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मोदी सरकार की MSP से भाकियू नाखुश, RCEP के विरोध में देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी

भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह ने किसानों को उनकी फसलों के लिए दिये जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर ठोस निर्णय लेने की केंद्र सरकार को नसीहत दी है. साथ ही RECP के मुद्दे पर देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी भी दी है. ईटीवी भारत ने किसानों से जुड़े मुद्दों पर युद्धवीर सिंह ने खास बातचीत की.

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Published : Oct 29, 2019, 9:22 PM IST

Updated : Oct 30, 2019, 12:17 AM IST

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह.

नई दिल्ली : भारतीय किसान यूनियन ( भाकियू) ने RCEP के मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है. ASEAN देशों समेत अन्य 11 देशों से होने वाले मुक्त व्यापार समझौते का देश के अन्य किसान संगठनों ने पहले ही इसका विरोध किया है और अब देश के सबसे बड़े किसान संगठनों में शुमार भारतीय किसान यूनियन ने भी इसके विरोध में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की बात कही है.

ईटीवी भारत ने किसानों से जुड़े मुद्दे पर भाकियू के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह से बातचीत की, जिसमें सबसे पहले उन्होंने मोदी सरकार द्वारा हाल में घोषित रबी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर प्रतिक्रिया दी.

ईटीवी से बात करते भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह.

किसान नेता युद्धवीर सिंह ने कहा कि एक तो यह एमएसपी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक तय नहीं की गयी हैं. उनका फार्मूला C2+50% का था जबकि सरकार ने पुराने फॉर्मूले (A2FL) के मुताबिक MSP तय की है.

उन्होंने कहा कि इस तरह यह कीमत स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश की तुलना में 1000 रुपये प्रति क्विंटल तक कम है. इसके बावजूद अगर किसानों की फसल को इस तय एमएसपी पर ही खरीद लिया जाता, तब भी इसका उद्देश्य पूरा होगा. लेकिन अभी स्थिति यह है कि सरकार खरीद ही नहीं कर पा रही है.

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युद्धवीर सिंह का कहना है कि वह मंगलवार को ही हरियाणा के कई मंडियों में घूम कर आ रहे हैं, जहां किसान धान बेचने आये हैं, लेकिन खरीद नहीं हो रही. मजबूरन किसान अपनी उपज आढ़तियों को कम कीमत पर बेच कर जाने को मजबूर होंगे.

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भारतीय किसान यूनियन का कहना है कि महज एमएसपी तय कर अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की बजाय सरकार को किसानों से खरीद सुनिश्चित करनी चाहिए. इस बात को पक्का करना चाहिए कि सरकार द्वारा तय कीमत से कम में कोई भी किसानों की फसल न खरीदे.

गौरतलब है कि 2019-20 में निर्धारित एमएसपी के मुकाबले 2020-22 के लिए पिछले हफ्ते की कैबिनेट बैठक के बाद घोषित रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में गेहूं और बार्ली पर 85 रुपये प्रति क्विंटल, सरसों और चना पर 225 रुपये प्रति क्विंटल, सूरजमुखी पर 270 रुपये प्रति क्विंटल और लेंटिल पर 325 रुपये प्रति क्विंटल तक की बढ़ोतरी की गई है.

किसान नेता का कहना है कि ये कीमतें भी ज्यादा नहीं हैं, फिर भी अगर तय एमएसपी पर सरकार उनकी उपज समय से खरीद ले तो उन्हें नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा.

RCEP के विरोध में है भारतीय किसान यूनियन, करेंगे देशव्यापी आंदोलन
वहीं RCEP यानी कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी के विरोध में भारतीय किसान यूनियन बड़े आंदोलन की तैयारी में है.

ईटीवी से बात करते भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह.

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गौरतलब है कि रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) के विरोध में पहले ही देश की कई किसान संगठनों ने सरकार को आगाह किया है कि इस समझौते में डेयरी क्षेत्र को नहीं शामिल किया जाए.

वहीं इस मामले पर युद्धवीर सिंह ने कहा कि इस समझौते में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश शामिल हो रहे हैं, जिनकी नजर भारत के डेयरी बाजार पर है.

डेयरी उत्पाद के मामले में देश को किसी और पर निर्भर होने की जरूरत नहीं है, लेकिन सरकार इस समझौते के साथ ही देश के करोड़ों किसानों को बड़ी मुश्किल में झोंकने जा रही है.

भारतीय किसान यूनियन ने गत 24 अक्टूबर को देश के सभी जिलों में कलेक्टर के माध्यम से सरकार को ज्ञापन सौंपा है और वाणिज्य मंत्री से मिलने का समय भी भाकियू के नेताओं ने मांगा था. लेकिन अब तक उन्हें मंत्री से मिलने का समय नहीं दिया गया है.

युद्धवीर सिंह का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में जनसंख्या कम होने की वजह से डेयरी उत्पादों की खपत पैदावार से कहीं कम हैं. बचे हुए 90% से ज्यादा उत्पादों को वो दूसरे देशों को सस्ती दरों पर निर्यात करते हैं. ऐसे में भारत उनके लिए एक बहुत बड़ा बाजार है.

किसान नेता ने कहा कि यदि बाजार खोला गया तो पशुपालन कर अपना घर चला रहे करोड़ों किसान के लिए भुखमरी जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी.

उन्होंने कहा, 'हमारे देश में 80% से ज्यादा किसान लघु और सीमांत किसानों की श्रेणी में आते हैं, जिनमें से बहुतायत किसानों के पास एक एकड़ से भी कम जमीनें हैं.पशु पालने वाले लाखों किसान तो भूमिहीन भी हैं. ऐसे में उनके पास आय का एकमात्र साधन ये पशु ही होते हैं, जिनका दूध बेच कर वे अपना भरण-पोषण करते हैं.

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वहीं न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में किसानों के पास जमीन का रकबा भी बड़ा है और वे पशु भी सैंकड़ों की संख्या में पालते हैं.

जाहिर तौर पर उन्हें कम कीमत पर भी अपने उत्पाद बेचने में कोई तकलीफ नहीं है क्योंकि इन देशों में सरकार इन्हें पर्याप्त सब्सिडी भी देती है. लिहाजा ये खेती एक इंडस्ट्री की तरह करते हैं, लेकिन हमारे देश में परिस्थितियां अलग हैं.

जाहिर तौर पर RCEP के मुद्दे पर इस समय देशभर के किसान एक बार फिर गोलबंद होते दिख रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में दिल्ली में बड़े किसान आंदोलन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

Last Updated : Oct 30, 2019, 12:17 AM IST

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