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बदलते समय के साथ पाठ्यक्रम में भी बदलाव जरूरी - महात्मा गांधी

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020) में कार्य-आधारित अध्ययन को प्राथमिकता दी गयी है. महात्मा गांधी ने एक ऐसी ही शिक्षा की प्रणाली की कामना की थी, जो छात्र के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित हो. यदि स्कूल में वाणिज्य प्रारंभिक अवस्था में सिखाया जाने लगेगा, तो छात्र अपने उद्यमिता कौशल को और धार दे सकेंगे. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 20, 2020, 9:05 PM IST

हैदराबाद :एक समय पर शिक्षा का उद्देश्य केवल छात्रों का ज्ञानवर्धक करना था. लेकिन आज, यह एक नौकरी प्राप्त करने का एक साधन बन गयी है. शिक्षा जिसे प्राप्त कर रोजगार पाने की संभावना कम हो उसे उपेक्षा की नजर से देखा जा रहा है. यही कारण है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020) में कार्य-आधारित अध्ययन को प्राथमिकता दी गयी है. पिछले एक दशक में, व्यापार क्षेत्र में नौकरियां देने की दर सबसे अधिक रही है. यह सच है कि, व्यापार दुनिया पर राज करता है. ऑनलाइन खुदरा बाजार, डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन अकाउंटिंग (टैली), कराधान और वित्तीय प्रौद्योगिकी ने व्यापार क्षेत्र को बदल कर रख दिया है. रोजगार के अधिकांश अवसर उपर्युक्त क्षेत्रों में ही निहित हैं. अधिक से अधिक छात्र वाणिज्य शिक्षात्मक कार्यक्रमों में दाखिला ले रहे हैं.

लगभग 40 से 50 प्रतिशत स्नातक बीकॉम के कार्यक्रम का चयन कर रहे हैं. पिछले पांच वर्षों के दौरान, कई विशिष्ट वाणिज्य महाविद्यालय स्थापित हुए हैं. लेकिन भारत में, छात्रों को उद्यमिता या लेखा कौशल का ज्ञान हासिल करने के लिए हाई स्कूल या इंटरमीडिएट तक इंतजार करना पड़ता है. इंटरमीडिएट और बीकॉम में स्नातक की पढ़ाई करने वालों को ही कॉमर्स की समझ होती है. जिसका अर्थ है, जब तक वे उच्च शिक्षा पूरी नहीं कर लेते, तब तक छात्र कई नौकरियों के अवसरों का फायदा नहीं उठा सकते हैं. इन हालात को बदलना होगा. बदलते समय के साथ पाठ्यक्रम में भी बदलाव होना चाहिए. स्कूलों को पाठ्यक्रम के मूल भाग के रूप में वाणिज्य की मूल बातें शामिल करनी चाहिए.

अब तक, प्रत्येक छात्र अनिवार्य रूप से माध्यमिक विद्यालय की पढ़ाई के पूरा होने तक छह विषयों का अध्ययन करता था. केवल इंटरमीडिएट में, छात्रों को अपनी पसंद का विषय चुनने का अवसर मिलता है. वर्तमान स्कूल पाठ्यक्रम केवल उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो गणित, भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान या जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान धाराओं का चयन करते हैं. चूंकि वाणिज्य पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है, इसलिए नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र और वाणिज्य जैसे विषय लेने वाले नुकसान में रहते हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने 10 + 2 स्कूल की प्रणाली को दूर करने का फैसला किया है. साथ ही, स्कूलों को नौवीं कक्षा से ही एक विषय के रूप में वाणिज्य को शामिल किया जायेगा. चूंकि छात्रों को स्कूल स्तर पर लेखांकन और वाणिज्य की बुनियादी बातों से परिचय करा दिया जायेगा, उन्हें स्नातक के पाठ्यक्रमों को अधिक विवेकपूर्ण रूप से चुनने का अवसर मिलेगा.

महात्मा गांधी ने एक ऐसी ही शिक्षा की प्रणाली की कामना की थी, जो छात्र के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित हो. यदि स्कूल में वाणिज्य प्रारंभिक अवस्था में सिखाया जाने लगेगा, तो छात्र अपने उद्यमिता कौशल को और धार दे सकेंगे. हमारे देश को नौकरी चाहने वालों की तुलना में अधिक नौकरी सृजनकर्ताओं की आवश्यकता है. वर्तमान में, वाणिज्य पढ़ने वाले छात्रों के पास दूसरों की तुलना में अधिक अवसर हैं. स्वरोजगार वाणिज्य के पाठ्यक्रम की एक और अनूठी विशेषता है. एक वाणिज्य पढ़ने वाला छात्र एक लेखा परीक्षक, सलाहकार, लेखाकार, शेयर बाजार विश्लेषक या व्यापारी बैंकर के रूप में काम करना चुन सकता है.

यदि छात्र इन करियर के रास्तों को विकसित करते हैं और समझते हैं, तो वे भविष्य की योजना बना सकते हैं. सिर्फ इंजीनियरिंग और चिकित्सा नहीं, छात्रों के पास ढेर सारे विकल्प होंगे. डिजिटल युग ने छात्रों के स्वभाव और विचार करने की प्रक्रिया में बदलाव लाया है. आज का 15 साल का छात्र कुछ समय पहले के 25 साल की उम्र के इंसान से ज्यादा परिपक्व है. इसलिए, उसके पाठ्यक्रम में सामाजिक अध्ययन और गणित के साथ-साथ वाणिज्य को एक विषय के रूप में शामिल करने से वह आगे चल कर इसका पूरी तरह से लाभ उठा सकेगा.

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परिवर्तन केवल वाणिज्य को एक विषय के रूप में पेश करने तक सीमित नहीं होना चाहिए. संचार और जीवन कौशल को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. इस तरह, छात्रों को रोजगार हासिल करने के कौशल प्राप्त करने के साथ-साथ ज्ञान को पाने की प्यास भी बुझ सकती है. सही उम्र में मिलने वाले सही मार्गदर्शन के साथ, वे जीवन के हर चरण में सफल हो सकते हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का भी यही उद्देश्य है.

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