हैदराबाद : 1943 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बंगाल में अकाल पड़ा था जिसमें करीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी. अनाज के कम उत्पादन के चलते इतनी बड़ी त्रासदी लोगों को झेलनी पड़ी थी. यह एक कृत्रिम अकाल था जो ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों की वजह से उत्पन्न हुई थी. उस वक्त प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल थे.
2019 में एक शोध किया गया जिसमें बंगाल में आए अकाल के लिए ब्रिटिश सरकार और सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया.
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
2019 में, जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार 1943 में बंगाल में सिर्फ सूखे के कारण अकाल नहीं हुआ था, ब्रिटिश सरकार की विफलता भी एक प्रमुख कारण था. प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की सरकार द्वारा लाई गई नीतियां और उनके असफल क्रियान्वयन के चलते बंगाल को मुश्किल समय से गुजरना पड़ा.
वैज्ञानिकों ने 1870 से 2016 के बीच मिट्टी की नमी के स्तर का विश्लेषण किया जिससे यह पता लगाया जा सके कि वास्तव में उस समय क्या हुआ था. उनके अनुसार, उस समय सीमा के दौरान छह अकाल पड़े थे जिनमें बंगाल में जो अकाल की स्थिति पैदा हुई वह कृत्रिम थी, क्योंकि इसमें न तो फसलें खराब हुई थी और न ही मिट्टी में नमी की कमी थी.
ब्रिटिश सरकार की नीतियां
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने चावल के आयात को रोक दिया था साथ ही, जो अनाज लोगों तक पहुंचाया जाना था उसे भी विश्व युद्ध में लड़ रहे सैनिकों तक पहुंचा दिया गया था, जिससे अनाज की कमी हो गई, जो अकाल का कारण बन गया. इसके बाद भी ब्रिटिश सरकार ने भारत में अकाल की घोषणा नहीं की थी.
अध्ययन के अनुसार बर्मा (अब म्यांमार) में जापानी कब्जा, 1943 के अकाल में हुई मौतों का आंकड़ा बढ़ाने वाला एक अन्य कारण था क्योंकि बर्मा से भारत में चावल का आयात होता था. बर्मा पर जापान के कब्जे के बाद वहां से चावल का आयात रुक गया था.
अध्ययन में कहा गया है कि पहले भी घातक अकाल पड़े लेकिन म्यांमार से चावल के आयात और ब्रिटिश सरकार की राहत सहायता मिलने से ज्यादा नुकसान नहीं हो पाया था.