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'वनवास' नहीं खत्म कर पाई भाजपा, गद्दी पर 'आप' बरकरार

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के लिए दिल्ली में 70 सीटों पर मतगणना जारी है. मतगणना के आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है. बीजेपी के प्रदर्शन में सुधार हुआ है, लेकिन गत 22 वर्षों तक दिल्ली की सत्ता से बाहर रही बीजेपी को इस बार भी मायूस होना पड़ा है.

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Published : Feb 11, 2020, 1:04 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 11:35 PM IST

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मनोज तिवारी और केजरीवाल

नई दिल्ली : दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी का वनवास जारी रहेगा. पिछले 22 सालों से पार्टी सत्ता से बाहर है. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में हैट्रिक लगाई है. इस परिणाम ने यह साफ कर दिया है कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी होते हैं. कोई भी पार्टी इसकी अनदेखी नहीं कर सकती. अकेले राष्ट्रीय मुद्दों के बल पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता. स्थानीय नेताओं और चेहरों को आगे करना किसी भी पार्टी के लिए अच्छा होता है.

हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट प्रतिशत बढ़े हैं. अब तक की जानकारी के मुताबिक पार्टी को लगभग 40 फीसदी वोट मिले हैं. पिछली बार पार्टी को 32 फीसदी वोट मिले थे. आम आदमी पार्टी को 52 फीसदी से अधिक वोट मिले हैं.

मुख्य रूप से कौन से ऐसे फैक्टर थे, जिससे आप को फायदा मिला.

  • शिक्षा के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर सुधार. इससे मध्यम वर्ग को राहत मिली. स्कूलों की फीस बढ़ोत्तरी पर ब्रेक लगाया.
  • मिडिल क्लास के बीच आप पहले से अधिक लोकप्रिय हुई. इन्हें बिजली और पानी के बिल में कटौती का फायदा मिला.
  • भाजपा ने अवैध कालोनियों के रेगुलराइजेशन पर फैसला लिया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.
  • प्राथमिक तौर पर ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जातियों ने आप का साथ दिया. परंपरागत तौर पर इन्हें कांग्रेस का वोटर माना जाता था. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस कहीं नहीं दिखी. इनके वोट का एक हिस्सा आप को चला गया.
  • शाहीन बाग मामलों से आप को फायदा पहुंचा. आप ने शाहीन बाग मामले से दूरी बना ली थी.
  • चुनाव के दौरान केजरीवाल ने हनुमान चालीसा पढ़कर यह संदेश देने की कोशिश की, वे हिंदुओं के खिलाफ नहीं हैं.
  • मुहल्ला क्लिनिक से भी निम्न मध्यम वर्ग को फायदा पहुंचा.
  • कांग्रेस के एक तरीके से आक्रामक नहीं होने से चुनाव द्विध्रुवीय हो गया. अन्यथा त्रिकोणीय चुनाव होता, तो भाजपा को फायदा पहुंच सकता था.
  • केजरीवाल के मुकाबले मनोज तिवारी की छवि मैच नहीं करती थी.
  • भाजपा में इस पर मतभेद था कि पार्टी को विकास के मुद्दे पर ज्यादा जोर देना चाहिए, या शाहीन बाग जैसे मुद्दों पर.
  • सीएम के तौर पर किसी चेहरे को सामने रखा जाता, तो स्थिति बेहतर हो सकती थी.
  • पिछले पांच सालों में पूरी दिल्ली में होर्डिंग्स पर केजरीवाल दिखते रहे. फुल पेज विज्ञापन बार-बार छपवाया जाता रहा. मोबाइल एप और वीडियो कांफ्रेंस में केजरीवाल बार-बार आते रहे. इसके जरिए वे अपनी सरकार की उपलब्धियों को बार-बार दिखाते रहे. इसका जनता पर असर पड़ा.
Last Updated : Feb 29, 2020, 11:35 PM IST

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