3 जनवरी 2020 को अमेरिकी ड्रोन हमले में ईरानी कुद्स सेना के जनरल कासिम सुलेमानी की मौत और इसके बाद आठ जनवरी को ईरान द्वारा इराक में अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर मिसाइल हमले की जवाबी कार्रवाई ने इस क्षेत्र में भारत की चुनौतियों को केंद्र में ला दिया है.
भारत ने अपने आधिकारिक जवाब में इस क्षेत्र में शांति, संयम, स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने की अपील की है. अगर खाड़ी क्षेत्र की बात करें तो यहां भारत का काफी कुछ दांव पर लगा है. भारत के विदेशी मामलों के रणनीतिकारों को तुरंत देश के राजनीतिक और आर्थिक हितों को यहां होने वाली घटनाओं के विपरीत असर से बचाने के लिए कोशिशें तेज कर देनी चाहिए.
बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस क्षेत्र में भारत के सबसे महत्वपूर्ण निवेश पर असर पड़ना लाजिमी है. वहीं खाड़ी की अर्थव्यवस्थाओं में काम करने वाले आठ मिलियन भारतीय मूल के कर्मचारी जो भारत की अर्थव्यवस्था में सालाना करीब $40 बिलियन का योगदान करते हैं.
भारतीय राजनयिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन लोगों का बड़ी संख्या में देश वापस आने को रोकना. यह कहने में जितना आसान है, उतना ही करने में मुश्किल. इसका कारण यह है कि ऐसे लोगों की बड़ी तादाद और यह बात कि इनमें से ज्यादातर लोगों को खाड़ी के देशों में भारत सरकार ने नहीं भेजा है.
इस क्षेत्र से लाखों की तादाद में लोगों को सुरक्षित निकालने के सामने अप्रैल 2015 में (करीब 5000) और 2011 में लीबिया से (18,000) भारत द्वारा अपने नागिरकों को निकालना कुछ भी नहीं लगता. भारत को इस क्षेत्र की राजनीतिक ताकतों से निरंतर संवाद कर राजनीतिक स्थिरता बरकरार रखने की तरफ काम करना चाहिए, जिससे वहां काम करने वाले भारतीय मूल के कर्मचारी इन देशों की अर्थव्यवस्था में सार्थकता से काम करते रहें.
भारत के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है खाड़ी के देशों से आने वाली कच्चे तेल की सप्लाई, जोकि देश में आने वाले कुल तेल का 60% है. 2018 में भारत ने खाड़ी से कुल $112 बिलियन का तेल खरीदा था. भारत इस समय दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है.
हालांकि अमेरिका द्वारा ईरान से तेल की खरीद के भुगतान पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंध के कारण देश में ईरान से आने वाले तेल की मात्रा में कमी आई है, इसके बावजूद क्षेत्र में मौजूदा अस्थिरता के कारण कच्चे तेल की खरीद के भारत के खर्चे मे इजाफा हो गया है. इसका असर तेल पर निर्भर भारत के घरेलू उद्योंगों पर भी पड़ेगा. देश के ऊर्जा क्षेत्र में आने वाले दिनों में खपत और खर्च का अनुमान लगाना भी एक बड़ी चुनौती है.