नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने बृहस्पतिवार को भत्ते समेत सकल वेतन के 100 प्रतिशत पर कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) कटौती की वकालत की. श्रमिक संगठन के अनुसार, इससे संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा बढ़ेगी.
अन्य श्रमिक संगठनों ने भी इस बात पर सहमित जताई है कि मजदूरी संहिता के तहत वेतन की परिभाषा इस रूप से रखी जाए, जिससे ईपीएफओ की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में आने वाले कर्मचारियों की ईपीएफ कटौती सकल वेतन के आधार पर हो.
हालांकि अन्य संगठनों ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा बृहस्पतिवार को बुलाई गई त्रिपक्षीय बैठक के दौरान इस बात को स्पष्ट रूप से नहीं रखा. बैठक में नियोक्ताओं के साथ कर्मचारियों के प्रतिनिधि शामिल हुए.
बीएमएस ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, 'श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की श्रम संहिता नियमों पर परामर्श बैठक में श्रमिक संगठन ने यह मांग की कि वेतन परिभाषा में भत्ते को कुल वेतन का 50 प्रतिशत पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए. क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने 2019 में विवेकानंद विद्यालय मामले में यह आदेश दिया गया है. पूर्व में उच्चतम न्यायालय के ग्रुप 4 सुरक्षा मामले में यह व्यवस्था दी गई थी कि शत प्रतिशत भत्ते को वेतन का हिस्सा होना चाहिए.'
वेतन की नई परिभाषा में कहा गया है कि किसी कर्मचारी का भत्ता कुल वेतन का 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. इससे भविष्य निधि समेत सामाजिक सुरक्षा मद में कटौती बढ़ेगी.
फिलहाल नियोक्ता और कर्मचारी दोनों को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मूल वेतन का 12-12 प्रतिशत योगदान देना होता है.
वर्तमान में बड़ी संख्या में नियोक्ता वेतन बोझ कम करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना में योगदान कम करने के लिए वेतन को विभिन्न भत्तों बांट देते हैं. इससे नियोक्ता और कर्मचारी दोनों को लाभ होता है. जहां नियोक्ताओं की भविष्य निधि योगदान देनदारी घटती है, वहीं कर्मचारियों के हाथों में अधिक वेतन आता है.