नई दिल्ली : केंद्र सरकार श्रम कानून में बदलाव के लिए अध्यादेश का रुख अब नहीं अपनाएगी. भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने इस कदम को गलती सुधारना बताया है और सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है. साथ ही मजदूर संघ ने सरकार से मजदूर विरोधी नीतियों को वापस लेने की मांग भी दोहराई है.
बीएमएस महासचिव वीरजेश उपाध्याय ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा के दौरान मजदूर, किसान और लघु उद्योग पर जोर दिया, जोकि सिर्फ बड़े बिजनेस और कॉरपोरेट घराने को फायदा पहुंचाने से अलग है.
भारतीय मजदूर संघ ने भी इन्हीं तीन मुद्दों को नीति बनाने वालों के समक्ष रखते हुए मजदूर, किसान और लघु उद्योगों को विकास का स्तंभ बताया था.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज पर विस्तृत घोषणा के दौरान स्पष्ट किया था कि श्रम कानून में बदलाव के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश का रास्ता नहीं लेगी.
बतौर भारतीय मजदूर संघ, नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए थे कि श्रम कानून में सुधार का मतलब उन्हें पूर्णतः निरस्त कर दिया जाए.
वित्त मंत्री और नीति आयोग के उपाध्यक्ष द्वारा दिए गए व्यक्तव्यों को भारतीय मजदूर संघ उन राज्यों को उपयुक्त जवाब के रूप में देखता है, जिन्होंने अध्यादेश लाकर श्रम कानून में बदलाव किया है.
केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने भी राज्यों द्वारा लाए जा रहे अध्यादेश के जरिए श्रम कानून को निलंबित किए जाने पर आपत्ति जाहिर की थी. हाल में उन्होंने कहा कि श्रम कानूनों को पूरी तरह निलंबित करना पहले से तय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर आधारित नहीं है.
गौरतलब है कि भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश ने अध्यादेश पारित कर श्रम कानून को निलंबित किया था और केरल सरकार ने अध्यादेश लाकर अनिवार्य रूप से सभी कर्मचारियों का एक महीने का वेतन काटने का रास्ता साफ कर लिया था.
काम करने के घंटे को आठ से बढ़ाकर 12 करने की शुरुआत सबसे पहले राजस्थान से हुई थी और उसके बाद कुल 15 राज्य सरकारों ने इस नीति को अपनाते हुए अपने राज्य में काम करने के समयावधि को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया.
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