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अयोध्या मामला: पढ़ें 12वें दिन की सुनवाई में दी गई दलीलें

अयोध्या विवाद में कोर्ट ने 12वें दिन सुनवाई की. सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़ा ने देव स्थान पर अपना दावा पेश किया है. अखाड़ा ने दावा किया है कि उनका दावा टाइटल पर नहीं बल्कि जन्मस्थान पर स्थित मंदिर की देखरेख और उस पर कब्जे पर है.

सुप्रीम कोर्ट ( फाइल फोटो)

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Published : Aug 27, 2019, 12:13 AM IST

Updated : Sep 28, 2019, 10:04 AM IST

नई दिल्ली: सोमवार को सुप्रीम में चल रही 12वें दिन की सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कोर्ट में अपनी दलीलें पेश की.निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन ने कहा कि हम देवस्थान के मैनेजर यानी देखरेख करने वाले हैं. इसलिए उसपर हमारा अधिकार है. हमसे जन्मस्थान का पजेशन ले लिया गया था. जिसे हमें फिर से वापस दिया जाए.

इससे पहले अखाड़ा ने शुक्रवार की सुनवाई में निर्मोही अखाड़े ने कहा था कि उन्हें जमीन का पजेशन मिलना चाहिए. उनका दावा टाइटल पर नहीं बल्कि जन्मस्थान पर स्थित मंदिर की देखरेख और उस पर कब्जे पर है

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की की अध्यक्षता वाली 5-जजों की संविधान पीठ ने कहा कि जन्मस्थान का पजेशन न तो देवता के नेक्स्ट फ्रेंड को दिया जा सकता है न ही पूजारी को.

  • पुजारी को नहीं दिया जा सकता कब्जा.
  • निर्मोही अखाड़े और राम लल्ला द्वारा पेश किए गए मुकद्दमें में कोई टकराव नहीं.
  • अखाड़े का दावा शेबित के रुप में है.अखाड़ा स्वतंत्र रूप से अपने 'शेबिट' पर दावा कर सकते हैं.'
  • भूमि विवाद में अनावश्यक रूप से विरोधी क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है अखाड़ा ,जिसकी आपको जरूरत नहीं है.
  • अगर देवता के मुकदमे को खारिज कर दिया गया, तो अखाड़ा किसके लिए शेबैत होगा

जैन ने कोर्ट में तर्क दिया कि देवकी नंदन अग्रवाल को मुकद्दमा दायर करने का अधिकार नहीं होना चाहिए.देवता को सभी मुकदमों में एक पक्षकार होने की आवश्यकता नहीं है और 'शेबैत' के माध्यम से प्रतिनिधित्व किया जा सकता है. तो पीठ ने कहा कि अगर कोई तीसरा पक्ष देवता की भूमि पर कब्जा कर लेता है, तो 'शेबैत' मुकदमा दायर कर सकता है, लेकिन अगर कोई महत्वपूर्ण हित शामिल था, तो देवता खुद ही मुकदमों की शुरुआत कर सकता है. इस पर जैन ने कहा ,एक शेबिट देवता की ओर से अपने नाम पर मुकदमा कायम कर सकता है और देवता को पक्ष के रूप में पेश करने की जरूरत नहीं है.

  • देवता को पार्टी बनाने की आवश्यकता नहीं.
  • 'शेबिट' को केवल तभी बाहर निकाल दिया जाता है जब यह साबित हो जाता है कि यह देवता के हित के खिलाफ काम कर रहा था.
  • मुस्लिमों ने 1934 से वहां 'नमाज' की पेशकश नहीं की थी.
  • पूजा करना शेबित का अधिकार.
  • विवादित जगह को 'बीना लगन की भूमि' (बिना किराए के क्षेत्र) के रूप में संदर्भित किया गया था.
  • 1950 से पहले भूमि पर अखाड़ा का कब्जा.

इस बहस के साथ सोमवार की सुनवाई पूरी हो गई. मंगवलार को एक बार फिर अखाड़ा के वकील अपने दलीलें पेश करेंगे.

पढ़ें- अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का पांचवां दिन, हिंदू पक्ष ने रखी ये दलीलें

बता दें कि इससे पहले, अदालत ने अखाड़े को विवादित क्षेत्र के बारे में अपना दावा बताया था कि शेबैत देवता के प्रतिकूल कभी नहीं हो सकता.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चार सिविल मुकदमों पर 2010 के अपने फैसले में, 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच समान रूप से विभाजित किया था।
2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चौदह अपील दायर की गई हैं.

6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने ध्वस्त कर दिया था, जिसके कारण कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी.

Last Updated : Sep 28, 2019, 10:04 AM IST

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