सोलन : पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी को लेकर भारत-चीन सीमा विवाद काफी तल्ख हो चुका है. 29-30 अगस्त से पहले 15-16 जून की रात को लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. वहीं झड़प के दौरान चीनी सेना के कमांडिंग ऑफिसर सहित करीब 40 जवान हताहत हुए थे, हालांकि चीन ने इसकी पुष्टि नहीं की.
एक तरफ एलओसी पर भारत-पाकिस्तान के बीच फायरिंग की घटना होती रहती है, वहीं दूसरी तरफ एलएसी पर भारत-चीन के सैनिक हथियारों का प्रयोग करने से बचते हैं, आखिर चीन क्यों बार-बार संधि का नाम देकर झड़प कर एलएसी पर विवाद खड़ा करता है, जानिए ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट में, सोलन के रहने वाले भारतीय सेना से एम्युनेशन एक्सपर्ट रिटायर्ड कर्नल राजीव ठाकुर से.
1962 का भारत न समझे चीन
कर्नल राजीव ठाकुर ने बताया कि जिस तरह से अग्रेशन के साथ चीन ने गलवान वैली में भारतीय सेना पर अटैक किया है, अब वक्त है चीन की बुलिंग टैक्टिस को ना से कम करने का. उन्होंने कहा कि जिस एरिया में यह विवाद खड़ा हुआ है, वह भारत के लिए भी महत्वपूर्ण एरिया है.
उन्होंने कहा की 1962 और आज के समय में बहुत फर्क है, चीन यह बात भूल जाए कि 1962 का भारत आज भी वैसा ही है. आज इंटरनेशनल स्टेज पर भारत स्टैंड है अगर आज आर-पार की लड़ाई भी होती है तो भारत तैयार है.
उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय डिफेंस मिनिस्टर जॉर्ज फर्नांडिस ने आगाह कर दिया था कि हमें और देशों की बजाए अपने ईस्ट सेक्टर में चीन से सतर्क रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आज तक भारत पंचशील पॉलिसी के तहत संधि करते आए हैं, हमने आज तक शांति के साथ कार्य किया है और उसी तरह से जवाब दिया है.
एलएसी पर आखिर भारत-चीन के दरमियान गोली क्यों नहीं चली
कर्नल ठाकुर इसका जवाब देते हैं कि, साल 1967 में नथुला इस्टर्न सेक्टर में भारत-चीन में लड़ाई हुई थी. जिसमें भारत के 70 जवान शहीद हुए थे और चीन के करीब 500 जवान शहीद हुए थे. साल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव चीन की यात्रा पर गए थे, इस दौरान दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बरकरार रखने के लिए 9 बिंदुओं पर समझौता किया गया था.
इस समझौते के तहत भारत चीन सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने पर जोर दिया गया था. दोनों देशों के बीच यह तय हुआ था कि भारत-चीन एक दूसरे के खिलाफ बल या सेना के प्रयोग की धमकी नहीं दी जाएगी और दोनों देशों की सेनाओं की गतिविधियां वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे नहीं बढ़ेंगी.
जिसके चलते 1996, 2003 और आज तक बॉर्डर टॉक्स चलती आई हैं. यही कारण है कि एलएसी के साथ लगते मैकमोहन और लद्दाख में दोनों तरफ की फौजों ने आज तक हथियार नहीं उठाए और न ही आज तक इस एरिया में कभी गोली चली है.
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पैंगोंग त्सो झील का विवाद ?
लद्दाख में 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो झील हिमालय में करीब 14,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है. इस झील की दूरी का 45 किलोमीटर का क्षेत्र भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर चीन के क्षेत्र में आता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा इसी झील के बीच से गुजरती है, लेकिन चीन यह मानता है कि पूरी पैंगोंग त्सो झील चीन के अधिकार क्षेत्र में आती है.
कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि वहां रोड नहीं है चलने के लिए ट्रैक है, जहां पर सिर्फ दोनों देश एक-दूसरे पर नजर रखते हैं. उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र स्ट्रेटेजिक इंपॉर्टेंट से कम है, लेकिन इसके साथ लगते गलवान वैली जहां पर यह हादसा हुआ है वह दोनों ही देशों के लिए जरूरी है.
चीन गलवान वैली पर क्यों नहीं चाहता भारत का कब्जा
कर्नल राजीव ठाकुर ने कहा कि गलवान वैली दौलत बेग ओल्डी सियाचिन एरिया के साथ लगती है. यहां भारत एक ब्रिज का निर्माण कर रहा है. यहां सेना की आखिरी पोस्ट भी है. इसके नीचे एक लैंडिंग ग्राउंड है जहां इंडियन आर्मी अपनी सेना को डेढ़ से दो घंटे में पहुंचाने में सक्षम है.
आमतौर पर सेना को यहां पहुंचानें में आठ से नौ घंटे लग जाते थे. यह जगह दोनों ही देशों के लिए स्ट्रेटेजिक मायनों से ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस जगह से आगे सियाचिन और एक्साई चीन वाला एरिया साफ तौर पर दिखाई देता है, जहां से भारत चीन पर नजर रख सकता है.
उन्होंने कहा कि एक वजह यह भी हो सकती है कि चीन पाकिस्तान इकोनॉमी के जो कॉरिडोर के रोड बन रहे हैं उस पर भारत इस जगह से नजर रख सकता है, इसलिए चीन बार-बार इस जगह पर विवाद कर रहा है, ताकि भारतीय सेना इस जगह को छोड़ दे.