नई दिल्ली : किसानों और विपक्षी दलों की कड़ी आलोचना के बीच कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण ) विधेयक और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण ) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक नाम के दो विवादास्पद विधेयक और आवश्यक वस्तु अधिनियम में एक संशोधन संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया. इस तरह संसद ने किसानों की आय के पुराने मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है.
सरकार का कहना है कि ये विधेयक कृषि-उत्पादों के बगैर किसी रुकावट के एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यापार को बढ़ावा देंगे और किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने में मददगार होंगे. आलोचकों का आरोप है कि नया कानून केवल बड़े कॉरपोरेटों को मदद करेगा और छोटे और सीमांत किसान जिनकी संख्या बहुत अधिक है, वे इससे नुकसान में रहेंगे.
इस पृष्ठभूमि के बीच ईटीवी भारत ने इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर ) के निदेशक और कुलपति प्रोफेसर महेंद्र देव से बात की. देव इससे पहले कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी ) के अध्यक्ष थे. सीएसीपी भारत सरकार को फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) की सिफारिश करता है.
बातचीत का संपादित अंश
सवाल : क्या छोटे किसानों के लिए बड़ी कंपनियों के साथ अनुबंध करते समय सौदेबाजी करना संभव है ? क्या बराबरी का कोई खेल मैदान होगा ?
जवाब : कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (कानून) बड़ी कंपनियों की मदद करेगा. चूंकि उनके पास मोलभाव करने की अधिक शक्ति है, इसलिए यह आंशिक रूप से सच हो सकता है कि अनुबंध उनके पक्ष में होगा. किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) इकट्ठे होकर बड़ी कंपनियों के साथ सौदेबाजी कर सकते हैं. करार वाली खेती में असमानता को एक व्यवस्थित प्रारूप में समान बनाया जाना है. अभी अगर बाजार की कीमतों में गिरावट आती है तो कंपनियां अनुबंधों को धता बताकर बाहर से खरीददारी कर रही हैं. इसी तरह अगर कीमतों में कोई बढ़ोतरी होती है तो किसान अनुबंध का सम्मान नहीं कर रहे हैं. यह बदला जाना चाहिए. विधेयक के मुताबिक यदि किसानों और कंपनियों के बीच कोई विवाद होने पर जिला कलेक्टरों को निर्णय लेना चाहिए. यह संभव है कि कुछ अमीरों का पक्ष लेंगे, किसानों का शोषण रोकने के लिए कोई नियम होना चाहिए.
सवाल :क्या बिचौलियों को खत्म करके किसानों और खरीदारों के बीच सीधे व्यापार की कोई संभावना है ?
जवाब : वर्तमान परिदृश्य में, एपीएमसी बाजारों और बाहर दोनों में बिचौलियों को समाप्त नहीं किया जा सकता है. विशेष रूप से गैर-एपीएमसी क्षेत्रों में उन्हें पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है. बड़ी कंपनियां बहुत सारे छोटे और सीमांत किसानों को जुटा नहीं सकती हैं. इसके अलावा इस तरह के किसान इंटरलिंक्ड बाजार व्यवस्था के तरह काम करते हैं , जिसमें बिचौलिए फसलों की खेती से पहले किसानों को कर्ज देते हैं ताकि किसान केवल उन्हें ही फसल बेच सकें. ये चीजें जारी रह सकती हैं.