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जनता को पीटने के लिए जयश्री राम के नारे का हो रहा इस्तेमालः अमर्त्य सेन - जय श्री राम का नारा

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने बंगाल में सुर्खियां बटोर रहे जय श्री राम के नारे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उनका कहना है कि जय श्री राम का नारा बंगाली संस्कृति से नहीं जुड़ा है.

नोबेल पुरुस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन (सौ. @ANI)

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Published : Jul 6, 2019, 8:26 AM IST

कोलकाता: नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने शुक्रवार को कहा कि 'मां दुर्गा' के जयकारे की तरह 'जय श्रीराम' का नारा बंगाली संस्कृति से नहीं जुड़ा है. साथ ही कहा कि इसका इस्तेमाल 'लोगों को पीटने के बहाने' के तौर पर किया जाता है.

ट्वीट सौ. (@ANI)

अमर्त्य सेन ने यहां जादवपुर विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में कहा कि ‘माँ दुर्गा’ ही बंगालियों के जीवन में सर्वव्यापी है. उन्होंने कहा कि 'जय श्री राम' का नारा बंगाली संस्कृति से जुड़ा नहीं है और रामनवमी भी अभी 'लोकप्रिय हो रही है', इससे पहले उन्होंने यह नारा कभी नहीं सुना था.

ट्वीट सौ. (@ANI)

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उन्होंने अपने पोते का जिक्र करते हुए कहा, 'मैंने अपने चार साल के पोते से पूछा कि तुम्हारा पसंदीदा देवता कौन है? तो उसने जवाब दिया कि मां दुर्गा है. मां दुर्गा हमारे जीवन में कितनी सर्वव्यापी हैं.'

अर्थशास्त्री ने कहा कि मुझे लगता है कि 'जय श्री राम' के नारे लोगों को पीटने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.'

सेन की यह टिप्पणी देश के एक वर्ग द्वारा एक खास वर्ग को 'जय श्री राम' का जाप करने के लिए बोलने और ऐसा ना करने पर उनकी पिटाई करने की पृष्ठभूमि में आई है.
गरीबी पर सेन ने कहा कि 'केवल गरीब लोगों का आय स्तर बढ़ने से उनकी दुर्दशा कम नहीं होगी, बुनियादी स्वास्थ्य सेवा, उचित शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा से गरीबी को कम किया जा सकता है.'

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