नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को जोर दिया कि सार्वजनिक जीवन में इतनी सभ्यता होनी चाहिए कि विभिन्न विचारधाराओं के लोग एक-दूसरे को सुन सकें, भले ही वे हर बात पर एक दूसरे से सहमत हो या नहीं हो.
मोदी ने यह भी कहा कि नए भारत में सरनेम (उपनाम) मायने नहीं रखता, बल्कि अपना नाम बनाने की युवाओं की क्षमता मायने रखती है.
प्रधानमंत्री ने रचनात्मक आलोचना का स्वागत करते हुए कहा कि लोगों तथा संगठनों के बीच संवाद अवश्य होना चाहिए, भले ही उनके सोचने का तरीका कुछ भी हो.
उन्होंने कहा, हमें हर बात पर सहमत होने की जरूरत नहीं है, लेकिन सार्वजनिक जीवन में इतनी सभ्यता होनी चाहिए कि विभिन्न विचारधाराओं के लोग एक-दूसरे को सुन सकें. मोदी यहां से वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के जरिए कोच्चि में मलयाला मनोरमा के एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा, यहां मैं ऐसे मंच पर हूं जहां शायद बहुत लोग ऐसे नहीं हैं जिनके विचार मुझसे मिलते हो लेकिन ऐसे काफी संख्या में विचारवान लोग हैं जिनकी रचनात्मक आलोचना को लेकर मैं काफी आशान्वित हूं.
बता दें इस सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी, कांग्रेस नेता शशि थरूर, भाकपा नेता डी राजा, माकपा नेता मोहम्मद सलीम, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा सहित अन्य लोग मौजूद थे.
उन्होंने कहा, यह नया भारत है जहां युवा का सरनेम मायने नहीं रखता, बल्कि अपना नाम बनाने की उसकी क्षमता मायने रखती है. यह नया भारत है जहां भ्रष्टाचार का कोई स्थान नहीं है.
उन्होंने कहा, यहां मैं एक ऐसे फोरम पर हूं जहां शायद बहुत से लोगों का सोचने का तरीका मेरे जैसा न हो, लेकिन ये चिंतनशील लोग हैं जिनकी रचनात्मक आलोचना का मुझे इंतजार रहता है.
मोदी ने कहा कि आम तौर पर माना जाता है कि सार्वजनिक जीवन से जुड़े लोग ऐसे मंचों पर जाना पसंद करते हैं जहां की सोच व्यक्ति की खुद की सोच से मिलती हो क्योंकि ऐसे लोगों के बीच काफी सहज महसूस होता है.
प्रधानमंत्री ने कहा, बेशक मुझे भी ऐसे माहौल में अच्छा लगता है, लेकिन साथ ही, मेरा यह भी मानना है कि लोगों और संगठनों के बीच संवाद अवश्य होना चाहिए, भले ही उनके सोचने का तरीका कुछ भी हो.
उन्होंने कहा कि लाइसेंस राज और परमिट राज की आर्थिक व्यवस्था लोगों की आकांक्षाओं में रुकावट का काम करती है. लेकिन आज चीजें बेहतरी के लिए बदल रही हैं. हम विविधतापूर्ण स्टार्टअप ईको-सिस्टम में न्यू इंडिया की भावना को देख रहे हैं.
मोदी ने कहा कि वर्षों तक ऐसी संस्कृति को आगे बढ़ाया गया जहां आकांक्षा एक बुरा शब्द बन गया. तब सरनेम और सम्पर्क के आधार पर दरवाजे खुलते थे.
उन्होंने कहा आपकी सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि आप ओल्ड ब्वॉयज़ क्लब के सदस्य हैं या नहीं. बड़े शहर, बड़े संस्थान और बड़े परिवार... ये सभी मायने रखते थे.