हैदराबाद : नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख केपी शर्मा ओली के सामने एक बड़ी संकट आ खड़ा हुआ है. दरअसल कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति के सदस्य अपनी सरकार के भारत से खराब होते संबंधों पर प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. पार्टी सदस्यों के भारी दबाव को देखते हुए ओली शुक्रवार को अपने ही आवास पर आयोजित स्थायी समिति की बैठक से नदारद रहे. प्रधानमंत्री ओली की गैर मौजूदगी में हुई इस बैठक में केवल भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद पर ही चर्चा हुई.
इस दौरान स्थायी समिति के सदस्यों ने ओली प्रशासन को सीमा विवाद पर भारत के साथ कूटनीतिक वार्ता के लिए जमीनी स्तर पर विफल रहने और नेपाल-भारत संबंधों को हाल के इतिहास में सबसे निचले स्तर तक खराब करने का जिम्मेदार ठहराया. नेपाली मीडिया में यह खबर सुर्खियों में है. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की 44 सदस्यीय स्थायी समिति में उनके साथ 15 सदस्य ही हैं. यह समिति मांग कर रही है कि ओली या तो प्रधानमंत्री पद छोड़े अथवा पार्टी अध्यक्ष पद. एक व्यक्ति दो पद की व्यवस्था अब नहीं चलेगी.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को जब भी लगता है कि उनकी पार्टी के सदस्य सरकार की आलोचना कर रहे हैं, तो वह स्थायी समिति की बैठकों को टाल देते हैं. इससे पहले सात मई को होने वाली स्थायी समिति की बैठक को भी ओली ने स्थगित कर दिया था. शुक्रवार को कई नेताओं ने सरकार के मुखिया और पार्टी अध्यक्ष ओली के बारे में पूछा कि वह कहां हैं, तो इस विषय में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. बाद में पार्टी महासचिव बिष्णु पोडेल ने बताया कि प्रधानमंत्री अपने काम में व्यस्त हैं और बाद में बैठक में शामिल होंगे, हालांकि वह बैठक से नदारद रहे.
बैठक में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी संग कार्यशाला की कड़ी आलोचना
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार स्थायी समिति की इस बैठक में हाल ही में नेपाल और चीन की कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच आयोजित वर्चुअल कार्यशाला का सत्तारूढ़ पार्टी के प्रमुख नेता पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' सहित पक्ष-विपक्ष के तमाम नेताओं ने कड़ा विरोध किया और पार्टी की आलोचना भी की. पार्टी के विदेश विभाग के उप प्रमुख सुरेंद्र कार्की ने कहा कि इस तरह की बैठक आयोजित करने का यह सही समय नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत-चीन सीमा पर तनाव है, लेकिन हम परस्पर विरोधी दलों के साथ बैठक कर रहे हैं. हमने गुट निरपेक्षता और शांतिपूर्ण कूटनीति की नीति को बरकरार रखा है, लेकिन इस तरह की गतिविधियां हमारी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाएंगी.
पार्टी के भीतर प्रधानमंत्री ओली का तीखा विरोध
स्थायी समिति के एक अन्य सदस्य गोकर्ण बिष्ट ने कहा कि ओली ने बैठक में न शामिल होकर इसके महत्व को नजरअंदाज कर दिया है, जो इतने लंबे समय के बाद हो रही है. उन्होंने कहा कि अध्यक्ष द्वारा अपनी पार्टी की बैठक से बचने एक अपमानजनक बात है. उन्हें अपनी पार्टी के नेताओं की बात सुननी चाहिए. बैठक में भाग लेने वाले प्रमुख नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड, एस्टा लक्ष्मी शाक्य, भीम रावल और ओली के करीबी रघुबीर महासेठ शामिल थे. ओली द्वारा महत्वपूर्ण बैठक की अनदेखी करने के लिए प्रधानमंत्री की मंशा पर सवाल उठाए गए. पार्टी नेताओं ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सिर्फ ओली की वजह से यह बैठक प्रधानमंत्री के निवास बलुवातर में आयोजित की गई थी और अगर वह इसमें शामिल होने से इनकार करते हैं, तो बैठक धुम्बरही में पार्टी मुख्यालय में होनी चाहिए थी.
पार्टी का भरोसा खो चुके हैं ओली, 44 सदस्यीय स्थायी समित में महज 15 ओली के साथ
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ओली जानते हैं कि 44 सदस्यीय स्थायी समिति उनके खिलाफ खड़ी हुई है. ज्यादा से ज्यादा उनके साथ 15 सदस्य ही हैं. बता दें कि तीन दिन से चल रही बैठक के पहले दिन प्रधानमंत्री ओली और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड दोनों ने एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए थे. बैठक में स्वर उभरे कि ओली को प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. स्थायी समिति के एक सदस्य ने कहा कि अब पार्टी के अन्य नेता भी इसी का पालन करने की तैयारी कर रहे हैं. स्थायी समिति सदस्य मथिका यादव, जो दहल के करीब हैं का कहना है कि कई नेता ओली के इस्तीफे की मांग करने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि पार्टी के सदस्यों का बहुमत से मानना है कि ओली पर अब सरकार चलाने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता. बुधवार की बैठक के दौरान प्रचंड ने कहा था कि अगर यही स्थिति बनी रही है, तो पार्टी नहीं रहेगी.
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ओली को छोड़ना पड़ सकता है प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष का पद
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रचंड गुट, जिसमें अब वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल, झलनाथ खनाल, बामदेव गौतम और नारायण काजी श्रेष्ठ शामिल हैं, एक नेता-एक जिम्मेदारी सिद्धांत लागू करने की योजना बना रहा है, जिसमें ओली को पार्टी अध्यक्ष या प्रधानमंत्री के बीच चयन करने के लिए कहा गया है. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने पद को बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं और उन्होंने पहले ही अपने लोगों को विभाजन के लिए तैयार रहने के लिए कहा है, लेकिन हम पार्टी को बरकरार रखने के पक्ष में हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि बैठक शुरू होने से पहले ही ओली स्थायी समिति में प्रस्ताव को रोकने के लिए दहल गुट के नेताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्हें अभी तक किसी का साथ नहीं मिला है. माधव कुमार नेपाल और गौतम दोनों ने ओली से कहा है कि सरकार और पार्टी दोनों को चलाने का उनका एकतरफा तरीका स्वीकार्य नहीं होगा. स्थिति को शांत करने के लिए ओली ने महासचिव पॉडेल को शीर्ष नेताओं से मिलने के लिए भेजा था, जिसमें दहल भी शामिल थे और उनसे स्थिति को आगे न बढ़ाने का आग्रह किया था. प्रचंड के प्रेस सलाहकार बिष्णु सपकोटा के अनुसार पुडेल ने संघर्ष रोकने के लिए दहल से अनुरोध किया, लेकिन दहल ने कहा कि यह प्रधानमंत्री पर निर्भर करता है.
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विवादास्पद प्रस्ताव को लेकर भी घिरे प्रधानमंत्री ओली
मीडियो रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ओली ने स्टैंडिंग कमेटी की बैठक से पहले पार्टी के सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक 'मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन नेपाल कॉम्पैक्ट' (एमसीसी) को पारित करने का प्रयास किया था. एक नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री संसदीय दल की बैठक बुलाने और कानून बनाने वालों को अपने दम पर मतदान करने की अनुमति देकर एमसीसी को आगे बढ़ाने के पक्ष में थे, जबकि सीनियर लीडर माधव नेपाल और वाइस चेयरमैन बामदेव गौतम ने कहा कि जब तक स्टैंडिंग कमेटी कोई फैसला नहीं लेती तब तक इंतजार करना चाहिए, लेकिन प्रचंड् ने स्थायी समिति में बहुमत के साथ नेपाल कॉम्पैक्ट को अपने वर्तमान स्वरूप में समर्थन देने की संभावना नहीं है. वहीं अधिक कट्टरपंथी पूर्व माओवादी पूरी तरह से एमसीसी के खिलाफ खड़े हो गए हैं. दहल का मानना है कि नेपाल कॉम्पैक्ट को कई संशोधनों के बाद पारित किया जा सकता है.
नेपाली मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि शुक्रवार की बैठक के एजेंडे में सीमा विवाद शामिस था. लीलामणि पोखरेल और देव गुरुंग सहित कई नेताओं ने भारत के लिए एक पासपोर्ट और वीजा प्रणाली का प्रस्ताव रखा, जबकि बेदुराम भुसाल, अमृत बोहरा और रघुबीर महासेठ नेपाल-भारत सीमा पर बाड़ लगाने के पक्ष में थे. अगली बैठक ओली सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होने की संभावना है.