नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 2003 की रिपोर्ट कोई साधारण राय नहीं है. पुरातत्ववेत्ता खुदाई में मिली सामग्री के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा सौंपे गये काम पर अपनी राय दे रहे थे.
सुनवाई के बाद हिंदू महासभा के अधिवक्ता विष्णु शंकर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि आज की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष द्वारा कोर्ट में कहा गया कि ASI द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में खामियां हैं और उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा कि इस मामले पर हिंदू पक्ष शनिवार को कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखेगा और यह साबित करने की कोशिश करेगा कि ASI की रिपोर्ट पर किस आधार पर इस रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है.
इससे पहले सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि ‘सुशिक्षित एवं अध्ययनशील विशेषज्ञों द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट से निष्कर्ष निकाला गया है.
शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां उस वक्त कीं जब मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने संविधान पीठ से कहा कि एएसआई की रिपोर्ट सिर्फ एक राय है और अयोध्या में विवादित स्थल पर पहले राम मंदिर होने की बात साबित करने के लिये इसके समर्थन में ठोस साक्ष्यों की आवश्यकता है.
मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि इस रिपोर्ट को पुख्ता साक्ष्य नहीं माना जा सकता.
उन्होंने कहा, 'एएसआई की 2003 की रिपोर्ट एक कमजोर साक्ष्य है और इसके समर्थन में ठोस साक्ष्य की आवश्यकता है.'
संविधान पीठ के अन्य सदसयों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट न्यायालय के लिये बाध्यकारी नहीं है क्योंकि यह प्रकृति में सिर्फ परामर्शकारी है.
संविधान पीठ अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर शुक्रवार को 33वें दिन सुनवाई कर रही थी.
मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा, 'यह (एएसआई की रिपोर्ट) सिर्फ एक राय है और इससे कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता.