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वोकल फॉर लोकल : चीन से दुश्मनी ला रही चेहरे पर खुशी - कोरोना को लेकर

दिवाली को बस कुछ ही दिन बाकी है. नरेश अपने पूरे परिवार के साथ जोर-शोर से दीये बनाने में जुटे हैं, इस बार इन्हें उम्मीद है, वो दोगुने दीये बेच देंगे. पिछले कुछ महीने में चीन से बिगड़े रिश्तों की वजह से देश में एक सकारात्मक लहर पैदा हुई है.

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दीये बनाने वाले

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Published : Oct 23, 2020, 10:15 PM IST

फरीदाबाद :लोगों के दिलों में आज चीन देश के लिए अघोषित दुश्मन बन चुका है. पहले कोरोना को लेकर लोगों के जहन में गुस्सा और फिर गलवान घाटी में देश के वीर सपूतों की शहादत से हर भारतीय चीन से नफरत करने लगा है. उधर. केंद्र सरकार की तरफ से भी चीन से आयात पर रोक लगी हुई है. पिछले कुछ महीने में चीन से बिगड़े रिश्तों की वजह से देश में एक सकारात्मक लहर पैदा हुई है.

चीनी बहिष्कार से दीयों की मांग बढ़ने की उम्मीद

आज देश वोकल फॉर लोकल हो गया है. देश मेड इन इंडिया को प्रोत्साहित करने पर जोर देने लगा है और इसी बदलाव की वजह से कुम्हारों की जिंदगी बदलने लगी है. इस साल दिवाली में चाइनीज लड़ियों की बजाए दीयों की डिमांड बढ़ने की उम्मीद है.

चीन से दुश्मनी ला रही खुशी, जानें कैसे

दोगुना होगा इस दिवाली कारोबार

पिछले 20 सालों से मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने वाले नरेश बताते हैं कि उनके बुजुर्ग भी मिट्टी से दीये, मटके, सुराही बनाने का काम किया करते थे. पिछले कुछ समय से चाइनीज सामानों ने मार्केट में कब्जा कर लिया था. उनकी मिट्टी से बने सामानों की बिक्री न के बराबर हो चुकी थी, लेकिन जिस तरह से अब चाइनीज सामान का बहिष्कार हो रहा है, लोग अपनी संस्कृति को पहचान रहे हैं और इस बदलाव से उनका कारोबार भी निकल पड़ा है.

'मेहनत बहुत की है, उम्मीद है ये साल बेहतर होगा'

वहीं नरेश की धर्मपत्नी संतोष का कहना है कि दिवाली में दिन-रात मेहनत करके दीये बनाते हैं. पूरा परिवार इसी काम में लगा रहता है, लेकिन जब इन दीयों को लेकर बाजार पहुंचते हैं तो ग्राहक चाइनीज लड़ियां और मोमबत्तियां ही पसंद करते हैं. ऐसे में अगर इस बार चाइना का माल बाजार में नहीं आता है तो उनके लिए ये साल अच्छा बीतेगा.

दिवाली को बस कुछ ही दिन बाकी है. नरेश अपने पूरे परिवार के साथ जोर-शोर से दीये बनाने में जुटे हैं, इस बार इन्हें उम्मीद है, वो दोगुने दीये बेच देंगे. यकीन हमें भी है, इस बार लोग जब बाजार में दिवाली की खरीदारी करेंगे तो नरेश, संतोष और परमानंद जैसे कुम्हारों की उम्मीदों को निराशा में नहीं बदलेंगे.

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