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अजित पवार ने कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि दी

आज कोरेगांव भीमा युद्ध की 202वीं बरसी पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार और वंचित बहुजन अघाडी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने श्रद्धांजलि दी. कोरेगांव भीमा युद्ध को एक जनवरी 2018 को दो सौ साल पूरे होने के मौके पर हिंसा भड़क उठी थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे. जानें विस्तार से...

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Published : Jan 1, 2020, 5:05 PM IST

Updated : Jan 1, 2020, 7:28 PM IST

ajit pawar pays tributes at bhima koregaon war memorial
अजित पवार

पुणे : महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार और वंचित बहुजन अघाडी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने कोरेगांव भीमा युद्ध की 202वीं बरसी पर यहां 'जय स्तंभ' पर श्रद्धांजलि दी.

बता दें, कोरेगांव भीमा युद्ध को एक जनवरी 2018 को दो सौ साल पूरे होने के मौके पर हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे. एक अधिकारी ने बताया कि पुलिस ने किसी तरह की अप्रिय घटना से बचने के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं.

जय स्तंभ पर जाने के बाद पत्रकारों से बातचीत में पवार ने कहा कि वह महाराष्ट्र के लोगों की ओर से श्रद्धांजलि देने आए हैं. उन्होंने कहा, 'इस स्तंभ का इतिहास है और हर साल लाखों लोग यहां आते हैं. दो साल पहले कुछ अप्रिय घटनाएं हुई थी लेकिन सरकार अत्यधिक सतर्कता बरत रही है और किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए व्यापक पुलिस बंदोबस्त किए गए हैं.'

अजित पवार ने श्रद्धांजलि दी

पवार ने लोगों से शांतिपूर्ण तरीके से युद्ध स्मारक पर जाने के लिए कहा. राकांपा नेता ने कहा, 'मैं लोगों से यहां आने और श्रद्धांजलि देने की अपील करता हूं लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से आएं और अफवाहों पर भरोसा न करें.'

प्रकाश आंबेडकर ने भी जय स्तंभ पर श्रद्धांजलि दी.

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क्या हुआ था 200वीं बरसी पर
2018 का साल का इस आयोजन के लिए बेहद खास था क्योंकि उस दिन भीमा कोरेगांव की लड़ाई के दो सौ साल पूरे हो रहे थे. पहली जनवरी को भीमा नदी के किनारे स्थित मेमोरियल के पास दिन के 12 बजे जब लोग अपने नायकों को श्रद्धांजलि देने इकट्ठा होने लगे तभी हिंसा भड़की. पत्थरबाजी हुई और भीड़ ने खुले में खड़ी गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया.

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क्या है इतिहास
युद्ध की बरसी पर श्रद्धांजलि देने के लिए कोरेगांव भीमा गांव के समीप 'जय स्तंभ' स्मारक पर हर साल लाखों लोग आते हैं. यह लड़ाई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा धड़े के बीच एक जनवरी 1818 को लड़ी गई थी. ब्रिटिशों ने युद्ध में शहीद हुए लोगों की याद में पुणे-अहमदनगर रोड पर पेर्ने गांव में यह स्मारक बनवाया था. दलित नेता ब्रिटिश जीत का जश्न मनाते हैं क्योंकि महार समुदाय के सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी के बलों का हिस्सा थे. पेशवा ब्राह्मण थे और इस विजय को दलितों की जीत के तौर पर देखा जाता है. इस लड़ाई में मराठाओं की हार हुई और जीत का सेहरा ईस्ट इंडिया कंपनी की महार रेजिमेंट के सिर बंधा. महार समुदाय उस वक्त महाराष्ट्र में अछूत समझा जाता था.

Last Updated : Jan 1, 2020, 7:28 PM IST

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