स्वतंत्र भारत में डॉ. बीआर अंबेडकर ने देश पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है. वे उच्च शिक्षित, राजनेता, न्यायशास्त्र के विशेषज्ञ और एक महान अर्थशास्त्री थे. उन्होंने लाखों दलितों और दबे हुए वर्गों के सशक्तिकरण के लिए लड़ाई लड़ी. वह हमेशा देश की सम्प्रभुता, अखंडता और सभी के लिए समान अवसरों के निर्माण के लिए लड़ाई लड़ते रहे. उनके नेतृत्व में तैयार किया गया विशाल संविधान सात दशकों से हमारा नेतृत्व कर रहा है. अस्पृश्यता के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ने वाले महान सेनानी अंबेडकर देश के कोने-कोने में रह रहे सभी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. उनकी तस्वीर, जिसमें वह एक हाथ में पुस्तक थामे हैं, एक विशाल प्रतिमा के रूप में हम सबको प्रेरित करती रहती है.
भारत के संविधान के लेखन के लिए निर्वाचित संविधान सभा ने विभिन्न मुद्दों पर विचार के लिए 22 समितियों और 7 उप-समितियों का गठन किया था. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण 29 अगस्त, 1947 को गठित मसौदा समिति थी, जिसमें अध्यक्ष और छह सदस्यों के रूप में डॉ बीआर अंबेडकर थे. गांधी ने स्वयं माना था कि आंबेडकर के विचार बहुत ही स्पष्ट थे. गांधी के अनुसार अंबेडकर जानते थे कि भारत जैसे देश के, जहां भौगोलिक परिस्थितियां, धर्म और जातियां अलग-अलग हैं, लिए इससे अच्छी दिशा क्या हो सकती है.
हालांकि, कांग्रेस के पास संविधान सभा में बहुमत था, सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से अंबेडकर के नाम का प्रस्ताव रखा. तब वह कानून मंत्री थे. संविधान सभा ने 11 बार मुलाकात की. मसौदा समिति के सभी सदस्यों द्वारा लिखित और मौखिक रूप में दिए गए सुझावों को रिकॉर्ड किया गया. एक बार जब वे संहिताबद्ध हो गए, तो संविधान सभा में इस मामले पर बहस हुई. संवैधानिक परिषद ने मतदान के लिए किसी भी मुद्दे को नहीं रखा. प्रत्येक प्रस्ताव को एक लंबी चर्चा, समायोजन, समन्वय और आम सहमति के बाद ही अनुमोदित किया गया था. इस प्रक्रिया ने मसौदा समिति के काम को बहुत बढ़ा दिया. हर मसौदे की तैयारी के हिस्से के रूप में, अंबेडकर ने खुद 60 से अधिक देशों के गठन को पढ़ा. 2 साल और 11 महीने और 18 दिनों की लंबी और बौद्धिक रूप से चर्चा के बाद, मसौदा समिति ने हिंदी और अंग्रेजी में दो प्रतियां बनाईं. इसके पीछे अंबेडकर का अथक परिश्रम था. संविधान को संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को 115 दिनों की बहस और 2473 संशोधनों के बाद अपनाया था.