शिमला : कारगिल हीरो और परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन बिक्रम बत्रा को उनके जुड़वां भाई ने कारगिल में जाकर श्रद्धांजलि दी. लगभग 20 साल पहले, 7 जुलाई, 1999 को कैप्टन बिक्रम बत्रा दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे. शहीद बत्रा के छोटे भाई विशाल बत्रा ने प्वाइंट 4875 की चोटी पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी.
कागरिल में सैनिकों के साथ विकास बत्रा आपको बता दें कि कै. विक्रम की शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को 'बत्रा टॉप' का नाम दिया गया है. रविवार को विशाल बत्रा और सेना के अफसर हेलीकॉप्टर से बत्रा टॉप पहुंचे और भारत के वीर योद्धा को श्रद्धांजलि दी. विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा ने कहा कि देश के लिए बेटे की शहादत पर उन्हें गर्व है.
कागरिल में सैनिकों के साथ विकास बत्रा शहीद बत्रा के छोटे भाई वर्तमान में आईसीआईसीआई बैंक में उत्तर भारत जोन के महाप्रबंधक पद पर तैनात हैं. उन्होंने अपने बड़े भाई को श्रद्धांजलि देने के लिए रक्षा मंत्रालय से अनुमति ली थी और उन्हें बत्रा टॉप तक सेना के हेलीकॉप्टर द्वारा पहुंचाया गया. जहां उनके भाई देश पर कुर्बान हुए थे वहीं जाकर उन्होंने वीर योद्धा को श्रद्धांजलि दी. शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की फाइल फोटो
कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं. हिमाचल के कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को उनका जन्म हुआ था. पिता जीएल बत्रा व मां जयकमल बत्रा की खुशी उस समय दोगुना हो गई, जब विक्रम व विशाल के रूप में उनके घर जुड़वां बच्चों ने जन्म लिया.
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डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से हासिल की. साल 1996 में वे मिलिट्री अकादमी देहरादून के लिए सेलेक्ट हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई.
जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बत्रा भी मोर्चे पर पहुंचे. उनकी डैल्टा कंपनी को प्वाइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना को ध्वस्त करते हुए विक्रम बतरा और उनके साथियों ने प्वाइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. कै. विक्रम ने युद्ध के दौरान कई साहसिक फैसले लिए.
जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे. इसी दिन वे प्वाइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के सामने आने वाली सभी कठिनाइयों को दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया. हिमाचल के इस सपूत ने देश के लिए शहादत दी और इन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया.
अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बत्रा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है. विक्रम बतरा का-ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था.