'पेड़ सबसे अच्छे शिक्षक हैं जो हमें निस्वार्थता और बलिदान सिखाते हैं'
जंध्यला पपीय्यासास्त्री
यदि सेवा-उन्मुख स्वार्थरहित मदद का कोई जीवंत उदाहरण हो सकता है जो किसी के द्वारा देखा जा सके, तो वह पेड़ के अलावा और कुछ नहीं हो सकता. इस ग्रह पर हर जीवित चीज ऑक्सीजन द्वारा जीवनदान पाती है जो ये पेड़ हमें प्रदान करते हैं, साथ ही साथ अन्य विभिन्न उपोत्पाद जैसे फल, पत्ते, दवाइयां, लकड़ी और अन्य जीविकाएं जो मनुष्यों को प्राप्त हैं. इसलिए, यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि जीवन का अस्तित्व बहुत खतरे में है यदि पृथ्वी पर पेड़ नहीं रह जायेंगे.
भारत सदियों पुराने संस्कारों और भावनाओं के माध्यम से जीवन और प्रकृति के किसी भी रूप की अराधना करने की पारंपरिक पद्धति में पहले स्थान पर है. हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि हम उन देशों की सूची में भी सबसे ऊपर के पायदान पर खड़े हैं जो पेड़ों की कटाई की उच्चतम दर का सामना कर रहे हैं. इसके अलावा, हमरा देश प्रति व्यक्ति पौधों की दर में सबसे कम दर्जे पर सूचीबद्ध है.
इस तरह के हालात में, 'ग्रीन-इंडिया चैलेंज' जैसे संगठन एक वरदान की तरह हैं जो स्कूली बच्चों, राजनेताओं, नौकरशाह, मशहूर हस्तियों और आम आदमी सहित समाज के सभी हितधारकों के साथ भागीदारी करते हुए समय की आवश्यकता के अनुकूल जागरूकता लाने की कोशिश कर रहे हैं.
लुप्त होते वन
भारतीय उपमहाद्वीप में एक विविध वातावरण है, जिसके कारण देश की लंबाई और चौड़ाई में जैव विविधता, कश्मीर से शुरू होकर कन्याकुमारी तक विविध वनस्पतियों और जीवों के साथ हमें उपहार में मिली है. हालांकि, जंगलों के घटते आंकड़ों को देखकर दुख होता है जब हम देश में नागरिकों की संख्या की तुलना पौधों से करते हैं. जबकि दुनिया में प्रति व्यक्ति लगभग 422 पौधे हैं. भारत में प्रति व्यक्ति सिर्फ 28 पौधे हैं. सबसे निराशाजनक यह तथ्य है कि मुंबई में, जिसे देश की वित्तीय राजधानी कहा जाता है, यहां प्रति व्यक्ति सिर्फ 4 पेड़ हैं.
कनाडा पूरी तरह से हरे और स्वच्छ शहरों की सूची में सबसे ऊंचे पायदान पर है, जहां प्रति व्यक्ति 8,953 पौधे हैं. इसी पंक्ति में दूसरे स्थान पर 4,461 पौधों के साथ रूस और प्रति व्यक्ति 3,266 पौधों के साथ ऑस्ट्रेलिया तीसरे स्थान पर है. प्रति व्यक्ति वृक्षारोपण में सूची भिन्न होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ सरकारी नीतियों, युगों-युगों से चली आ रही हरियाली, जन में जागरूकता और सक्रिय जन भागीदारी से प्राप्त हुए निहितार्थ हो सकते हैं. इन सभी को या अधिकांश को भारत में नहीं देखा जा सकता है, जो चिंता का विषय है. पौधों की कटाई और दोबारा पौधे लगाने की उपेक्षा एक दैनिक चिंता का कारण है. इस प्रकार, हमारा देश तेजी से अपने जंगलों को खोता चला जा रहा है.
वनों की कटाई और अध: पतन केवल हमारे देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय नहीं है, बल्कि यह दुनिया भर में तेजी से हो रहा है. एक अमेरिकी अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, पृथ्वी को लगभग 1000 करोड़ हेक्टेयर रोपण के लिए हरियाली से भरा माना जाता है. हालांकि, 1990 के बाद से, लगभग 12.9 करोड़ हेक्टेयर ग्रह की सतह से पेड़ों को हटा दिया गया है और अभी भी एक खतरनाक दर से पेड़ों की कटाई जारी है. इसके होने के विभिन्न कारण हैं जैसे लकड़ी की तस्करी, वन में अवैध शिकार, जंगल की आग, औद्योगिकीकरण, खेती और कृषि के लिए वन भूमि को साफ़ करना और कई अन्य मानव द्वारा की गयी गलतियां. लगभग 90 करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं.
भारत में, विशेष रूप से, हम बहुत तेज़ी से जंगलों को खो रहे हैं. 1988 की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, भारत की एक तिहाई भूमि का वनों के साथ सह अस्तित्व होना चाहिए. जबकि, वर्तमान में, देश की वन की भूमि कुल कब्जे का लगभग 24.39 प्रतिशत है. 2017 में भारतीय वन सर्वेक्षण संगठन द्वारा प्रस्तुत एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में, वनों की कटाई तेजी से वार्षिक आधार पर बढ़ रही है. वन हमारी ही आंखों के सामने से तीव्र गति से लुप्त हो रहे हैं. दोनों तेलुगु राज्यों में भी इस तथ्य का कोई अपवाद नहीं हैं और देश के बाकी हिस्सों की तुलना में यहां वन अधिक तीर्वता से कम हो कर रहे हैं.
हैदराबाद, जो तेलंगाना की राजधानी है, हरे भरे वृक्षारोपण, झीलों और अन्य जल निकायों के साथ साथ बहुमुखी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी जाना जाता है. दुर्भाग्य से, यहां तक कि यह शहर आज वनों की कटाई के चंगुल में है और शहर की बढ़ती आबादी के कारण इसने लगभग 60% वनस्पति को खो दिया है. दूसरे तेलुगु राज्य के साथ भी ऐसा ही मामला है, जहां राज्य में हरियाली में गिरावट की स्थिति बनी हुई है.
वनों की कटाई की वजह से न केवल अस्थमा और सांस लेने की अन्य समस्यायें बढ़ रहीं हैं, बल्कि मानसून और अन्य प्रतिकूल जलवायु में परिवर्तन होने का एक प्रमुख कारक बन रही है जो खेती और कृषि को प्रभावित करती है, इसके अलावा वनस्पतियों और जीवों के प्रजनन काल पर भी अपना दुषप्रभाव डालती हैं. वनों की कटाई और वनस्पति की कमी के नकारात्मक प्रभावों, भोजन और पानी की तलाश में वन्य जीवन का अपने आवास से बाहर निकलने पर विवश होने के कारण पारिस्थितिकी तंत्र में अत्याधिक उथलपुथल मच गई है. मानव जाति के लिए पेड़ों की कटाई की वजह से उपजी चिंता का मुख्य कारण है पानी की उपलब्धता, खेती के लिए बारिश का पानी, अंतस्वरूप एक अकाल ग्रस्त समाज जो ऑक्सीजन के बिना त्राहि त्राहि कर रहा होगा!!
कहते हैं कि प्रति वर्ष, एक पूरी तरह विकसित वृक्ष हमें लगभग 24 लाख रुपये की कीमत की ऑक्सीजन प्रदान करता है, और लगभग 0.53 टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड और लगभग 1.95 किलोग्राम अन्य प्रदूषकों को खपाता है. वह हमारी पृथ्वी के आन्तरक में लगभग 1,400 गैलन वर्षा के जल के संचय में भी मदद करता है. एक स्वस्थ व्यक्ति का प्रतिदिन ऑक्सीजन का सेवन लगभग 3 सिलेंडर होता है. इस दर पर, यदि किसी व्यक्ति को जीवन भर के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता है, तो उसे अपने जीवन प्रत्याशा के दौरान कम से कम 3 पेड़ लगाने और उगाने की आवश्यकता होती है. मनुष्यों को मैत्रीपूर्ण और सामाजिक प्राणी के रूप में जाना जाता है, हालांकि, अब बड़ा सवाल यह है कि हम उन पेड़ों के प्रति कितने स्नेहशील हैं और देखभाल कर रहे हैं जो हमारे समूचे अस्तित्व का स्रोत हैं.
यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है
'ग्रीन इंडिया चैलेंज' जैसे संगठन मानव अस्तित्व के लिए वृक्षारोपण और वनस्पति की आवश्यकता के बारे में जागरूकता फैलाने के एकमात्र उद्देश्य के साथ आगे आए हैं. संगठन प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कम से कम 3 पेड़ों को लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करने के लक्ष्य के साथ काम करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि जो मनुष्य ने प्रकृति से अपने जीवन काल में लिया उसे वे प्रकृति को वापस कर सकें, अर्थात, ऑक्सीजन. ऐसे संगठनों की कई पहलों के लिए आभार व्यक्त करते हैं जिनके प्रयास के कारण पर्यावरण और वृक्षारोपण संरक्षण अब एक सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में पहचान मिल रही है.