नई दिल्ली: केंद्र शासित प्रदेश दादरा एवं नागर हवेली तथा दमन एवं दीव का विलय कर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाने के प्रावधान वाले दादरा और नागर हवेली तथा दमन और दीव (संघ राज्यक्षेत्रों का विलयन) विधेयक, 2019 को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई है.
राज्यसभा ने इस बिल को मंगलवार को मंजूरी प्रदान की, जबकि लोकसभा से पिछले सप्ताह बुधवार को ही इस विधेयक को मंजूरी मिल गई थी.
उच्च सदन में विधेयक पर हुई चर्चा के दौरान इन दोनों क्षेत्रों के विलय को लेकर सदस्यों द्वारा उठाई गई कानूनी एवं अन्य शंकाओं का जवाब देते हुए गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि विलय के बाद इस क्षेत्र के जनजाति समुदाय के लोगों को मिल रहा आरक्षण और अन्य प्रशासनिक सुविधायें अप्रभावित रहेंगी.
इससे पहले विधेयक, पर चर्चा के दौरान कुछ सदस्यों ने इस विलय को संविधान संशोधन के दायरे में बताते हुए सरकार से स्थिति को स्पष्ट करने की मांग की.
इसके जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद तीन (ए) के तहत केंद्र सरकार को दो क्षेत्रों को मिला कर एक क्षेत्र बनाने का अधिकार है और संविधान का अनुच्छेद चार (दो) इस प्रक्रिया को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन के दायरे से बाहर रखता है. इसलिए इन दोनों क्षेत्रों के विलय के लिए संविधान संशोधन की जरूरत नहीं है.
इससे पहले रेड्डी ने कहा कि दोनों केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाने का उद्देश्य इस क्षेत्र की प्रशासनिक व्यवस्था को सुगम बनाना तथा क्षेत्र के विकास को सुनिश्चित करना है.
उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में दोनों केन्द्र शासित क्षेत्रों की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए अधिकारियों को सप्ताह में तीन दिन एक क्षेत्र में और दो दिन दूसरे क्षेत्र में रहना पड़ता था.
उन्होंने कहा कि विलय के बाद अब दोनों क्षेत्र के लिए पृथक प्रशासनिक व्यवस्था होगी. जिसमें अधिकारी सप्ताह के पांचों कार्यदिवस पर उपलब्ध होंगे. रेड्डी ने स्पष्ट किया कि नई व्यवस्था में इस क्षेत्र के लोकसभा में प्रतिनिधित्व में कोई बदलाव नहीं होगा. इससे पहले विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्री ने कहा कि दो प्रशासनिक इकाइयां बनाना सरकार का व्यावहारिक फैसला नहीं है.
भाजपा के विनय पी सहस्त्रबुद्धे ने इसे प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की दृष्टि से अहम फैसला बताते हुए कहा कि इससे नागरिक सुविधाओं को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. हालांकि तृणमूल कांग्रेस के मनीष गुप्ता ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस फैसले से सरकार का वित्तीय बोझ जरूर कम होगा, लेकिन इससे इस क्षेत्र का जनप्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं होने की समस्या यथावत रहेगी.
गुप्ता ने कहा कि क्षेत्र के लोगों को पहले की तरह न्याय के लिए लोगों को मुंबई जाना पड़ेगा. अन्नाद्रमुक के ए नवनीत कृष्णन ने भी इस क्षेत्र को विलय के बाद बंबई उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में रखे जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से इस पर विचार करने का अनुरोध किया.