जयपुर : राजस्थान में पिछले एक साल से टिड्डियों (Locust) का प्रकोप काफी बढ़ गया है. पिछली बार टिड्डियों ने खड़ी फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया था. वहीं इस साल भी मई और जून के महीने में प्रदेश के लगभग सभी जिले इसकी जद में आए हुए हैं.
हालांकि फसल की बुवाई ना होने के चलते मई महीने में हुए टिड्डी के हमले के दौरान फसलों को नुकसान नहीं हुआ, लेकिन अगर इन टिड्डियों ने अंडे दे दिए और जून के आखिर और जुलाई के शुरुआत में ये टिड्डियां फिर से आ गईं तो इनके हमले से हुए नुकसान का आकलन कर पाना बड़ा मुश्किल होगा.
कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर अर्जुन सिंह की मानें तो, जिस तरीके से डेजर्ट इलाकों में इस बार प्री-मानसून की बारिश अच्छी हुई है. उससे टिड्डियों का खतरा बढ़ गया है. टिड्डियों को मारने के लिए कृषि विभाग के संबंधित अधिकारी रात को इनके बैठने का इंतजार करते हैं और सुबह पांच बजे से लेकर साढ़े सात बजे तक इनको मारने का सबसे सही समय होता है.
अगर टिड्डियों को रात को बैठते ही उन पर स्प्रे किया जाए तो उनकी मोर्टिलिटी (Mortality) (मृत्यु-दर) कम होती है. ऐसे में अब कृषि वैज्ञानिक इस बात का सुझाव दे रहे हैं कि पेड़ों पर छिड़काव की जगह ज्यादा ताकत वाले सेक्शन पंप का इस्तेमाल किया जाए और उनसे टिड्डियों को मशीन के अंदर खींच लिया जाए तो ज्यादा इफेक्टिव हो सकता है, इसके लिए कार्रवाई जारी है.
अर्जुन सिंह के अनुसार टिड्डियों के अंडों को नष्ट करना मुश्किल होता है, क्योंकि फीमेल टिड्डियां अपनी लाइफ साइकिल (Life cycle) (जीवन चक्र) में तीन बार अंडे देती हैं.
जो दो दिन या तीन दिन के गैप में एक बार में 80 से 100 की तादाद में अंडे देती है. टिड्डी अपना अंडा ज्यादातर सैंडी सॉइल (Sandy soil) (रेतीली मिट्टी) में देती हैं. टिड्डी अपना अंडा जमीन के 6 इंच तक अंदर देती है, ऐसे में यह आसानी से दिखाई नहीं देता है.