नई दिल्ली :दागी छवि के उम्मीदवारों की ओर से अखबारों और टीवी चैनलों पर अपने आपराधिक ब्यौरे का विज्ञापन देने से जुड़े चुनाव आयोग के नए दिशा-निदेर्शो पर सवाल उठे हैं. इस मामले के याचिकाकर्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने शनिवार को चुनाव आयोग को मेल भेजकर दिशा-निदेर्शो में कई तरह की खामियां बताई हैं.
उन्होंने कहा है कि जिस तरह से चुनाव आयोग ने शुक्रवार को नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं. उससे दागी उम्मीदवार और उन्हें चुनाव मैदान में उतारने वाले राजनीतिक दल काट खोज लेंगे. जिससे सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की ओर से 2018 में दिए गए निर्णय की मंशा प्रभावित होगी. सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि विज्ञापन प्रकाशित कराने का अधिकार संबंधित जिला निर्वाचन अधिकारी को दिया जाए, क्योंकि उम्मीदवार इसमें चालाकी दिखाएंगे.
बकौल अश्विनी उपाध्याय, शाम पांच से नौ बजे के बीच सबसे ज्यादा टीवी चैनल लोग देखते हैं. ऐसे में टीवी चैनलों पर इसी समय विज्ञापनों को देना अनिवार्य किया जाए.प्रत्याशियों की ओर से दिए गए अखबारों के विज्ञापन मोटे अक्षरों में हैं, जिसमें सिर्फ धाराएं ही नहीं बल्कि हत्या, लूट, बलात्कार आदि अपराध का भी जिक्र हो.
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि चुनाव आयोग ने नामांकन के बाद तीन-तीन बार टीवी चैनलों और अखबारों में उम्मीदवारों की ओर से अपने आपराधिक ब्यौरे का विज्ञापन देने की जो गाइडलाइंस जारी की है, उसमें कई चीजें अस्पष्ट हैं. आयोग के निर्देश में अखबारों की प्रसार संख्या और टीवी चैनल की दर्शक संख्या के बारे में कोई शर्त नहीं लगाई गई है. इसके अलावा टीवी चैनलों पर किस समय विज्ञापन चलना चाहिए, इसका भी समय नहीं दिया गया है. ऐसे में दागी उम्मीदवार चालाकी दिखाते हुए बेहद कम प्रसार संख्या वाले उन अखबारों में विज्ञापन छपवाएंगे जिसे कोई जानता भी नहीं होगा. टीवी चैनलों पर देर रात विज्ञापन चलवाएंगे जिस वक्त अधिकांश लोग टीवी नहीं देखते जिससे प्रत्याशियों की छवि के बारे में जनता जागरूक नहीं हो सकेगी.
अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 25 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने चुनाव आयोग को उम्मीदवारों के आपराधिक ब्यौरे के प्रकाशन का आदेश दिया था. जिस पर 10 अक्टूबर 2018 को चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मामलों के प्रकाशन के लिए कहा था, लेकिन चौंकाने वाली बात रही कि चुनाव चिन्ह और आदर्श आचार संहिता के नियमों में परिवर्तन किए बगैर जारी इस निर्देश की कोई कानूनी वैधता नहीं रही.