हरिद्वार : जब भी कुंभ, सिंहस्थ, अर्धकुंभ या माघ का मेला लगता है, ये साधु-संन्यासी उसका एक अभिन्न अंग होते हैं. कोई साधु कई दशकों से एक पैर पर खड़ा है तो कोई सिर्फ जल पीकर ही जिंदा रहता है. धूनी रमाए, घनी जटाओं वाले ये साधु अपनी वेश-भूषा की वजह से लोगों को जहां थोड़ा डराते हैं, वहीं आकर्षित भी करते हैं. हिंदू धर्म के ये अखाड़े अपने प्रारंभिक रूप से बहुत बदल चुके हैं. लेकिन इनका मूल अभी भी धर्म की रक्षा में ही निहित है. इसके साथ ही धर्म ध्वजा का स्वरूप भी अभी तक बरकार है.
महाकुंभ मेले में मौजूद 13 अखाड़ों में प्रवेश करते ही अनेक तरह के साधु-संन्यासियों के दर्शन होते हैं. धर्म ध्वजा अखाड़ों की धार्मिक पहचान है, जो दूर से दिखाई देती है. कुंभ शुरू होने से पहले तमाम अखाड़े नगर प्रवेश के बाद अपनी धर्म ध्वजा छावनियों में स्थापित करते आये हैं. जिसके लिए एक विशेष कद-काठी के पेड़ के तने को जंगल से काटकर लाया जाता रहा है. अखाड़ों की छावनियों में स्थापित होने वाली धर्म ध्वजाओं को लगाने के लिए 52 हाथ की लकड़ी का प्रयोग किया जाता रहा है.
इसी क्रम में 30 जनवरी को मेला प्रशासन के साथ सभी 13 अखाड़ों के साधु-संतों ने देहरादून के छिदरवाला के जंगलों से अपने-अपने अखाड़ा में स्थापित होने वाली धर्म ध्वजा की लकड़ियों का चयन किया है. अब मेला प्रशासन द्वारा सभी अखाड़ों में धर्म ध्वजा की लकड़ियां पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी. जिसके बाद पूजा-अर्चना कर धर्म ध्वजा ससम्मान अखाड़ों में स्थापित की जाएगी.
अखाड़ों की छावनियों में स्थापित होने वाली धर्म ध्वजाओं को लगाने के लिए 108 फीट से 151 फीट तक की लकड़ी का प्रयोग किया जाता रहा है.