नई दिल्ली : प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने सोमवार को दावा किया कि अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय का फैसला बहुसंख्यकवाद और भीड़तंत्र को न्यायसंगत ठहराता है.
मौलाना मदनी ने साथ ही कहा कि इस मामले में संविधान में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की गई है न कि इसका मकसद देश के साम्प्र दायिक सौहार्द में बाधा डालना है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में पुनर्विचार याचिका दायर करने के कुछ घंटों के बाद मदनी ने कहा कि अगर उच्चतम न्यायालय अयोध्या मामले पर दिए गए अपने फैसले को बरकरार रखता है तो मुस्लिम संगठन उसे मानेगा.
उन्होंने कहा, 'हमने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मिल्कियत मुकदमे में विवादित फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है, क्योंकि यह फैसला सबूतों और तर्क पर आधारित नहीं है.'
यह याचिका अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ करने वाले फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करती है.
इसे सोमवार को उच्चतम न्यायालय में दायर किया गया और कहा गया कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का आदेश देने से ही पूरा इंसाफ हो सकता है.
मुख्य वादी उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नौ नवंबर को आए फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करने का निर्णय किया है जबकि उत्तर प्रदेश जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष और मूल वादी एम सिद्दीक के कानूनी वारिस मौलाना अशहद रशिदी ने 14 बिन्दुओं पर फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया.
मदनी ने कहा, 'मामले में मुख्य दलील यह थी कि एक मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है. न्यायालय ने कहा है कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है, लिहाजा मुस्लिमों का दावा साबित हो गया, लेकिन अंतिम फैसला इसके उलट था. फैसला हमारी समझ से परे है और इंसाफ नहीं किया गया है. इसलिए हमने पुनर्विचार याचिका दायर की है.'
जमीयत ने एक बयान में कहा कि पुनर्विचार याचिका में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया गया है और निर्णय में मौजूद विरोधाभास भी बताए गए हैं.