नई दिल्ली : प्रधानमंत्री के लेह दौरे ने मौजूदा सीमा तनाव के दौरान भारत की मजबूत स्थिति का एहसास चीन को करा दिया है. इसके जवाब में चीन का अगला कदम 1,126 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा पर और अधिक सैन्य मोर्चे खोलने का हो सकता है. इसमें अरुणाचल प्रदेश ऊंचाई, बेहतर बुनियादी ढांचे और आवागमन के लिहाज से चीन को ज्यादा सहूलियत प्रदान करता है. अब सवाल लेकिन का नहीं बल्कि कब का है.
हालांकि पाकिस्तानी सेना की इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) इस बात से इनकार करती है कि उसने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्रों में अपनी सेना को तैनात किया है, लेकिन हमारे पास विश्वसनीय रिपोर्ट्स हैं कि पाकिस्तानी सेना वहां पर मौजूद है.
कश्मीर में आतंकी घुसपैठ के अलावा भारत इस वक्त दो नहीं बल्कि ढाई गंभीर मोर्चों पर घिरा हुआ है. इसके अलावा नेपाल के साथ सीमा विवाद ने भारत की चिंता को बढ़ा दिया है.
अरुणाचल प्रदेश पर हो सकती हैं चीन की निगाहें ऐसी स्थिति में अरुणाचल प्रदेश में एक और मोर्चा खोलने से भारतीय सेना और सैन्य संपत्ति लंबे सीमा क्षेत्रों में फैल जाएगी, जिससे भारत के लिए सैन्य संचालन मुश्किल हो सकता है.
अरुणाचल प्रदेश के 25 में से 13 जिलों की सीमाएं भूटान, चीन और म्यांमार के साथ लगी हुई हैं.
भारत-चीन सीमा पर स्पष्टता की कमी और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर अलग-अलग धारणाओं के मापदंड का फायदा उठाते हुए चीन, भारत पर एक सैन्य और कूटनीतिक आक्रमणकारी योजना के अंतर्गत काम कर रहा है.
चीन ने इसका फायदा उठाते हुए अपने 30 हजार सैनिक, भारी हथियार और तोपों को लद्दाख से सटी सीमा पर तैनात कर दिया है.
तनाव को कम करने के लिए चीन के साथ बातचीत के बीच भारत ने भी उतने ही जवान और हथियार चीनी सैनिकों के सामने खड़े कर दिए हैं. अब यह देखना है कि क्या चीन वास्तव में सीमा विवाद का हल चाहता है या अपने मंसूबे साध रहा है.
चीन वर्षों से अरुणाचल प्रदेश को हथियाना चाहता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है. भारत का यह राज्य चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है और चीन आज तक यह तथ्य नहीं मानता कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है.
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लद्दाख में एलएसी की तरह, यहां मैकमोहन रेखा (एमएल) है, जो तिब्बत और पूर्वोत्तर भारत की सीमा का निर्धारण करती है. एमएल को 1914 में ब्रिटिश भारत के पूर्व विदेश सचिव (1911-14) आर्थर हेनरी मैकमोहन द्वारा खींचा गया था और ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच इसपर सहमति बनी थी. लेकिन चीन ने एमएल को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और अरुणाचल प्रदेश में 65,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में दावा किया.
इसलिए, भारत और चीन सीमा के बीच वास्तविक सीमा के रूप में भारत द्वारा स्वीकार किए गए एमएल की चीन की नजर में कोई मान्यता नहीं है.
चीनी पीएम चाउ एन लाई ने 23 जनवरी, 1959 को भारतीय पीएम जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि तिब्बत हमेशा से चीन का हिस्सा रहा है. लेकिन मैकमोहन रेखा खींचकर ब्रिटेन ने अपने हित साधे थे और घुसपैठ करके अरुणाचल प्रदेश को चीन के तिब्बती क्षेत्र से अलग कर दिया था. चीन तिब्बत को अपने अधिकार क्षेत्र में मानता है, इसलिए अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना अधिकार समझता है.
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल बर्फीले पहाड़ों से भरा हुआ है तो मैकमोहन लाइन में चट्टानी बंजर भूमि, दुर्गम पहाड़ और घने जंगल शामिल हैं.
अरुणाचल में बड़ी तादाद में सैनिकों को तैनात करने से बड़ी वित्तीय लागत आएगी. इस समय देश कोरोना के चलते गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है, ऐसे में सेना पर खर्च करना देश पर दोहरी मार जैसी होगी. यही सब भांपकर शायद चीन हम पर चोट करने की सोच रहा है.
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हालांकि अरुणाचल प्रदेश में बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है. तुतिंग में भारतीय पोस्ट से 15 किमी. दूर लाइज न्यांगची में आधुनिक उपकरणों से लैस एक मिलिट्री बेस बनाया गया है.
वर्ष 2014 में, जैसे ही नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार ने नई दिल्ली में सत्ता संभाली, तत्कालीन अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल निर्भय शर्मा ने पीएमओ को एक रिपोर्ट लिखी, जिसमें उन्होंने एलएसी के दोनों पक्षों के तुलनात्मक फोटोग्राफिक साक्ष्य प्रस्तुत किए.
जनरल शर्मा ने कहा कि अरुणाचल में भारत-चीन सीमा के साथ-साथ अधिकतर बीहड़ और कठिन इलाकों के लिए चीन ने ऐसी सड़कें बनाई हैं, जो लगभग मैकमोहन लाइन को छूती हैं जबकि ज्यादातर भारतीय सड़कें मैकमोहन लाइन से 50 से 70 किमी. की दूरी पर हैं. स्थिति में कुछ सुधार है, लेकिन बहुत कुछ करना बाकी है.
कमजोरी का फायदा उठाना चीन की पुरानी आदत रही है, इसलिए चीनी चाल को समझते हुए अब भारत बेहतर युद्ध योजना तैयार करेगा.