष में हिंदू वोटों के और तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण बढ़ने की संभावना है.
एक ओर जहां बंगाल भाजपा राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की हिमायत करने के बाद उसका फायदा नहीं मिलने में नाकाम रहने के बाद नागरिकता विधेयक का लाभ मिलने की काफी आस लगाए बैठी है.
वहीं दूसरी ओर तृणमूल को लगता है कि यह एनआरसी की तरह ही भगवा पार्टी को नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि ये दोनों चीजें बंगालियों और बंगाली गौरव पर हमला हैं.
करीब 80 विधानसभा क्षेत्रों (नदिया, कूचबिहार, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों) के चुनाव में हिंदू शरणार्थी अहम भूमिका निभाते हैं जबकि लगभग 90 सीटों पर मुसलमान मतदाताओं की अच्छी खासी आबादी है.
इसके अलावा हिंदू शरणार्थी करीब 40--50 अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी फैले हुए हैं जहां निर्वाचक मंडल में उनकी हिस्सेदारी 10 से 15 फीसदी है.
प्रदेश भाजपा प्रमुख दिलीप घोष ने कहा, 'ना ही टीएमसी ना ही वाम मोर्चा ने कई दशकों में शरणार्थियों के लिए कुछ किया. यह भाजपा है जो उन्हें नागरिकता दे रही है. इसलिए भाजप को इसका फायदा मिलेगा.'