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मराठा आरक्षण वैध, पर 16 फीसदी से घटाकर 12 फीसदी किया गया

मराठा आरक्षण पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की खंडपीठ ने इसकी संवैधानिकता वैध रखी है. हालांकि, इसकी सीमा 16 फीसदी से घटाकर 12 फीसदी कर दी गई है.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

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Published : Jun 27, 2019, 5:38 PM IST

Updated : Jun 27, 2019, 10:26 PM IST

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण की वैधता बरकरार रखी है. जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है. पीठ ने इसकी सीमा 12 फीसदी कर दी है. पहले यह सीमा 16 फीसदी थी. सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी.

अशोक चव्हाण का बयान

मराठा आरक्षण को लेकर पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने कहा है कि हम बहुत खुश है कि मराठा आरक्षण का मुद्दे का समाधान निकला. उन्होेने आगे कहा कि कांग्रेस ने मराठा मुद्दे उठाया था लेकिन कानूनी अड़चनों का कारण हाईकोर्ट से पास नहीं हो पाया था.

उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि धनगर और मुस्लिम समुदायों को दो अन्य आरक्षण, जो वर्तमान सरकार द्वारा लंबे समय तक लटकाए हुए हैं. अगर इन्हें भी हल कर लिया जाए, तो राज्य में सामंजस्य होगा.

इस मामले पर केंद्रीय मंत्री और शिवसेना के नेता अरविंद सावंत ने कहा कि शिवसेना शुरू से ही मराठा आरक्षण को लेकर समर्थन करती रही है मराठा आरक्षण के लिए काफी लंबे समय से प्रयास कर रहे थे. जिस तरह से उन्होंने इसके लिए आंदोलन किया है और लगातार संघर्ष किया है. अब कोर्ट ने उनके हक में फैसला देकर एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है. इसका महाराष्ट्र की सरकार और खासतौर पर शिवसेना पूरी तरह से स्वागत करती है

ईटीवी भारत से बात करते अरविंद सांवत

कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को समाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए अलग से श्रेणी बनानी चाहिए.

30 नवंबर 2018 को महाराष्ट्र विधानसभा ने 16 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए विधेयक पारित किया था. इसमें मराठा समुदाय के शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था दी गई थी.

यह आरक्षण पहले से मौजूद 52 प्रतिशत आरक्षण से अलग रखा गया था. इसके साथ ही 16 प्रतिशत मराठा आरक्षण के साथ महाराष्ट्र में आरक्षण बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया था. इसके बाद कोर्ट में सरकार द्वारा दिए गए मराठा आरक्षण के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई. जिनमें से कुछ याचिकाएं आरक्षण के समर्थन में दायर की गई थी.

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आरक्षण के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि सरकार द्वारा दिया गया मराठा आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध है, जिसमें कहा गया था कि किसी भी राज्य में आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

वहीं, सरकार ने अपने फैसले की बचाव करते हुए कहा था आरक्षण का फैसला सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े मराठा समुदाय को आगे लाने के लिए लिया गया है.

Last Updated : Jun 27, 2019, 10:26 PM IST

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