चंडीगढ़ : पंजाब सरकार द्वारा केंद्र के कृषि सुधार कानून के खिलाफ विधानसभा में संशोधन विधेयक पारित करने के कदम की कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना ने कड़ी आलोचना की है और पंजाब सरकार के निर्णय को राजनीतिक और बेतुका करार दिया है.
ईटीवी भारत से बातचीत में विजय सरदाना ने कहा कि अर्थनीति के ऊपर राजनीति हावी हो गई है ऐसे में इसका खामियाजा पंजाब के किसानों को भुगतना पड़ेगा क्योंकि अब निवेशक पंजाब में आने से कतराएंगे.
विजय सरदाना ने आगाह किया है कि यदि अन्य राज्य भी ऐसे कदम उठाते हैं तो वह अपने किसानों का भला नहीं बल्कि अहित ही करेंगे.
पंजाब सरकार ने जो तीन संशोधन विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किए और पारित किए हैं, वह तीनों केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति के लिए भी बहुत घातक है.
कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना ने दी जानकारी सरदाना ने कहा कि अनिवार्य न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून की घोषणा तो की गई है लेकिन गुणवत्ता क्या होगी, इस पर विधानसभा ने कुछ नहीं कहा. इसका मतलब है कि क्वालिटी चाहे अच्छी हो या खराब, उत्पाद खाने लायक हो या नहीं.. जो भी उसकी खरीददारी होगी उस पर एमएसपी देनी पड़ेगी.
उन्होंने कहा कि ऐसा दुनिया में कहीं नहीं होता है. इसका परिणाम यह होगा कि भारत के जितने भी व्यापारी या खरीददार हैं, वह पंजाब से खरीददारी नहीं करेंगे क्योंकि खरीददार हमेशा गुणवत्ता देख कर पैसे देता है. यदि उपज की गुणवत्ता कम है तो वह कम कीमत में खरीदता है.
विजय सरदाना के मुताबिक जब भी कोई ताजी फसल आती है, उसमें 10-15% ही सभी क्वालिटी के मानकों को पूरा कर पाती है, 80-85% फसल ऐसी होती हे, जिसे प्रसंस्करण के जरिये बेहतर किया जाता है.
मैंने जब व्यापारियों और कुछ कंपनियों से बातचीत की, तो उनका कहना है कि ऐसे में वह पंजाब से माल खरीदने से बचेंगे. सरदाना ने इसे एक गलत कदम बताते हुए कहा कि राजनीति के आगे पंजाब सरकार ने अर्थव्यवस्था को सरेंडर कर दिया है. यदि राजनीतिक पार्टियां इस तरह से व्यवहार करेंगी, तो बाकी देशों का भारत पर विश्वास कम होगा.
दूसरी महत्वपूर्ण बात इन संशोधन विधेयक पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की सहमती की है. विजय सरदाना ने राष्ट्रपति और राज्यपाल से निवेदन किया है कि वह पंजाब सरकार से सवाल करें कि जो खराब पैदावार होगी उसकी खरीद एमएसपी पर कौन करेगा? किसान नेता यह बात सोच कर खुश हो सकते हैं कि शायद उनकी बात मान ली गई है लेकिन इससे ज्यादा अपरिपक्वता और अज्ञानता क्या हो सकती है कि उन्होंने इसके दुष्परिणाम अपने ही किसानों पर पड़ता हुआ नहीं देखा.
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एक और महत्वपूर्ण बिंदु अंकित करते हुए विशेषज्ञ विजय सरदाना ने कहा कि पंजाब सरकार ने एमएसपी विधेयक में केवल गेहूं और चावल को ही शामिल किया है. किसान संगठन तो हर फसल पर एमएसपी अनिवार्यता कानून की मांग कर रहे थे. क्या अन्य फसल उगाने वाले किसान को पंजाब सरकार किसान नहीं मानती है? मुझे लगता है यह बहुत चिंता की बात है और राज्य सरकारों को इस पर जवाब देना पड़ेगा. आगे जो भी राज्य सरकारें ऐसे कदम उठाएंगी उन पर से व्यापारियों और निवेशकों का भरोसा उठ जाएगा.
आने वाले छह महीने से एक एक साल में इन राज्य सरकारों को अपने कदम वापस लेने पड़ेंगे क्योंकि किसान और किसान संगठन ही फिर मांग करेंगे कि उनकी फसल की खरीद नहीं हो रही है.
बहरहाल किसान संगठन पंजाब सरकार से इस बात पर संतुष्टि व्यक्त कर रहे हैं कि अनिवार्य एमएसपी पर कानून बनाने के लिए विधेयक पारित करने वाला यह पहला राज्य है. हालांकि, विधेयक को कानून में परिवर्तित करने लिए अभी तमाम चुनौतियां कैप्टन अमरिंदर सरकार के सामने हैं.