हैदराबाद : कोरोना महामारी से पूरी दुनिया त्रस्त है. वैक्सीन बनाने का काम जारी है. इस बीच भारत के पहले स्वदेशी कोविड-19 टीके को भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) से मानव पर परीक्षण की अनुमति मिल गई है. देश में अगले महीने से इस टीके का पहले और दूसरे चरण का परीक्षण शुरू होगा. इस विषय पर भारत बायोटेक के चेयरमैन डॉक्टर कृष्णा एल्ला ने वैक्सीन से जुड़ी कई बातों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया. प्रस्तुत है उनसे हुई खास बातचीत के प्रमुख अंश:
बता दें कि 'कोवैक्सीन' नामक टीके का विकास भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के साथ मिलकर विकसित किया है. देश में इसी महीने में इस टीके का प्रथम और द्वितीय चरण का परीक्षण शुरू किया जाएगा.
ईटीवी भारत के साथ एक विशेष साक्षात्कार में भारत बायोटेक के प्रबंध निदेश डॉ. कृष्णा एल्ला ने टीके के विकास से जुड़ी चुनौतियों, परीक्षणों और दुनिया की सबसे सस्ती कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन से जुड़ी कई अहम जानकारी दी.
प्रश्न : वैक्सीन बनाने की होड़ मची है. क्या आपकी कंपनी एक सफल वैक्सीन बनाने वाली पहली कंपनी होगी?
डॉ.कृष्णा एल्ला : आमतौर पर हर टीका को विकसित होने में 14-15 वर्ष लगते हैं. इतने वर्षों की मेहनत को समेटकर एक साल में पूरा करना इस तरह की वैक्सीन बनाने वाली कंपनी के लिए वाकई में चुनौती भरा कार्य है.
प्रश्न : भारत बायोटेक इसे सबसे कम अवधि में लाने में सक्षम रहा है. यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है. इसके विकास में सबसे अधिक किससे सहायता प्राप्त हुई. क्या वैश्विक सहयोग एक कारण हो सकता है या वैज्ञानिक साहित्य ने इसमें मदद की.
डॉ.कृष्णा एल्ला : कोरोना महामारी की शुरुआती दौर के 2-3 महीने पहले इस विषय पर अधिक जानकारी नहीं थी. हालांकि अब इससे जुड़ी कई सारे डाटा उपलब्ध हो रहे हैं. मुझे खुशी है कि चीन, अमेरिका इसे विश्व के साथ साझा कर रहे हैं. यह वाकई में बड़ी अच्छी बात है, लेकिन निर्माताओं की तरफ से, कुछ भी प्रकाशित नहीं हुआ है. जो कुछ भी प्रकाशित किया गया है वह पशु और नैदानिक आंकड़े हैं.
विनिर्माण का व्यापार हमेशा रहस्य रहता है. इसलिए वैक्सीन निर्माण से जुड़ी कोई भी जिज्ञासा सार्वजनिक नहीं की जाती है. कोई भी निर्माण प्रक्रिया आमतौर पर पेटेंट के लिए भी दायर नहीं की जाती है. वह सभी इसे कंपनी के भीतर स्वामित्व, तकनीकी जानकारी के रूप में रखते हैं.
प्रश्न : क्या आप हमें बता सकते हैं कि टीके को बाजार में लाने से पहले परीक्षण प्रक्रिया कैसे शुरू होती है?
डॉ.कृष्णा एल्ला : नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), पुणे ने वायरस को आइसोलेट किया. उन्होंने वायरस की विशेषता बताई और वह वायरस हमें दिया जा रहा है. फिर हम रिसर्च एंड डेवलपमेंट बैच और फिर जीएमपी बैच का निर्माण करते हैं.
प्रश्न : हम एक वैक्सीन के कितने करीब हैं?
डॉ.कृष्णा एल्ला : निश्चित रूप से एक वैक्सीन तो बनेगा ही. हम तीन प्लेटफार्मों पर काम कर रहे हैं और हमें यकीन है कि दो प्लेटफार्मों में यह निश्चित रूप से काम करेगा. सैकड़ों रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं, लेकिन केवल कुछ ही विनिर्माण कंपनियों के पास वैक्सीन निर्माण का अनुभव है.
प्रश्न : भारत में नीति आयोग ने कहा है कि छह उम्मीदवार हैं, जिन्होंने इस सूची में शामिल हैं. भारतीय निर्माता इसको किस तरह से देख रहे हैं? भारत में प्रयोगशालाओं और निर्माताओं के बीच का अनुपात क्या है?
डॉ.कृष्णा एल्ला :भारत में अधिकांश निर्माता वैक्सीन क्षेत्र में हैं और रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) कंपनियां बहुत कम हैं. उनके पास गुणवत्ता नियंत्रण और वैक्सीन अनुसंधान में विशेषज्ञता नहीं है.
यह एक लंबी प्रक्रिया है, अमेरिका में कई रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं. भारत में, विनिर्माण कंपनियां भी रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनियां हैं. भारत बायोटेक भी एक रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनी है जिसमें वर्तमान में 100 से अधिक वैज्ञानिक काम कर रहे हैं.
प्रश्न : बीएसएल-3 : क्या यह दिशानिर्देशों का एक सेट है? क्या आप बता सकते हैं कि वाकई में यह क्या है?