नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख के ऊपरी क्षेत्रों में, जहां भारतीय और चीनी सेना भारी तोपखानों के साथ एक दूसरे के सामने खड़ी हैं, वहां तापमान शुन्य ले 30 डिग्री तक गिर गया है. ऐसे में दोनों देशों को इस बात का एहसास हो रहा है कि यहां बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात करना कोई समझदारी नहीं है. इससे अन्य चीजों के साथ-साथ राष्ट्रीय सरकारी खजाने पर भी प्रभाव पड़ रहा है.
हालांकि, चीन को उम्मीद नहीं थी कि अप्रैल-मई के बाद से यहां सिलसिलेवार गतिरोध का मुकाबला करने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात कर उसका मुकाबला कर सकेगा. नतीजतन, भारत और चीन ने बर्फीले सीमांत के साथ 100,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है.
हालांकि, शत्रुतापूर्ण मौसम और दोनों तरफ के कमांडरों के स्तर में बदलाव, भारत और चीन दोनों के लिए लद्दाख में आठ महीने से चल रहे गतिरोध को कम करने और आपसी मन-मुटाव को दूर करने का यह एक सुनहरा अवसर है, क्योंकि एक तथ्य यह भी है कि इस समय खराब मौसम, ठंड और बर्फ के कारण बड़े पैमाने पर सेना की हलचल संभव नहीं है.
अब तक दोनों देशों के बीच जून 6, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर, 12 अक्टूबर और 6 नवंबर को आठ दौर की वार्ता हो चुकी है. हालांकि, अभी नौवें दौर की वार्ता तय होनी बाकी है.
लेफ्टिनेंट-जनरल पीजीके मेनन ने 14 अक्टूबर को लद्दाख स्थित 14 कोर के प्रमुख के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह से पदभार ग्रहण किया और उसके बाद देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) के कमांडेंट के रूप में भी पदभार संभाला.
यह 14 कोर कमांडर ही हैं, जो वार्ता के दौरान भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हैं.