नई दिल्ली: असम के मौजूदा सांसद नबा सरानिया ने असम में संरक्षित आदिवासी बेल्ट में गैर आदिवासियों की सुरक्षा की मांग की है.
आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक नियमों को असम में 1947 में लागू किया गया था ताकि आदिवासी पिछड़े संरक्षित आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों को आप्रवासियों से बचाया जा सके.
सरनिया ने कहा, 'गैर आदिवासियों के लिए, जो पीढ़ियों से तथाकथित आदिवासी इलाकों में रह रहे हैं, उनके लिए साल में कटौती की जानी चाहिए. उन्हें बिना किसी आधिकारिक काम के नहीं निकाला जा सकता है.'
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बता दें कि नाबा सरानिया पूर्वोत्तर विरासत फाउंडेशन द्वारा गौहाटी उच्च न्यायालय में भरी गई एक जनहित याचिका का उल्लेख कर रहे थे.
संगठन ऐसे सभी 'विदेशी प्रवासियों' को निकालने की मांग कर रहा है जो असम भूमि राजस्व (Assam Land Revenue) और विनियम अधिनियम 1947(Regulations Act 1947) के अनुसार संरक्षित आदिवासी समुदायों से संबंधित भूमि का अतिक्रमण कर रहे हैं.
सरनिया ने कहा, 'जब अधिनियम को गैर-आदिवासियों के हितों के लिए बनाया गया था जो पीढ़ियों से वहा रह रहे थे, उन क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया गया. आदिवासी भूमि में रहने वाले गैर आदिवासियों के वर्ष की पहचान करने के लिए एक संशोधित नियम होना चाहिए,'
नबा सरानिया का बयान, देखें गौरतलब है कि सरनिया कोकराझार लोकसभा सीट से लगातार दूसरी बार चुनाव लड़े हैं.
हेरिटेज फाउंडेशन ने दावा किया है कि बोडोलैंड टेरिटोरियल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट (बीटीएडी) क्षेत्र में आदिवासी बेल्ट और ब्लॉकों की 4.50 लाख बीघा जमीन है, जो गैर आदिवासी समुदायों द्वारा अतिक्रमण किए गए हैं.
2003 में बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) समझौते के तहत असम के कोकराझार, बक्सा, चिरांग और उदालगुई जिलों में बीटीएडी अस्तित्व में आया. इस समझौते पर केंद्रीय गवर्नमेंट, असम सरकार और विद्रोही संगठन बोडो लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) के बीच हस्ताक्षर किए गए.