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कृषि मंत्री ने किसानों को वार्ता के लिए बुलाया, दिल्ली-हरियाणा सीमा पर डटे हैं किसान

केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में पिछले पांच दिनों से किसान दिल्ली-हरियाणा सीमा पर डटे हुए हैं. किसानों के आक्रोश को देखते हुए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान नेताओं को आज वार्ता के लिए बुलाया है. इस पर किसानों की ओर से अंतिम फैसला नहीं लिया गया है.

कृषि मंत्री ने किसानों को वार्ता के लिए बुलाया
कृषि मंत्री ने किसानों को वार्ता के लिए बुलाया

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Published : Dec 1, 2020, 12:46 AM IST

Updated : Dec 1, 2020, 8:44 AM IST

नई दिल्ली : भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से अहम फैसला लिया गया है. दिल्ली हरियाणा सीमा पर सिंघु बॉर्डर पर डटे किसानों को आज दोपहर तीन बजे वार्ता के लिए बुलाया गया है. इस पर किसानों ने कहा है कि मंगलवार सुबह वे बैठक के बाद कृषि मंत्री से मिलने को लेकर अंतिम फैसला लेंगे. जिन किसान नेताओं ने 14 अक्टूबर को हुई पहले दौर की वार्ता में भाग लिया था, उन्हें आज दोपहर तीन बजे विज्ञान भवन में आमंत्रित किया गया है.

इस बैठक में उन सभी संगठनों को निमंत्रण दिया गया है, जिन्हें पिछ्ली बैठक में बुलाया गया था. इस पर किसानों का कहना है कि वे मंगलवार पूर्वाह्न 8 बजे बैठक करेंगे. बैठक में सरकार के निमंत्रण पर फैसला लिया जाएगा.

नरेंद्र सिंह तोमर (केंद्रीय कृषि मंत्री)

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि कानूनों को लेकर हो रहे विरोध पर कहा कि जब संसद में ये तीनों कानून लाए गए, तो कुछ गलत धारणाएं थी. इस कारण किसान नेताओं के साथ बीते 14 अक्टूबर और 13 नवंबर को दो दौर की वार्ता की गई.

उन्होंने कहा कि पहले दो दौर की वार्ता में भी हमने किसानों से अपील की थी कि विरोध-प्रदर्शन करने की बजाय सरकार से बात करें, सरकार वार्ता के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि पहले किसान नेताओं के साथ वार्ता का समय तीन दिसंबर को तय किया गया था, लेकिन कोरोना महामारी और कड़ाके की ठंड के प्रकोप को देखते हुए वार्ता का समय एक दिसंबर को तय किया गया है.

ठंड व कोविड-19 को देखते हुए यह वार्ता जल्दी रखी गई है, ताकि किसान संगठनों के सदस्यों को परेशानी नहीं हो. बता दें कि पूर्व में 3 दिसंबर को यह बैठक निर्धारित थी.

इससे पहले केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने भी किसानों से केंद्र सरकार के प्रस्ताव को मानने और वार्ता के लिए राजी होने की अपील की.

गौरतलब है कि पंजाब, हरियाण समेत कई राज्यों के किसान संगठन केंद्र की ओर से लाए गए कृषि कानूनोंं का विरोध कर रहे हैं. किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए इस संबंध में कानून बनाने की मांग की है.

रामदास अठावले का बयान

किसानों का विरोध प्रदर्शन विगत 26 नवंबर से शुरू हुआ है. कई किसान संगठनों ने इस आशंका से विरोध किया है इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली द्वारा किसानों को प्रदान किया गया सुरक्षा कवच कमजोर होगा.

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विरोध शुरू होने और किसानों के दिल्ली चलो मार्च के दौरान पुलिस को कई बार आंसू गैस के गोले चलाने पड़े. इसके अलावा ठंड के इस मौसम में वाटर कैनन चलाने को लेकर प्रशासन पर भी कई सवाल खड़े हुए. इसके बाद किसानों के प्रदर्शन के तीसरे दिन देर शाम खुद गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों से वार्ता करने की अपील की थी.

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कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष

बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.

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कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.

Last Updated : Dec 1, 2020, 8:44 AM IST

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