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कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठनों ने किया 'दिल्ली चलो' का एलान

किसान संगठनों ने नए कृषि कानूनों के विरोध में देशभर में आंदोलन जारी रखने का आह्वान किया है. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने कहा है कि गांधी जयंती के दिन देशभर के किसान कृषि बिलों का समर्थन करने वाली पार्टियों के जनप्रतिनिधियों का बहिष्कार करने का संकल्प लेंगे.

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'दिल्ली कूच' का आह्वान

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Published : Sep 29, 2020, 9:58 PM IST

नई दिल्ली : नए कृषि कानून पर किसान संगठनों का विरोध लगातार जारी है और अब एक बार फिर देशभर के किसान नवंबर महीने में दिल्ली कूच करेंगे. 250 किसान संगठनों को एक साथ जोड़ने वाली अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) ने घोषणा की है कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में उनका आंदोलन जारी रहेगा.

समिति ने कहा कि दो अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन देशभर में किसान उन पार्टियों के जनप्रतिनिधियों का बहिष्कार करने का संकल्प लेंगे, जिन्होंने संसद में कृषि बिल का समर्थन किया. 14 अक्टूबर को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति से जुड़े 250 किसान संगठनों के किसान 'एमएसपी अधिकार दिवस' के रूप में मनाएंगे. इस दिन किसानों का प्रदर्शन मंडियों और जिला तहसील में होगा, जिसके तहत किसान सरकार से एमएसपी पर फसल की खरीद की मांग करेंगे.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का बयान

समिति के मुताबिक, 26 और 27 नवंबर को किसान देश की राजधानी दिल्ली में जुटेंगे और 28 नवंबर को एक बार फिर दिल्ली में किसानों का बड़ा विरोध मार्च आयोजित होगा. AIKSCC ने किसानों से 'दिल्ली चलो' का आह्वान किया है.

गत 25 सितंबर के भारत बंद को सफल बताते हुए समन्वय समिति के संयोजक सरदार वीएम सिंह ने कहा कि यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि भारत बंद का असर केवल पंजाब और हरियाणा में ही देखने को मिला, जबकि ऐसा नहीं है. देश के अलग-अलग हिस्सों से जो रिपोर्ट्स उनके पास आई हैं, उसके मुताबिक 20 राज्यों में दस हजार से ज्यादा जगहों पर डेढ़ करोड़ किसानों ने इस बिल के विरोध में प्रदर्शन किया था.

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और मोदी सरकार के अन्य मंत्रियों का कहना है कि कृषि बिल का विरोध केवल राजनीतिक है. या तो विपक्ष यह विरोध आयोजित कर रहा है या फिर बिचौलिए. हालांकि, AIKSCC ने इसका खंडन करते हुए कहा कि जब पांच जून को कृषि अध्यादेश लाए गए, तभी से किसान संगठन इसका विरोध करते रहे हैं. नौ अगस्त से 25 अगस्त के बीच लगातार इसके विरोध में उनकी राज्य इकाइयां और केंद्रीय टीम भी प्रदर्शन कर रही है.

एमएसपी के मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए AIKSCC वर्किंग कमेटी के सदस्य और अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हनन मोल्ला ने कहा कि यह मुद्दा केवल एमएसपी का नहीं है, बल्कि किसानों की मांग के सम्मान का है. घोषित एमएसपी भी पर्याप्त नहीं है, बावजूद इसके केवल छह प्रतिशत किसानों को ही इसका फायदा मिलता है.

कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन को देशव्यापी बताते हुए हनन मोल्ला ने कहा कि 25 सितंबर को सिर्फ तमिलनाडु में ही 300 से ज्यादा जगहों पर 35,000 से ज्यादा किसान सड़कों पर उतरे थे, जिसमें से 11,000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया. इससे प्रमाणित हो जाता है कि पूरे देश के किसानों ने इस बिल को नकारा है.

समन्वय समिति के सह संयोजक और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि जब 2011 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री होते थे, तब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर एमएसपी गारंटी कानून की मांग की थी, लेकिन आज जब वह खुद प्रधानमंत्री हैं, तो अपनी ही बात भूल गए हैं.

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अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के साथ जुड़े 250 किसान संगठनों के अलावा अन्य किसान संगठन भी इसका विरोध ही कर रहे हैं. आरएसएस की किसान इकाई भारतीय किसान संघ ने भी बिल पर आपत्ति जताई थी, लेकिन उन्हें भी बिल संबंधित किसी चर्चा में शामिल नहीं किया गया. AIKSCC ने देश के अन्य किसान संगठनों से भी बातचीत कर उन्हें एक मंच पर लाने की बात कही है.

स्पष्ट है कि आने वाले महीनों में भी कृषि कानूनों के विरोध में लगातार विरोध देखने को मिलेंगे. सरकार भले ही नए कृषि कानूनों को किसान हितैषी और ऐतिहासिक बता रही है, लेकिन एक वास्तविकता यह भी है कि देश का कोई बड़ा किसान संगठन इस समय सरकार के साथ खड़ा नहीं है.

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