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पूर्वोत्तर राज्यों में सीएए का मुद्दा शेष भारत से बिल्कुल अलग है : उपमन्यु हजारिका

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ (सीएए) लगाई गई याचिकाओं को अलग से सुनने का फैसला किया है. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता उपमन्यु हजारिका से बात की है. पढ़ें विस्तार से...

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Published : Feb 15, 2020, 5:07 PM IST

Updated : Mar 1, 2020, 10:46 AM IST

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उपमन्यु हजारिका

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आने वाली असम और त्रिपुरा की याचिकाओं पर अलग से सुनवाई करने का फैसला किया हैै. इस पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता उपमन्यु हजारिका ने ईटीवी भारत से बात की. उनका कहना है कि असम और त्रिपुरा के सीएए के मामले को भारत के बाकी हिस्सों से अलग करना बहुत अधिक महत्व रखता है.

हजारिका ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम का पूर्वोत्तर में अधिकतम प्रभाव है. क्योंकि इस क्षेत्र में बांग्लादेश से सबसे ज्यादा घुसपैठ हुई है.

उपमन्यु हजारिका से बातचीत

1971 के लिबरेशन युद्ध से पहले और बाद में, बांग्लादेश से पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर लोग आए थे. इस तरह की आमद को गैरकानूनी करार देते हुए, विभिन्न संगठनों विशेषकर क्षेत्र के छात्र निकायों ने इस अवैध आमद के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया.

हजारिका ने कहा भारत में कुल 525 जातीय समुदायों में से 247 पूर्वोत्तर में हैं और उनमें भी 115 असम में हैं. ऐसे समुदायों की आबादी 3.5 से 4 करोड़ के आस पास होगी, जो भारत की कुल जनसंख्या का 3 प्रतिशत है.

हजारिका ने कहा कि इन 3 प्रतिशत भारतीय आबादी और 50 प्रतिशत जातीय समुदाय की अपनी अलग संस्कृति और परंपरा है. उन्हें सुरक्षा प्रदान करना और उन्हें विलुप्त होने से बचाना बहुत महत्वपूर्ण है.

उन्होंने मुक्त पूर्वोत्तर राज्यों पर इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के प्रावधान पर भी प्रकाश डाला.

हजारिका ने कहा कि किसी भी तरह की घुसपैठ से जनजातियों की पहचान खतरे में नहीं पड़नी चाहिए. यही वजह है कि अंग्रेजों ने आईएलपी की शुरुआत की थी. साथ कुछ स्थानीय कानून भी हैं जो क्षेत्र के संसाधनों पर स्थानीय लोगों को विशेष अधिकार प्रदान करते हैं.

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हजारिका ने कहा कि शेष भारत के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक 'प्रतीकात्मक मूल्य' रखता है.

उन्होंने कहा कि शेष भारत में सीएए एक प्रतीकात्मक है क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है, जहां देश का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना खतरे में है. इससे किसी भी स्थानीय आबादी के लिए कोई खतरा नहीं है.

हजारिका ने कहा कि पूर्वोत्तर को मिलने वाली राहत अलग पैमाने की होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि जब आप (सुप्रीम कोर्ट) एक अलग मामला बनाते हैं, तो आदेश या राहत भी अलग हो सकती है.'

दिलचस्प बात यह है कि सीएए के खिलाफ कई याचिकाओं को शामिल करते हुए अपनी पहली सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने असम और त्रिपुरा की याचिकाओं को संयोजित करने और उन्हें शेष भारत से आने वाली अन्य याचिकाओं से अलग से सुनने का फैसला किया है.

Last Updated : Mar 1, 2020, 10:46 AM IST

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